तारिक़ आज़मी
लबो की आज़ादी का ज़िक्र हमारे संविधान में भी आया है। संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। मगर ये अभिव्यक्ति कुछ इस तरीके से होनी चाहिये कि समाज को इससे नुकसान न पहुचे। वही रिश्तो के भी अपने मयार होते है। मगर कुछ लोग ऐसे है जो रिश्तो को शतरंज की बिसात की तरह के मोहरे समझते है। जैसे शतरंज की बिसात पर एक प्यादा अपने घर से चलकर दुसरे के घर पर पंहुच जाए तो फिर वो प्यादा नही बल्कि वजीर हो जाता है। इसी तरह से कुछ लोग रिश्तो को भी अपने मुनाफे के लिए शतरंज की बिसात समझते है। कुछ संपत्ति की लालच में लोग अपने बाप के भी बाप बन जाया करते है। रिश्ते ऐसे बना देते है कि रिश्ता ही एक गाली हो जाए।
मामले में हेराफेरी का दौर यहाँ से शुरू हुआ। इसी जगह से रिश्तो को भी एक गाली बना देने का सिलसिला चल गया। संपत्ति पर नज़र गडाये बैठी स्व0 अजीजुल हक़ की बहन नजमा खातून ने पहले वर्ष 2016 में मय हलफनामा संपत्ति की मुतवल्ली होने का दावा किया जिसमे उन्होंने अपने सगे बाप मौलवी मजहरुल हक की बेटी खुद को बताया और अजीजुल हक की बहन बताया। यहाँ तक तो मामला ठीक था और वक्फ ने संपत्ति की शरायत के अनुसार उनका मुतवल्ली पद का दावा खारिज कर डाला। फर्जीवाड़े की शुरुआत यहाँ से हुई।
खुद का दावा खारिज होने के बाद नजमा खातून जिनके पति फुजैल अहमद है ने एक बड़ा फर्जीवाड़ा क्वीन का दाव खेला और एक हलफनामे और फर्जी कागज़ात के बल पर खुद को मौलवी अब्दुल अहद जो नजमा खातून के दादा थे की बेटी बताया और मौलवी मज़हरुल हक की खुद को बहन बताया। रिश्तो की सियासत और रिश्ते गाली के तौर पर तक्सीमी में यहाँ से आगे बढ़ते है। रिश्तो को कुछ इस तरह तोडा मरोड़ा गया कि अब नजमा खातून के बाप ही उसके भाई बन गए। जो माँ थी वह भौजाई बन गई और जो दादी थी वह अम्मा बन गई। अम्मा तो अम्मा छोडो मिया दादा बाप बन गए। भाई था वो भतीजा हो गया। यानी रिश्तो की खिचड़ी बनकर तैयार हो गई।
इस खिचड़ी का खुलासा तब हुआ जब सही मुतवल्ली को इसकी जानकारी मिली। जब सभी कागजात निकले तो इतने बड़े फर्जीवाड़े का मामला सामने आया। रिश्ते अब रिश्ते नही बल्कि एक गाली बन चुके थे। मामले में वक्फ बोर्ड ने इन्ही फर्जी दस्तावेज़ को संज्ञान लेकर नजमा खातून को मुतवल्ली तो बना दिया और नजमा खातून संपत्ति की लालच में मालकिन होने का दावा तो कर बैठी मगर खुद के लिए एक बड़ी मुसीबत मोल लिया। सही मुतवल्ली ने जब स्थानीय थाने आदमपुर में इसकी शिकायत दर्ज करवाना चाहा तो शायद तत्कालीन थाना प्रभारी को तरस नजमा खातून के ऊपर आ गया और उन्होंने मामला दर्ज नहीं किया।
इसके बाद मुतवल्ली सैयद वजीह-उल-हक ने अदालत का सहारा लिया। अदालत में उन्होंने मामला 156(3) में दाखिल किया। इसकी जाँच जब थाना स्थानीय पर आई तो थाना भी इस रिश्तो की खिचड़ी को देख कर अचंभित है। मामले में अदालत का दखल होने के बाद अब स्थानीय पुलिस अदालत के ही दिशा निर्देश के साथ काम कर सकती है। मगर इतने बड़े फ्राड की जानकारी होने के बाद पुलिस कर्मी भी अचंभित है कि खुद को सीधा साधा कहने वाली महिला किस हद तक अपने फायदे के लिए गिर चुकी है।
हमारे प्रतिनिधि ने इस सम्बन्ध में जब नजमा खातून के वकील से बात करने की कोशिश किया तो उन्होंने बात करने से ही मना कर दिया। वही जब एक अन्य प्रतिनिधि ने मामले में थोडा घूमाफिरा कर दरियाफ्त किया तो उन्होंने कहा कि मुवक्किल अपनी जो डिटेल देता है उसके ऊपर वकील काम करता है। अब मुवक्किल अपनी सही जानकारी ने देकर गलत जानकारी देता है तो वह मुवक्किल द्वारा कारित अपराध है। कोई अधिवक्ता इसका जवाबदेह नही होता है।
वही हमारे एक प्रतिनिधि ने जब नजमा खातून से मुलाकात किया तो उन्होंने लम्बी चौड़ी अपनी खानदानी स्टोरी बताकर खुद को मौलवी अब्दुल अहद की बेटी होना साबित किया, जब हमने उनके द्वारा ही दिए गए दोनों हलफनामे की कापी उनको दिखाई तो वो हमारे प्रतिनिधि को चाय काफी पूछने लगी। झटके सब खत्म हो चुके थे और उन्होंने धीरे से कहा हां वो थोडा वकील से गलती हो गई है पौत्री की जगह उन्होंने पुत्री लिख डाला। हमने सवाल किया कि पौत्री लिखने के लिए पुत्री का भी ज़िक्र होता है, जैसे फलनवा पुत्री धिमकाना पौत्री ढमकाना तो फिर आप कैसा हलफनामा दे रही है जिसमे पिता के नाम का ज़िक्र ही नहीं और पिता दादा को बना डाला। हमारे इस सवाल पर मैडम फिर से भड़क गई और कहा कि मैं सब देख लुंगी तुम लोगो को जो लिखना है लिखो।
बहरहाल, प्रकरण में अदालत ने अपनी रिपोर्ट थाना आदमपुर से मंगवाई है। वही फ्राड करके खुद को फंसता देख नजमा खातून ने भी अपनी दौड़ भाग थाना चौकी को संभालने में तेज़ कर रखा है। अदालत में इस प्रकरण की अगली तारीख आने वाले सप्ताह में पड़ी।
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