तारिक आज़मी
वाराणसी। लबो की आज़ादी हमारी संवैधानिक आज़ादी का हिस्सा है। संविधान हमारे लबो को आज़ादी देता है। क़ानूनी भाषा में इसको अभिव्यक्ति की आज़ादी कहा जाता है। ये अभिव्यक्ति की आज़ादी केवल इसी कारण दिया गया था कि किसी भी गलत का विरोध शब्दों से तो किया ही जा सकता है। मगर हालात बदले तो अब लबो पर लोगो ने ख़ामोशी अख्तियार कर रखी है और गलत कामो का विरोध शब्दों से करना बंद कर चुके है। बस मन में सोच कर रह जाते है कि अमुक काम गलत हो रहा है। इसका फायदा सिर्फ गलत करने वालो को मिल रहा है।
आज के “बोल के लब आज़ाद है तेरे” का मौजु वाराणसी के आदमपुर थाना क्षेत्र में स्थित एक वक्त सरकारी संपत्ति A-12/34 राजघाट पर है। तवारीखी सरकारी संपत्ति पर कब्ज़ा हो रहा है और समाज मूकदर्शक बना हुआ है। अदालत ने मामले में संज्ञान वर्ष 2016 में लिया और स्थगनादेश पारित कर दिया। उक्त संपत्ति के लिए मुकदमा नंबर 71/2016 अयाज़ अहमद बनाम सुन्नी वक्फ बोर्ड एंड अदर्स बदलत वक्फ ट्रिब्यूनल लखनऊ में विचाराधीन है और अदालत ने इस पर यथास्थिति कायम रखने का निर्देश दे रखा है, इस स्टे के बावजूद भी इस संपत्ति पर विगत कई वर्षो से अवैध निर्माण हुवे। कोई विरोध करने वाला नही तो निर्माण से कौन रोक सकता है। “समरथ को नहीं दोष गुसाई” के तर्ज पर अवैध निर्माण नियमो को ताख पर रख कर हुवे। आपको पहले इस वक्फ सरकारी संपत्ति की तवारीखी हकीकत से रूबरू करवा देता हु। यानी इतिहास में इसका स्थान बता देता हु।
क्या कहता है इतिहास
सूरी वंश के संस्थापक फरीद खान उर्फ़ शेर शाह सूरी ने मुगलिया सल्तनत के सूरज को पीछे ढकेलते हुवे भारत पर अपना राज्य स्थापित किया था। शेर शाह सूरी को विशेष लगाव बिहार और उससे सटे जिलो से था। वाराणसी तत्कालीन काशी हुआ करता था। काशी में दर्शनार्थियों को आने के बाद होने वाली असुविधा को ध्यान में रखते हुवे 1540 के दशक में शेरशाह सूरी ने वाराणसी के राजघाट इलाके में एक सराय का निर्माण करवाया था। इसका उद्देश्य था कि बतौर सरकारी सराय आने वाले दर्शनार्थियों को रहने और सोने की दिक्कते न आये।
फरीद खान उर्फ़ शेरशाह सूरी इतिहास में सर्वधर्म समभाव को सम्मान देने वाले शासक के तौर पर मशहूर है। भले उसका शासन काल बहुत लम्बा न रहा हु और वर्ष 1540 में मुग़ल हुकूमत को ख़त्म करके उसने पुरे मुल्क पर हुकूमत किया था मगर वर्ष 1545 में उसका कालिंजर विजय के समय आकस्मिक निधन हो गया था। उसके बाद इस्लाम शाह गद्दीनशीन हुआ परन्तु उसके बाद सल्तनत को सँभालने की क़ाबलियत शेरशाह के वंशजों में अपने पिता जैसी नहीं थी परिणामस्वरूप 1555 में ही मुग़ल बादशाह हुमायु ने वापस अपना राज प्राप्त कर लिया।
मशहूर इतिहासकार डॉ मुहम्मद आरिफ ने तवारीखो के मद्देनज़र बताया कि शेरशाह सूरी को बिहार से विशेष मुहब्बत थी। बाबर के सेना में साधारण सिपाही के तौर पर काम कर चुके फरीद खां बाद में शेर शाह सूरी के नाम से हिन्दुस्तान का बादशाह बना। बाबर के देहांत के बाद बिहार के कुछ इलाको सहित चुनार तक अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था जिसके बाद एक समझौते के तहत हुमायु ने शेरशाह सूरी को उस इलाके की जिम्मेदारी दी। इतिहासकार डॉ मुहम्मद आरिफ ने बताया कि शेरशाह सूरी खुद बादशाह बनना चाहता था। महत्वाकांक्षा के कारण शेरशाह सूरी ने बगावत कर दिया और सासाराम को अपनी सियासत का केंद्र बनाया। चौसा और कन्नौज के युद्ध मे हुमायूं को परास्त कर शेरशाह ने उसे हिंदुस्तान की सीमा के बाहर खदेड़ दिया।
