तारिक़ आज़मी
नई दिल्ली: हाथरस के डीएम साहब मीडिया को परिजनों से मिलने की अनुमति नही दे रहे थे। आखिर जब मामला नेशनल लेवल पर जाकर हडकंप की स्थिति हुई तो जाकर डीएम साहब ने मीडिया को अनुमति दिया। उसके बाद भी कोरोना का एक कारण बता कर विपक्ष के दलों को भी अनुमति नही दे रहे थे। आखिर काफी जद्दोजेहद के बाद उन्होंने अनुमति दिया तो केवल 5 लोगो की दिया। शायद डीएम साहब को लगता होगा कि कोरोना बाहर से आये लोगो से फ़ैल जायेगा।
हुआ कुछ इस प्रकार है कि हाथरस के जिस गांव में 20 साल की दलित युवती के साथ गैंगरेप और हत्या की वारदात हुई है, एनडीटीवी ने भी इस सम्बन्ध में खबर प्रकाशित किया है. जिसमे कहा गया है कि पीड़ित परिवार के घर के पास आज रविवार को एक बैठक आयोजित की गई। तथाकथित ऊंची जातियों के लोगों ने हाथरस कांड में गिरफ्तार आरोपियों के समर्थन में आज एक बैठक किया। इस दौरान, एक आरोपी का परिवार भी सभा में शामिल हुआ। हाथरस में दलित युवती के गैंगरेप और हत्या को लेकर पूरे देश में रोष है। इस मामले में जो भी दोषी हों, उन्हें सख्त से सख्त सजा दिए जाने की मांग उठ रही है। वही ये बैठक स्थानीय भाजपा नेता के खुद के आवास पर हुई।
बीजेपी नेता राजवीर सिंह पहलवान के घर में यह बैठक में जमकर आरोपियों के समर्थन में बाते हुई। भाजपा नेता राजवीर सिंह पहलवान ने कहा कि वह इस बैठक में “पूरी क्षमता” के साथ शामिल होंगे। जानकारी के मुताबिक, बीजेपी नेता के घर चल रही बैठक खत्म हो गई है। बीजेपी नेता का कहना है कि ये स्वागत समारोह था। सीबीआई जांच की स्वागत करने के लिए यहां लोग आए हैं। किसी को बुलाया नहीं गया था। आरोपी लवकुश की मां भी यहां आई थीं। सुबह CDO ने समझाने की कोशिश की थी, लेकिन उसके बावजूद मीटिंग की गई। बैठक के आयोजकों में से एक ने कहा, “हमने बैठक के बारे में पुलिस को सूचित कर दिया है। महिला (पीड़िता) के परिवार के खिलाफ भी प्राथमिकी (FIR) दर्ज की जानी चाहिए। आरोपियों को निशाना बनाया गया है।”
ऐसा नही है कि ये बैठक पहली रही हो। कल एक और ऐसी ही बैठक का वीडियो वायरल हो रहा था। इस वायरल वीडियो में दावा किया जा रहा था कि बैठक तथाकथित उच्च जाति के लोगो की है। कथित रूप से इस बैठक का वायरल होता वीडियो देखने से पता चलता है कि बैठक का नेतृत्व कर रहा युवक जज्बे के साथ आरोपियों को निर्दोष बता रहा है। जमकर खुद की तथाकथित उची जाति के अफ़साने सुना रहा है। अब सवाल ये उठता है कि इस प्रकार की बैठकों के लिए प्रशासन की मौन सहमती क्या पीड़ित परिवार पर दबाव नही डालेगी ?
बता दें कि दलित युवती की इलाज के दौरान दिल्ली के एक अस्पताल में 29 सितंबर को मौत हो गई थी। स्थानीय पुलिस ने इस मामले को जिस तरह से संभाला उसे लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार की जमकर आलोचना हो रही है। पुलिस ने आनन-फानन में रात 2 बजे युवती का अंतिम संस्कार कर दिया। इस दौरान, पीड़िता का परिवार भी नहीं था। इसे लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।
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