तारिक आज़मी
वाराणसी. वाराणसी शहर के आदमपुर थाना क्षेत्र के हनुमान फाटक स्थित डॉ आरिफ अंसारी के हाजरा हॉस्पिटल पर एक कथित पीड़ित ने आरोप लगाया था कि डाक्टर की लापरवाही से उसकी बच्ची की तबियत अधिक ख़राब हो गई और डॉ0 ने उसका इलाज करने से मना कर दिया। इसके बाद मरीज़ के रेफर होने के लगभग 24 घंटो से अधिक समय के उपरांत क्षेत्र के कुछ नेताओं सहित कथित पीड़ित परिजनों ने अस्पताल में आकर हंगामे की स्थिति उत्पन्न क
र दिया था। मौके पर सुचना पाकर पहुची पुलिस ने हंगामे को शांत करवाया। मौके पर मौजूद सूत्र बताते है कि पुलिस को देख कर सियासत की रोटियों को सेकने वाले लोग थोडा हट बढ़ गए थे। जिसके बाद बहुत देर तक परिजन हंगामा नही कर सके और मरीज़ को लेकर चले गये।
डॉ आरिफ अंसारी ने बताया कि इसके बाद जब बच्ची के पैर की गैन्ग्रिंग बढती रही तो फिर उसका इन्फेक्शन दुसरे मरीज़ बच्चो में फ़ैलाने का डर होने लगा। जिसके बाद आखिर में बच्ची को रेफर करके परिजनों के हवाले कर दिया गया। परिजनों को सख्त हिदायत देकर कहा गया था कि वो सीधे मरीज़ को लेकर बीएचयु जाए। मगर परिजन उसको लेकर घर गए और लगभग 24 घंटो से अधिक समय के बाद लेकर दुबारा आये और हंगामा करने की स्थिति बना लिया। उनका कहना था कि इलाज आप ही करो हम कही लेकर नही जायेगे।
डॉ आरिफ अंसारी ने बताया कि कही और इलाज करवा कर आये परिजनों को मरीज़ की वास्तविक स्थिति बताया गया था और इसके सम्बन्ध में अनापत्ति पत्र भी हस्ताक्षर करवाए गए थे जो अभी भी अस्पताल की संपत्ति है। किसी भी जाँच में उसको देखा जा सकता है। मगर परिजन शायद किसी सियासत का शिकार होकर हंगामा करने लगे जिसके कारण मेरा और मेरे अस्पताल को बदनाम करने की साजिश के तहत उनके साथ के लोगो ने सोशल मीडिया पर भ्रामक पोस्ट चलाना शुरू कर दिया।
कैसे आया सियासत का चेहरा सामने
प्रकरण में शुरू से ही सियासत की बू आ रही थी। परिजन पहले ही बातचीत में कह रहे थे कि बच्ची को कही और इलाज करवाने के बाद ठीक न होने की स्थिति में लेकर आये थे। मरीज़ का जिस डाक्टर से इलाज चल रहा था उसने जवाब दे दिया था। मगर हम उम्मीद के साथ यहाँ आये थे। इसी क्रम में सियासत तब बेनकाब हुई जब एक राजनैतिक दल के नेताओ के साथ कथित पीड़ित परिवार आज आदमपुर थाने आया और पुलिस को जाँच हेतु एक शिकायती प्रार्थना पत्र दिया। पुलिस ने प्रार्थना पत्र जाँच हेतु अपने पास रख लिया और निष्पक्ष जाँच का आश्वासन दिया है।
इस परिस्थिति में कुछ बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है। कथित पीड़ित परिवार के साथ जाने वाले समाजसेवको का सम्बन्ध उस क्षेत्र से नही है जिसकी बच्ची मरीज़ थी। बल्कि उनमे एक का सम्बन्ध उसी क्षेत्र से है जिस क्षेत्र में हाजरा अस्पताल है। दूसरा सबसे बड़ा सवाल जिस परिवार को कथित रूप से पीड़ित बताया जा रहा है उसने शिकायत पत्र देते हुवे आरोप लगाया है कि डॉ आरिफ अंसारी ने इलाज के नाम पर 60 हज़ार रुपया लिया है। जबकि जब परिजन हंगामा कर रहे थे तो उन्होंने पुलिस के सामने ये बात कही थी कि इलाज में कुल दस हज़ार रुपया उन्होंने हाजरा अस्पताल को दिया है। फिर रातोरात अचानक दस हज़ार आखिर 60 हज़ार बन कैसे गया।
शायद नेता जी जो पुरे प्रकरण में संदिग्ध स्थित में है उनको ये बात पता हो कि आखिर रातो रात कैसे दस हज़ार साठ हज़ार में तब्दील हो गया। दुसरे शिकायत पत्र में शिकायतकर्ता का दावा है कि डॉ आरिफ अंसारी द्वारा गलत इंजेक्शन दिया गया था। अब ये बात समझ से बाहर है कि आखिर जब मरीज़ को किसी अन्य चिकित्सक को दिखाया नही गया तो फिर कैसे पता कि मरीज़ को गलत दवा दिया गया है। डाक्टर की लापरवाही साबित करने के लिए मरीज़ की मेडिको लीगल जांच ज़रूरी होती है। फिर आखिर वो जाँच किस अधिकारी और चिकित्सक के पैनल द्वारा किया गया है।
वैसे शिकायती पत्र में शिकायत्कर्ता ने खुद स्वीकार किया है कि बच्ची जी स्थिति अत्यंत गंभीर थी। अब आप खुद सोचे कि आखिर क्या कोई डाक्टर ऐसे किसी को स्थिति बताये बिना एडमिट कर लेगा। कहने को तो नेता लोग सिर्फ कथित गरीब की मदद कर रहे है। हम मान भी लेते है कि नेता जी गरीब की मदद कर रहे है। मगर फिर वही सवाल उठेगा कि क्या मदद झूठ के बुनियाद पर होगी।
बहरहाल, पुलिस शिकायत पत्र में लगे आरोपों की जाँच कर रही है। शहर में सपा नेताओं के द्वारा इस बात का खूब प्रोपोगंडा किया जा रहा है। अब देखना होगा कि कथित पीडत क्या प्रकरण में खुद के आरोप साबित कर पाते है अथवा केवल आरोपों तक ही सिमित रहते है। शायद अभी पूरी पिक्चर ही बाकी है।
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