आदिल अहमद
कानपुर। इलाज हर नागरिक का अधिकार है। मगर इंसान के पास पैसे न हो तो वह बिना इलाज के मर जाता है कोई मदद को सामने भी नही आता है। सरकार किसी की भी हो और वह लाख दावे करे, मगर इतिहास उठा कर देख ले, दावे हमेशा खोखले ही साबित हुवे है ज़मीनी हकीकत के सामने। सरकार अस्पताल में बढ़िया सुविधा मिलने की बात हर सरकार करती रही है, मगर आप एक बार सरकार अस्पताल हो आइये, सुविधा तो दूर डाक्टर से लेकर वार्ड बॉय तक का व्यवहार कैसा होता है खुद देख ले। आखिर इलाज के लिए गरीब क्या करे ? सडक पर लोगो से सहायता भी नही मांग सकता है क्योकि मक्कारी करके लोगो से सहायता मांगने वालो के कारण असली ज़रूरतमंद को भी सहायता नही मिल पाती है।
चकरपुर मंडी का मजदूर सुबोई महंती अपनी पत्नी राधिका (43) का इलाज कराने के लिए दो दिन पहले भी हैलट आया था। डॉक्टरों ने परचे पर दवा लिखकर उसे टरका दिया। राधिका को न्यूरो की दिक्कत थी। परसों यानी रविवार को सोमा दंडी स्वामी सब्जी लेने मंडी गए थे। राधिका की तबीयत खराब देख हैलट जाने की सलाह दी। महंती द्वारा हैलट के हाल बताने के बाद स्वामी ने उर्सला ले जाने को कहा। फोन किया तो एंबुलेंस भी आ गई। राधिका को उर्सला ले जाया गया। सीटी स्कैन मशीन बंद होने के कारण डॉक्टरों ने हैलट रेफर कर दिया और कहा कि उर्सला में न्यूरोलॉजिस्ट भी नहीं है।
इसके बाद स्वामी से सुबोई ने फोन पर बात कराई तो डॉक्टरों ने उनसे भी यही कहा। राधिका को हैलट लाया गया तो इमरजेंसी में जूनियर डॉक्टर ने सीटी स्कैन लिख दिया। मजदूर महंती की जेब में केवल 100 रुपये थे, वो गरीब इससे कही अधिक की रिपोर्ट सीटी स्कैन कैसे करवाता। उसने डाक्टरों से मनुहार किया, गुहार लगाईं, हाथ तक भी जोड़े होंगे, लेकिन डॉक्टर ने नहीं सुनी। एंबुलेंस वाला पेड़ के नीचे रोगी को उतारकर चला गया। महंतो ने फिर स्वामी को स्थिति बताई। उन्होंने डॉक्टर से बात कराने के लिए कहा तो डॉक्टर ने झिड़ककर मना कर दिया।
महंतो पत्नी और बेटी के साथ सारी हैलट इमरजेंसी के पास पड़ा रहा। सुबह पत्नी की मौत हो गई। राधिका को देखने आए सोमा दंडी स्वामी ने बताया कि इस संबंध में उन्होंने मुख्यमंत्री के फोन पर भी सूचना दी थी। बाद में इमरजेंसी प्रभारी डॉ। विनय कुमार ने महिला के शव को उसके घर भिजवा दिया। बता दें हैलट में सीटी स्कैन की व्यवस्था तो है लेकिन प्राइवेट हाथों में है। इस वजह से यहां भी सीटी स्कैन के 2500 से 3000 रुपये लगते हैं। प्राइवेट में इसके 6000 तक लिए जाते हैं।
इस सम्बन्ध में हैलट की प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ। ज्योति सक्सेना का कहना है कि यह गंभीर मामला है। कैमरे से पता किया जाएगा कि रोगी कब इमरजेंसी में लाई गई और उसे किसने देखा। रोगी को भर्ती क्यों नहीं किया गया? इसकी जाँच सीसीटीवी फुटेज के द्वारा किया जायेगा। दोषियों पर कार्यवाही भी होगी। वही सबसे अचम्भे की बात ये है कि मेडिकल कालेज के प्राचार्य को तो प्रकरण ही जानकारी में नही है। उन्होंने कहा कि अधिकारियो से बात करके बता सकता हु।
बहरहाल, एक गरीब बिना इलाज के इस दुनिया से रुखसत हो चुकी है। शायद मदद का कोई हाथ उठता तो उसका इलाज हो जाता। जिस डाक्टर ने उसे सिटी स्कैन लिखा था वो चाहता तो वही सिटी स्कैन सस्ते में हो जाता। साथियों की मदद वो ले सकता था। मगर ये प्रोफेशन है साहब, डाक्टर साहब कहेगे कि ऐसे रोज़ ही दो चार मरीज़ आते है। उनका कहना भी सही है। क्या सरकारी तंत्र इस प्रकार की जाँच को निःशुल्क नहीं करवा सकता है। अब सत्ता समर्थक कहेगे कि सरकारी सुविधा सस्ते दर पर उपलब्ध है, क्यों नही स्वस्थ्य हेतु कार्ड बनवाया। सब मिलाकर सबके पास जवाब है, मगर निस्तारण किसी के पास नही है। गरीब इलाज के अभाव में मर चुकी है।
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