तारिक़ आज़मी
वाराणसी। 30 सितम्बर 2019 सोमवार की वह सुबह आम दिनों के तरीके से ही थी। सभी अपने कामो में व्यस्त थे। वाराणसी तहसील परिसर में भी सभी कार्यालय खुले हुवे थे। सभी अपने कामो में व्यस्त थे कि अचानक गोलियों की तड़तडाहट से पूरा परिसर ही नहीं आस पास का इलाका गुजने लगा था। कार्यालय में काम करने वाले सभी लोग दुबक गए थे। जो जहा खड़ा था वही खुद को छुपाने की कोशिश कर रहा था। सिर्फ दो थे वो, और पुरे सैकड़ो की भीड़ के बीच उन्होंने गोलियों से अपने दुस्साहस का एक इतिहास उस दिन रचा था।
मृतक की शिनाख्त नितेश सिंह बबलू के रूप में हुई। सहेली बस का मालिक नितेश सिंह बबलू खुद भी एक हिस्ट्रीशीटर था और लोहिया नगर, सारनाथ में उसका निवास था। मृतक चंदौली जिले के धानापुर थाना क्षेत्र के ओदरा का मूल निवासी था। बबलू के पिता वन विभाग में रेंजर से सेवानिवृत्त हैं। बबलू वन विभाग में ठेकेदारी भी करता था। गाजीपुर-वाराणसी रूट पर सहेली नाम से बस चलती है। बबलू कई कार्यालय में कैंटीन भी चलवाता था। घटना के दिन यानी सोमवार 30 सितम्बर 2019 की सुबह करीब दस बजे बबलू सिंह गाड़ी संख्या यूपी 32 ईई 0900 से तहसील सदर आया। ये उसकी ज़िन्दगी का आखरी सफ़र और ड्राइव साबित हुआ।
घटना की सुचना मिलने पर स्थानीय थाना ही क्या वाराणसी के हर एक थाना क्षेत्र से फ़ोर्स सहित जिले के सभी बड़े अधिकारी घटना स्थल पर पहुच गए। हत्या किसने किया, क्या कारण था इसकी तलाश जारी हुई। तलाश ऐसे जारी रही कि आज एक साल गुजरने वाला है मगर तलाश खत्म नही हुई है और पुलिस के हाथ खाली है। घटना के शरुआती दिनों में कई कयास लगाये गये। मगर कोई कयास अपने साथ पुख्ता सबुत के साथ नही था। शुरू में इस घटना को झुन्ना पंडित द्वारा कारित घटना भी समझा गया। मगर बाद में ये नाम भी पुलिस इस मामले में नही ला पाई क्योकि सबूत का आभाव था।
इस मामले के खुलासे के लिए कई टीम गठित किया गया। तत्कालीन एसपी सिटी दिनेश सिंह की सबसे विश्वसनीय टीम थी तत्कालीन लंका इस्पेक्टर भारत भूषण की टीम। क्राइम ब्रांच अपनी अलग जद्दोजेहद में थी तो भारत भूषण की टीम अपनी एक अलग जंग में थी। काम कठिन था और भूसे में सुई तलाशने जैसा था। अन्दर के खबर के मुताबिक पुलिस के पास सिर्फ एक फोटो था। वह भी कितना विश्वसनीय था इसका भी पूरा विश्वास नही था। भारत भूषण की टीम में तत्कालीन चितईपुर चौकी इंचार्ज एसआई प्रकाश सिंह के साथ भारत भूषण के विश्वसनीय कांस्टेबल की टीम थी। एक फोटो के पीछे दिखाई दे रहे एक पोस्टर की तलाश काफी दूर तक लेकर गई। फिर शुरू हुआ मंथन और ये जाँच बनारस की सरहदों को लांघ कर आजमगढ़ तक जा पहुची।
