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भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की धरोहर – कुछ पुरानी तस्वीरे और वारिस का तमगा लिये सिप्पू मिया से नये सवाल

तारिक़ आज़मी

वाराणसी। शहर बनारस का नाम जब भी आएगा तो कला का ज़िक्र ज़रूर होगा। वही कला का ज़िक्र हो और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब का ज़िक्र न हो ये मुमकिन नही है। भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब की याद पुरे शहर को मुहर्रम पर ज़रूर आती है। उस्ताद की मातमी धुन गम-ए-हुसैन को ताज़ा करके आँखों की पलको के कोने सख्त से सख्त दिल वालो के भिगा देती थी। यादे तो उस्ताद की हर साल ही आती है। मगर इस बार मुहर्रम पर हर गली जिधर से उस्ताद होकर गुज़रते थे उस्ताद का नाम लेती दिखाई दे रही थी। सियाह सुर्ख रातो के सन्नाटो में उस्ताद की यादे इस बार कुछ ज्यादा ही झकझोर रही थी।

क्यों न हो ? आखिर उस्ताद की धरोहर जिसको देख कर शहर का हर एक बाशिंदा खुद को तसल्ली दे लेता था कि उस्ताद न सही उनकी यादे आज भी जिंदा है। उस धरोहर पर चंद सिक्को की लालच में बाहुबली दुर्दान्त बिल्डर का साथ पकड़ कर उस्ताद के बहुत ही गरीब, इतने गरीब की सिर्फ करोडो की संपत्ति के मालिक है, यानी सिप्पू मियां उर्फ़ सिबतैन और उनकी पत्नी नजमी फिरोज़न ने हथौड़े चलवाने का मंसूबा बना डाला। उस्ताद की ज़िन्दगी भर की कमाई उनकी ये धरोहर ही थी। जिसको देखने को देश विदेश से सैलानी आते थे, पर चंद सिक्को की लालाच में उनके ही वरसा खुद को बेहद गरीब होने की दुहाई देते हुवे खत्म करवाने का मंसूबा पाल बैठे है।

बहरहाल, आज मुहर्रम का तीजा भी खत्म हो चुका है। बिल्डर से लेकर उस्ताद के वरसा भी अब मुहर्रम से खाली हो चुके है। कभी भी उस्ताद के धरोहर पर ये कहते हुवे बिल्डर के संरक्षण में उनके पौत्र दुबारा हथौड़ा चलवाना शुरू कर सकते है। अन्दर के सूत्र बताते है कि दुर्दांत बिल्डर अपने साथ अपराधियो के गठजोड़ के साथ सेटिंग गेटिंग करके काम शुरू करवा सकते है। डायलाग रटा रटाया है कि हम तोड्वा कर बनवायेगे नही तो फिर खायेगे कहा से ? भले उनकी खुद की करोडो की सपत्ति और एक लाख के करीब महीने का किराया सिर्फ आता हो। मगर सिप्पू मिया खुद को बहुत ही गरीब कहेगे। उनका साथ उनकी अर्धगनी यानी शरीक-ए-हयात नजमी फिरोज़न देते हुवे कहेगी कि प्रशासन कोई सहयोग नही करता है। गैस एजेंसी दे दे, पेट्रोल पम्प बनवा कर दे दे। बस देता रहे प्रशासन क्योकि हम करोडपति गरीब है।

समझ नहीं आने वाली एक बात है कि जिस नाम की वजह से इस पुरे कुनबे को लोग इज्ज़त देते है, उनको जानते है। वह नाम है भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब का। और उनकी ही धरोहर चंद पैसो की लालच में खत्म होने के कगार पर पहुच चुकी है। उस्ताद के इस धरोहर से लोगो के जज़्बात जुड़े है, मगर सिप्पू मिया आपके जज़्बात क्या सिर्फ खुद के ऐश-ओ-इशरत से जुड़े हुवे है। जानकारी मुझको भी मिलती है कि आप खुद की संपत्ति के जग ज़ाहिर होने से खासे हैरान है। आपको नहीं समझ आ रहा है कि ये गोपनीय सुचना कहा से लीक हो गई। साहब गोपनीयता कहा है। जब बिरयानी की दावत तरना में होगी तो उसकी खुशबु काफी दूर तक जाती है।

खैर, किसी ने कहा था कि मिया मुहर्रम का चाँद हो गया है। गम-ए-हुसैन है। गुज़र जाने दो फिर लिखो। मैंने भी भाई उनकी बात मान लिया। वैसे तो गम-ए-हुसैन पूरी ज़िन्दगी का है किसी एक महीने का नही है। फिर भी बात उनकी भी सही थी तो मान लेने में क्या हर्ज है। इस दरमियान हमने अपनी तफ्तीश जारी रखा मगर लिखा नहीं। एक रोज़ पुराने फोल्डरो को डिलीट कर रहा था तो उस्ताद के धरोहर की चंद तस्वीरे नजर आ गई। फिर ज़ेहन पर गौर करके देखा तो ध्यान आया कि अब उन तस्वीरो से मिलता जुलता कुछ वहा दिखाई नही दे सकता है।

सिप्पू मिया मुझको ये तस्वीरे याद दिलाती है कि उस्ताद बैठक में इसको लगाये हुवे थे। बैठक, हां वही बैठक, मिया हां हाँ वही बैठक जहा उस्ताद बैठ कर आगंतुको का स्वागत करते थे। खुद हाथो से बाअदब चाय उठा कर देते थे। नमकीन बिस्किट के साथ पानी को पूछते थे। ये तस्वीरे उसी बैठक की है जो आप देख रहे है। आपको तो बेशक याद ही होगा। भले ही आपके लिए ये सभी यादे सिर्फ और सिर्फ बेकार की बाते हो, मगर उस्ताद के चाहने वालो के लिए ये एक अनोमोल धरोहर है। उस्ताद की इन धरोहरों को नाजिम मिया और ज़रीना बी बड़े जतन से संभाल कर रखते थे। उसकी साफ़ सफाई करते थे। उस्ताद के गुज़र जाने के बाद भी इसको देख कर उनकी आँखे भर आती थी। ये धरोहर अब कहा है भाई ?

