आदिल अहमद
नई दिल्ली। एक आन्दोलन जिसने युपीए सरकार की नीव उखाड़ कर रख दिया। उस आन्दोलन के मुख्य धारा में रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अब इस बात का दावा किया है कि अन्ना आन्दोलन को संघ और भाजपा का समर्थन राजनैतिक हित के लिए था। हालंकि उन्होंने इस बात की जानकारी अन्ना को होने की बात से इनकार किया है मगर साथ ही ये भी कहा है कि अरविन्द केजरीवाल को इस बात की जानकारी थी।
माना जाता है कि अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में हुई इस मुहिम से मनमोहन सिंह की अगुआई वाली यूपीए सरकार की स्थिति कमज़ोर हुई जिसके बाद साल 2014 में भाजपा सरकार केंद्र में सत्ता में आई थी, और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी सरकार बनी थी। लेकिन आम आदमी पार्टी के गठन से पहले अन्ना हज़ारे ने अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक मुहिम से ख़ुद को दूर करते हुए कहा था कि आम आदमी पार्टी को उनके नाम या छवि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। प्रशांत भूषण इस आंदोलन में कई महीनों तक भी शामिल थे, हालांकि बाद केजरीवाल और उनके बीच मतभेद बढ़े और जिसके बाद पार्टी की अनुशासन समिति ने उन पर विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाकर उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया था। उस वक्त प्रशांत भूषण के साथ तीन और लोगों को पार्टी से बाहर कर दिया गया था। इनमें सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, समाजशास्त्री आनंद कुमार और अजीत झा शामिल थे।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि जो हमें पहले से पता था आम आदमी पार्टी के संस्थापक रहे सदस्य ने उसकी पुष्टि कर दी। उन्होंने लिखा, “लोकतंत्र को ख़त्म करने और यूपीए सरकारी को गिराने के लिए इंडिया अगेंस्ट करप्शन और आम आदमी पार्टी को आरएसएस और बीजेपी ने खड़ा किया।” कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने भी ट्वीट कर कहा कि ये अब ये कोई आश्चर्य की बात नहीं रही कि उस आंदोलन के पीछे बीजेपी और आरएसएस का हाथ था।
प्रशांत का कहना गलत नही है – योगेन्द्र यादव
इस मुद्दे पर स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने एक साक्षात्कार में कहा है कि प्रशांत का कहना ग़लत नहीं है। “जिस वक्त की बात कह रहे हैं तब मैं कोर कमिटी में नहीं था। वो अन्ना आंदोलन की बात कह रहे हैं और मैं अरविंद के साथ राजनीतिक पार्टी बनने के बाद आया। ज़ाहिर है कि अरविंद चतुर निकले और उनकी राजनीति बीजेपी आरएसएस के क़रीब की ही है। हम उन्हें तब नहीं समझ पाए और जब समझा तो साथ छोड़ दिया। कोई आंदोलन होगा तो उससे किसी को फ़ायदा होगा किसी को नुक़सान लेकिन आंदोलन की नियति केवल यही नहीं होती।”
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