तारिक आज़मी
हाथरस रोज़ ब रोज़ नई नहीं घटनाओं का केंद्र बनता जा रहा है। मृतक गैंगरेप पीडिता का आवास ही नहीं बल्कि पूरा गाव छावनी में तब्दील है। किसी को अन्दर जाने की इजाज़त नहीं है। पत्रकारों पर तो ऐसे पहरे लगाये जा रहे है जैसे वो पत्रकार नही बल्कि ख़ुफ़िया एजेंट हो। शायद जिला प्रशासन मामले में कुछ क्या बहुत कुछ छुपा रहा है। किसी राजनैतिक दल को गाव के अन्दर नही जाने देने की बात तो थोडा समझ में आती है कि प्रशासन राजनैतिक पहलू से दूर इस गाव को रखना चाहता होगा। वही बात ये भी है कि आखिर क्यों ? क्या लोकतंत्र का गला घोट कर हाथरस का प्रशासन सब कुछ अपने हाथो में ही लिए रहना चाहता हिया।
वही दूसरी तरफ आखिर पीड़ित के परिजनों को क्यों किसी से मिलने नही दिया जा रहा है। आखिर क्यों उनको नज़रबंद रखा हुआ है। आखिर डीएम साहब क्यों नही पत्रकारों को गाव के अन्दर जाने देना चाहते है। आखिर कौन सा ऐसा सच है जिसके खुल जाने का डर डीएम साहब को सता रहा है। सवाल कई है। मगर शायद डीएम साहब जवाब हमारा भी नही देंगे। अगर किसी को जवाब देना भी चाहा तो मर्यादाओ का बंधन तोड़ कर डीएम साहब जवाब एक महिला पत्रकार को देते हुवे दिखाई दिए। इस वीडियो को देख कर आप खुद शर्मसार हो जायेगे। आखिर एक जिले के मुखिया से ऐसा शब्द मुह से निकल कैसे गया।
क्या हाथरस में लोकतंत्र और सच का गला घोटा जा रहा है। रात के ढाई बजे अकेले में लाकर बिना परिजनों के पीडिता के शव का अंतिम संस्कार आखिर डीएम साहब ने किस नियम और कानून के तहत करवाया था। अगर मीडिया वहा न होती तो ये सच भी वही दम तोड़ देता कि पीडिता की लाश तक को देखने का मौका परिजनों को नही मिला। आखिर डीएम साहब को उसका अंतिम संस्कार करवाने की इतनी जल्दी क्यों थी ? आज जिस भारी फ़ोर्स जिसको आप फ़ौज की भी संज्ञा दे सकते है डीएम साहब केवल पत्रकारों को गाव में न जाने देने के लिए लगाए हुवे है उसका एक हिस्सा भी लगवा देते और शांति व्यवस्था के बीच पीडिता का अंतिम संस्कार होता।
मगर शायद डीएम साहब ने शायद पूरी उर्जा पत्रकारों के अधिकारों का दमन करने के लिए बचा रखा था और थोड़ी सी फ़ोर्स के साथ अंतिम संस्कार नियमो को ताख पर रखकर करवा दिया और अब उसी बची हुई उर्जा के साथ पत्रकारों के अधिकारों का हनन कर रहे है। आखिर डीएम साहब चाहते क्या है ? क्या सच का गला दबा देना चाहते है। चलिए एसआईटी रिपोर्ट के बाद एसपी साहब और साथ में चार पुलिस कर्मियों पर निलंबन की कार्यवाही हो गई। मगर एक बात बताये डीएम साहब, आप अपने एसडीएम से लेकर चिकित्सा विभाग पर कब रिपोर्ट देंगे। ज़िंदा थी तो इंसाफ नहीं दिया। तड़प रही थी तब इलाज ठीक नहीं दिया। मर गयी तो इज़्ज़त से विदा नही होने दिया। बाप को बंधक बनाकर सहमति लिखाई। बेटी का गम भी मनाने नही दिया। बूटों की धमक से अब गांव दहला रहे है।
डीएम साहब बेटियों ने ही इस हाथरस की बेटी को इन्साफ दिलवाने का ज़िम्मा उठाया है। मगर जिस प्रकार से आप एक महिला पत्रकार से बात कर रहे है आपको बेटी का सम्मान कितना आता है दिखाई दे रहा है। आखिर ऐसी क्या मज़बूरी है जो आपने कसम जैसे खा रखा है कि इन्साफ का गला घोट देंगे। सच दबा कर रख देंगे। बस मीडिया को गाव के अन्दर नही जाने देंगे। आखिर इतनी बेचैनी क्यों है ?