कैसे आई ये संपत्ति विवादों में
इस संपत्ति A-12/34 की देखरेख के लिए शेरशाह सूरी ने कुछ लोगो को इस संपत्ति पर नियुक्त किया था। दावा किया जाता है कि उनके वंशज आज भी इस सम्पत्ति पर रहते है। मामला सामने तब आया जब 2015 के अंत तक स्थानीय एक व्यक्ति ने इस सम्पत्ति को नीलामी में खरीदने का दावा किया। शहर में वक्फ संपत्तियों की बढ़िया जानकारी रखने वाले और वक्फ संपत्तियों की देखभाल करने वाले अयाज़ अहमद ने हमसे बात करते उवे बताया कि क्षेत्र के एक व्यक्ति ने इस सम्पत्ति A-12/34 को 1890 के दशक में म्युनिसिपल कर्पोरिशन से नीलामी में खरीदने का दावा किया था। जिसके बाद 2016 में इस सम्पत्ति A-12/34 के विवाद को अदालत लेकर जाना पड़ा और वक्फ ट्रिब्यूनल में केस 71/2016 दाखिल किया गया।
उन्होंने बताया कि जिस समय म्युनिसिपल कारपोरेशन से संपत्ति खरीदने की बात है उस समय म्युनिसिपल कारपोरेशन का निर्माण ही नही हुआ था। इसके बाद इस सम्पत्ति A-12/34 में सम्मानित न्यायालय ने स्टे आदेश पारित कर दिया। इसके बावजूद भी समय समय पर इस सम्पत्ति A-12/34 पर निर्माण होते रहे है। जब हम पुलिस के पास जाते तो हमारी नहीं सुनी जाती। इस क्रम में इधर बीच दुबारा पक्के निर्माण शुरू हो गए। जब हमने पुलिस के पास अपनी शिकायत किया तो विपक्ष ने एक विशेष हिस्से पर स्टे होने की बात कही जबकि पुरे मकान नम्बर A-12/34 पर ही स्टे आदेश है जिसकी प्रति हमने पुलिस को उपलब्ध करवाई है।
बहरहाल, अदालत के स्थगनादेश के बावजूद भी निर्माण कार्य होना एक अपराधिक कृत्य है। भवन A-12/34 पर जब अदालत ने स्टे किया हुआ है तो फिर निर्माण की इजाज़त कैसे दिया जा सकता है। अयाज़ मिया ने हमसे बात करते हुवे कहा कि हमारी बातो को थाना प्रभारी और क्षेत्राधिकारी ने बड़े ध्यान से सुना और समझा है। मगर स्थानीय चौकी इंचार्ज इस मामले में विपक्ष की हिमायत कर रहे है। ये न्यायपूर्ण नही है।
नोट – “बोल के लब आज़ाद है तेरे” वक्फ संपत्तियों पर हो रहे कब्ज़े से सम्बंधित एक सीरिज़ है। जिसमे हम वक्फ संपत्तियों के ऊपर हो रहे अवैध कब्जों और खरीद फरोख्त पर जमीनी हकीकत से समाज को रूबरू करवा रहे है। लोग सम्पत्ति के कब्ज़े और ऐसी संपत्तियों की खरीद फरोख्त चंद पैसो की मुफाद के लिए करते रहे है। अगर आपके पास भी ऐसे संपत्ति से सम्बंधित समाचार हो तो हमको व्हाट्सएप नम्बर 9839859356 पर सम्बंधित दस्तावेज़ के साथ पूरी डिटेल भेजे। हमारी टीम आपके द्वारा प्रदान सुचना पर भी काम करेगी और आपका नाम गोपनीय रखा जायेगा। अगले अंक में हम बतायेगे कि वक्फखोरो ने किस प्रकार मस्जिद तक की संपत्ति बेच डाली है। जुड़े रहे हमारे साथ
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