आदिल अहमद
नई दिल्ली: कांग्रेस के जाने-माने नेता अहमद पटेल नहीं रहे। वे लंबे समय तक कोरोना से लड़ते रहे, लेकिन अंततः यह लड़ाई वे हार गए। वे 71 साल के थे। कांग्रेस की कई कामयाबियों में उनका बड़ा योगदान रहा। वे ऐसे समय गए, जब पार्टी को उनकी ख़ासी ज़रूरत थी। वे कांग्रेस का नेपथ्य थे। सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव जो अक्सर पर्दे के पीछे रह कर काम करते थे। सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस ने जो शानदार दिन देखे, उनमें अहमद पटेल की बड़ी भूमिका रही।
उनका निधन ऐसे समय हुआ है, जब कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रही है। इस दौरान संगठन के भीतर जो उठापटक चल रही है, उसमें भी अहमद पटेल अपने आलाकमान के लिए बेशक़ीमती साबित होते। उनको खोकर कांग्रेस ने अपना एक मज़बूत सिपाही खो दिया है।
अहमद पटेल साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के पीछे रणनीतिक सेनापति रहे। तमाम उठापटक के बीच उनकी निष्ठा असंदिग्ध रही। पार्टी के लिए साधन जुटाने का काम हो, किसी संकट से किसी को उबारने का काम हो, अहमद पटेल इसमें माहिर थे। वे उन गिने-चुने नेताओं में थे जिनकी तमाम दलों के भीतर तूती बोलती थी।
राजनीति में जिसे असंभव को साधना कहते हैं, वह पटेल ने कई बार कर दिखाया। ज़्यादा दिन नहीं हुए, जब गुजरात से पांचवीं बार राज्यसभा की सदस्यता हासिल करते हुए उन्होंने कई राजनीतिक-क़ानूनी बाधाएं पार कीं। वे कुल आठ बार सांसद रहे। तीन बार लोकसभा के लिए भी चुने गए। पहला लोकसभा चुनाव 1977 में जनता पार्टी की आंधी के बावजूद जीता। सन 1980 और 1984 में फिर सांसद बने। भारतीय राजनीति के बदलते मौसमों को उन्होंने करीब से देखा, लेकिन कभी बदले नहीं।
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