इतने जघन्य केस के बाद पीड़ित परिवार के बच्चे को जो मीडिया को देख कर दौड़ता हुआ आ रहा था उनसे अपना दुःख कहने के लिए एक कांस्टेबल डांट रहा है। क्या साहब, तानाशाही है क्या आपके जिले में ? महिला पत्रकार तनुश्री का फोन टेप हुआ, हम नही जानते है कि किसके आदेश पर हुआ, मगर क्या ये नियम के तहत है। शायद नहीं। और क्या मिल गया आपको ? तनुश्री ने वही बात किया जो कोई भी खोजी टाइप का पत्रकार करेगा। उसको सार्वजनिक करके क्या साबित करना चाह रहा है प्रशासन, क्या इसको राजनैतिक रूप देना चाहता है।
चोर जैसे शब्दों से महिला पत्रकारों को संबोधित करने वाले आपके जिले के पुलिस कर्मियों को बात करने की तमीज नही है क्या ? चोर वह होता है जो छुपाता है। पत्रकार दिखाता है। आपके पुलिस वाले उनको चोर कहकर पुकार रहे है। कैसे हिम्मत आखिर पड़ रही है उन पुलिस कर्मियों की, किसने शह से रखा है। आखिर आप करना क्या चाहते है। आप खुद को हाथरस का बादशाह-ए-वक्त और पत्रकारों को अपनी रियाया समझ रखे है क्या ? क्या जो पुलिस कर्मी महिला पत्रकारों से ऐसी अभद्रता कर रहे है उन पर कोई कार्यवाही कभी होगी। क्या बतौर कलेक्टर आपकी इस सम्बन्ध में ज़िम्मेदारी नही बनती है। आखिर कैसे उन पुलिस वालो की हिम्मत हो रही है कि वो पत्रकारों से दुर्व्यवहार करे।
इस महिला पत्रकार को देखे, एसडीएम साहब ने इस बेटी को धमकी दिया है। एसडीएम साहब के सामने खड़े होकर पूरा मंच इस बहादुर बेटी ने दे डाला कि आप अपनी बात कहो। क्या गलत दिखा रहे है बताओ। क्या कहना चाहते हो कहो, मगर एसडीएम साहब कहना सुनना तो छोड़े अपना नाम तक नही बता पाए है। केवल खुद का सर झुका कर खड़े है। आखिर कैसे डीएम साहब, किसके आदेश पर। मीडिया कर्मियों को आपने गाव के अन्दर जाने से रोका है तो वही लिखित आदेश तो पत्रकारों को दिखा दे।
हाथरस की बेटी को इन्साफ दिलाने के लिए मीडिया की बेटियाँ खडी हुई है। आप उनके जज्बे और उनके हिम्मत की सराहना करे। अगर सहयोग नही कर सकते है तो अड़चन भी न बने। कम से कम तमीज से बात तो कर सकते है। आपके अधिकारी राज्यसभा सदस्यों को धकेलते है। उनके साथ धक्कामुक्की करते है। राहुल गांधी जो चुने हुवे लोकसभा सदस्य है की कालर तक एक अधिकारी ने पकड़ी जिसका फोटो वायरल हो रहा है। आखिर क्या तानाशाही बना रहे है डीएम साहब ? आप जो भी छिपा रहे है डीएम साहब उसको आप छिपा सकत है, मगर ध्यान रखियेगा कि छिपाते हुवे कही किसी ऐसा वक्त तक न मामला आ जाए कि आपके खुद के बच्चे आपसे सवाल पूछे और आप उनको खुद ही जवाब न दे पाए। हाथरस की बेटी भी अपने परिवार का चश्म-ओ-चिराग है। जो बेटियां मीडिया की इस मुद्दे पर समाचार कवरेज के लये गई है वो भी अपने परिवार का चश्म-ओ-चिराग है। आज उनका परिवार जब अपनी बेटियों से साथ ऐसा दुर्व्यवहार होते देख रहा होगा तो सोचिये डीएम साहब उनके ऊपर क्या बीत रही होगी। उनके दिमाग में क्या तस्वीर उभर रही होगी।
नोट – इस पुरे लेख में सभी वीडियो अलग अलग समाचारों के वायरल वीडियो है। जिसको जैसा आया वैसा पोस्ट किया के तर्ज पर हमने प्रयोग किया है।
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