आदिल अहमद
नई दिल्ली: क्या अजीब इत्तेफाक कहेगे इसको कि यदि पंचर बनाने वाला मुस्लिम समुदाय से हो तो किसी को तकलीफ नही होती है। मगर वही मुस्लिम अगर मेहनत करके, पढ़ाई करके UPSC जैसे परीक्षाओ में सफलता प्राप्त करता है तो कुछ ऐसे भी लोग है समाज में जिनके पेट में दर्द शुरू हो जाती है। इस बार UPSC परीक्षाओं में जामिया मिलिया के स्टूडेंट्स ने अपना परचम बुलंद किया। ऐसा नही है कि इसके पहले जामिया के छात्र छात्राये UPSC परीक्षा में अपना स्थान सुनिश्चित नही कर पाए हो। हर बार ही जामिया अपना प्रतिनिधित्व इन परीक्षाओ में देता रहा है। मगर इस बार की परीक्षा परिणाम आने के बाद खुद के विशेष कार्यक्रमों के लिया अक्सर चर्चा में रहने वाले सुदर्शन न्यूज़ का कार्यक्रम “UPSC जिहाद” खासा चर्चा का विषय बना हुआ है।
देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि हमारी राय है कि हम पांच प्रतिष्ठित नागरिकों की एक समिति नियुक्त करें जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए कुछ मानकों के साथ आ सकते हैं। हम कोई राजनीतिक विभाजनकारी प्रकृति नहीं चाहते हैं और हमें ऐसे सदस्यों की आवश्यकता है जो प्रशंसनीय कद के हों। सुदर्शन टीवी के प्रोग्राम ‘UPSC जिहाद’ के खिलाफ याचिका दाखिल की गई है, इस मामले पर इस बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस के एम जोसेफ थे।
इस दौरान SC ने कहा कि देश के सर्वोच्च न्यायालय के रूप में हम आपको यह कहने की अनुमति नहीं दे सकते कि मुस्लिम नागरिक सेवाओं में घुसपैठ कर रहे हैं। आप यह नहीं कह सकते कि पत्रकारों को यह करने की पूर्ण स्वतंत्रता है। ।इस दौरान जस्टिस जोसेफ ने कहा, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ समस्या टीआरपी के बारे में है और इस तरह अधिक से अधिक सनसनीखेज हो जाता है तो कई चीजें अधिकार के रूप में सामने आती हैं।
सुनवाई के दौरान जस्टिस जोसेफ ने कहा, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ समस्या टीआरपी के बारे में है और इस तरह वह कई बार जरूरत से ज्यादा सनसनीखेज हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ टेलीविजन चैनलों होने दिखाई जाने वाली बहस पर चिंता जताई। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि कई बार पैनलिस्टों को बोलने की इजाजत नहीं दी जाती है और ज्यादातर समय एंकर बोलते रहते हैं और बाकी लोगों को म्यूट भी कर दिया जाता है। मीडिया की स्वतंत्रता नागरिकों की ओर से है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की शक्ति बहुत बड़ी है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विशेष समुदायों या समूहों को लक्षित करके केंद्र बिंदु बन सकता है। इससे प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, छवि धूमिल की जा सकती है। इसे कैसे नियंत्रित करें? क्या राज्य ऐसा नहीं कर सकते? क्या ऐसे मानक नहीं होने चाहिए जिन्हें मीडिया स्वयं लागू करे और जो अनुच्छेद 19 (1) (ए) यानी बोलने की आजादी को बरकरार रखे
इससे पहले टीवी के लिए श्याम दीवान ने कहा, ‘मैं इसे प्रेस की स्वतंत्रता के रूप में दृढ़ता से विरोध करूंगा। कोई पूर्व प्रसारण प्रतिबंध नहीं हो सकता है। हमारे पहले से ही चार प्रसारण हो चुके हैं इसलिए हम विषय को जानते हैं विदेशों से धन पर एक स्पष्ट लिंक है। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम चिंतित हैं कि जब आप कहते हैं कि विद्यार्थी जो जामियामिलिया का हिस्सा हैं, सिविल सेवाओं में घुसपैठ करने के लिए एक समूह का हिस्सा हैं तो हम बर्दाश्त नहीं कर सकते। देश के सर्वोच्च न्यायालय के रूप में हम आपको यह कहने की अनुमति नहीं दे सकते कि मुस्लिम नागरिक सेवाओं में घुसपैठ कर रहे हैं।आप यह नहीं कह सकते कि पत्रकारों को यह करने की पूर्ण स्वतंत्रता है।
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