मामला लगा कि खुलासे के कगार पर है और मामले में कुख्यात अपराधी गिरधारी का नाम सामने आया, मगर इसी दरमियान सब कुछ उथलपुथल जैसी स्थिति हो गई। जहा क्राइम ब्रांच प्रभारी विक्रम सिंह का स्थानांतरण गैरजनपद में हुआ। एक बड़ी उम्मीद की किरण भारत भूषण की टीम के तरफ थी तभी एक प्रकरण में सिंघम स्टाइल के लिए मशहूर एसआई प्रकाश सिंह सस्पेंड हो जाते है। यहाँ से टीम ही पूरी टूटी और भारत भूषण तिवारी का इस केस को खोलने का मनोबल भी कमज़ोर हुआ। जिस घटना में एसआई प्रकाश सिंह के ऊपर कार्यवाही हुई थी, उस घटना में प्रकाश सिंह ने खुद की जान को खतरे में डाल वर्दी में मार खा रहे एक सिपाही को बचाया था। मगर आईसा के छात्रो का दबाव था और तत्कालीन एसएसपी ने एसआई प्रकाश सिंह पर कार्यवाही किया। इसके बाद बैठी जाँच में पूरा आरोप झूठा पाया गया और प्रकाश सिंह की वापस बहाली हुई।
प्रकाश सिंह जैसे तेजतर्रार एसआई सभी थाना प्रभारी चाहते है। इसी क्रम में तत्कालीन थाना प्रभारी राजीव रंजन के विशेष मांग पर प्रकाश सिंह को दुर्गाकुंड चौकी इंचार्ज बना दिया गया। वही एनआरसी प्रकरण में हुवे बजरडीहा में पथराव के दौरान इन्स्पेक्टर भारत भूषण तिवारी घायल हुवे। उनके हाथ का दुबारा आपरेशन हुआ। इन सबके बीच बबलू सिंह हत्याकाण्ड दब कर रह गया और लोग भूलने भी लगे। एनआरसी विरोध की ज्वाला ठंडी होती तब तक लॉकडाउन में पुलिस फंसी रह गई। इस दरमियान बबलू सिंह केस की फाइल धुल फाकने लगी और वक्त की धुल अच्छी खासी इसके ऊपर बैठ गई है।
इस पुरे प्रकरण में सबसे अधिक नुकसान हो हुआ वह ट्रांसफर और पोस्टिंग के वजह से हुआ। काम कर रही टीम ही लगभग पूरी तरह भंग हो गई। जो बचे उनका भी मनोबल टूट गया। केस की स्थिति आपके सामने है और अभी तक कोई भी खुलासा नही हुआ है। बल्कि कहा जाए तो अभी तक पुलिस के लिए ये केस एक अबूझ पहेली के तरीके से है। हो सकता है कि आने वाले वक्त में फिर कोई इनपुट मिले और फिर पुलिस सक्रिय हो और फिर वापस इनपुट सही न होने की दशा में दुबारा मामला ठन्डे बसते में चला जाए।
ये भी एक हकीकत है कि मृतक बबलू एक हिस्ट्रीशीटर था। उस पर हत्या, मारपीट, जमीन कब्ज़ा और रंगदारी मांगने के कई मुक़दमे दर्ज थे। 2007 में डॉ शिल्पी राजपूत के पति डॉ डीपी सिंह की हत्या के बाद बबलू ने जरायम की दुनिया में जगह बनायी। इसके बाद उसकी पहचान पूर्वांचल के एक चर्चित माफिया के धुर विरोधी बदमाश के रूप में बनी। पिछले एक साल से उसकी घनिष्ठता मुन्ना बजरंगी गैंग के एक कुख्यात बदमाश से बढ़ती चली गई थी।
बहरहाल, इस जघन्य हत्याकांड का एक साल पूरा होने को है। मगर पुलिस के हाथ में सिर्फ कुछ नाम है और वो नाम पुलिस के हाथो से दूर है। गिरधारी के अगर पुराने अपराधिक इतिहास पर नज़र डाले तो गिरधारी एक बड़ी पकड़ वाला अपराधी समझ में आता है। आजमगढ़ में गिरधारी लोहार के नाम से मशहूर यह कुख्यात पुलिस पकड़ से अभी तक दूर है। गिरधारी ने अधिकतर खुद को कानून के हवाले किया है। बड़ी घटनाओं के बाद इसके ऊपर जब जब इनाम घोषित हुआ है इसने सरेंडर किया है। पिछले सरेंडर में तो सूत्र यहाँ तक बताते है कि अपने अधिवक्ता के साथ ये नकाब पहन कर कचहरी आया था। अब देखना होगा कि एक बार फिर गिरधारी को पुलिस पकडती है या फिर ये इनामिया बदमाश वापस किसी अन्य मामले में अपनी ज़मानत तुडवा कर जेल चला जाता है। आखिर कब बबलू सिंह हत्याकांड का खुलासा होगा
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