इनमे एक एक स्मृति चिन्ह से लेकर उस्ताद ने उनकी खबर जो अख़बार में लगी उसकी कटिंग तक रखी थी। कई सम्मान पत्र थे। कई बड़े बड़े संस्थानों ने उनके सम्मान में पत्र जारी किया था। कई अवार्ड थे, कई प्रशस्ति पत्र थे। आप खुद तस्वीरो में देखे। किसी एक जगह की तस्वीर दो बार नही है। सभी अलग अलग उसी बैठक की है जहा उस्ताद आगंतुको से बड़ी ही इज्ज़त और अदब के साथ मुलाकात किया करते थे। उनके लफ्जों से शक्कर गिरती थी। उनका कहना था कि किसी मेहमान का हमारे पास आना खुशकिस्मती होती है। काशी से विशेष मुहब्बत करने वाले उस्ताद के कुछ पुराने वीडियो भी आप देख सकते है।

यहाँ तक की उस्ताद की बैठक में एक नक्काशीदार ऐशट्रे भी हुआ करती थी। बेहद खुबसूरत, ऐसा लगता था कि पत्थर पर किसी नक्काश ने अपनी हुनर के सभी फुल उंडेल दिए हो। लगता था उस ऐशट्रे से निकलने वाला मद्धिम धुआ अहसास करवाता था कि इस कला की जुबान भी है। मगर ये सब कुछ कला के कद्रदानो को दिखाई देगा। नाफर्मानो को कहा दिखाई देता है ये सब कुछ। उनके लिए शायद चंद सिक्को से भी कम मोल हो इसका। कभी कलाकार के हुनर की तारीफ के लफ्जों से उसको पिरो कर देखे हुजुर। बेशक बेहद खुबसूरत दिखाई देगा। ये कला का हुस्न है, दुनियाबी निगाहों से देखने से नहीं दिखाई देता है। बेशकीमती होता है ये हुस्न। इसको देखने के लिए अदब और मुहब्बत की नज़रे चाहिए हुजुर।

बहरहाल, मुझको अच्छी तरीके से याद है, जब मैं 20 अगस्त को उस्ताद के आशियाने पर गया था। ये वही दिन था मिया, जब आपके हुजरे से आवाज़ मेरे मुताल्लिक आ रही थी। मुझको समझाने की बाते। तो साहब समझा दे आप ही। मगर हमारा अदब उस्ताद के शान में बरक़रार रहेगा। मैं मुद्दे पर ही रहूँगा, ऐसी आवाज़े आज तक काफी सुनी है। बड़ा हसीं शेर है कि “बिन बारिश के घनघोर बहुत देखे है, मैंने बेमौसम के ये शोर बहुत देखे है। नाला कहता है समुन्दर से उमड़ना सीखो, मैंने मौसम के ये शोर भी बहुत देखे है।”

मुद्दा ये है कि मुझे अच्छी तरीके से याद है ये सभी उस्ताद की यादे बैठक में मुझे दिखाई नही दी थी। शायद किसी बोरे में भर कर आपने ये सोचकर रख दिया होगा कि “कहानी खत्म”। मगर साहब कहते है न कि तस्वीरे बोलती है। अब मालूम नही कि इसको बोरा में भर कर रखे है या फिर…….। आप समझ सकते है मैं क्या कहना चाहता हु। क्योकि इतिहास के झरोखे में अगर झांक कर देखे तो उस्ताद की वरासत और धरोहर को कोई बाहरी नही मिटा सका है। उनकी शहनाई से लेकर एक अवार्ड तक गायब हुआ था। उसके लिए ज़िम्मेदार कौन था ? कौन गिरफ्तार हुआ था ?

खैर साहब, मुझको मालूम है कि इस खबर के पढने के बाद उन सभी यादो से जुड़े सम्मान पत्र, अवार्ड को तलाशा जायेगा। उनको करीने से रखने की कवायद भी होगी। हो सकता है बाहुबली बिल्डर एक नही बल्कि दोनों जिसमे एक सिप्पू मिया के बहुत पुराने दोस्त भी है, समझाये, बुझाये। मगर हमारा प्रयास है कि उस्ताद की धरोहर को इस तरह फनाह न होने देंगे। जब तक कलम में आखरी बूंद स्याही है और जिस्म में आखरी साँस है, ये जद्दोजेहद जारी रहेगी। बिल्डर साहब भले लोगो से कहते फिरे और वो लफ्ज़ हमारे पास तक आते रहे। मगर हम ऐसी धमकियों से डरने वालो में नहीं है। वो अपना काम कर रहे है, आखिर बाहुबली है, कई को पाले है। तो हम अपना काम कर रहे है। आखिर हम भी कलम के सिपाही है। मिलते है अगले अंक में जुड़े रहे हमारे साथ। हम बताते है वो सच, जो वक्त की रफ़्तार के धुंध में कही गुम हो जाता है।

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