तारिक़ आज़मी
नशा, इस शब्द को सुनते हुवे आपके ख्याल में किसी पान के खोमचे से लेकर शराब के ठेके और बार तक की याद आएगी। बहुत अधिक अगर सोचा तो हिरोईन से लेकर चरस और गांजे की चिलम तक की याद आयेगी। आप सोच भी नहीं सकते कि नशे जो इंसानियत को नास कर रहे है उसकी पकड़ मेडिकल स्टोर तक अधिक पहुच रही है। आपको पुरे मामले की जानकारी देने के पहले बताते चले कि शायद ये पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी स्टोरी के लिए मुझको दरबदर की ठोकरे खानी पड़ी हो। शायद ये पहली बार मेरी पुरे कैरियर में हुआ है कि इस स्टोरी के निर्माण के लिए हमको घंटो तक अलग अलग मेडिकल स्टोर के पास खड़े रहना पड़ा है। शायद ये पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई स्टोरी सिर्फ स्टोरी नही बल्कि इंसानियत और नवजवान को बचाने के लिए एक मुहीम के तरह काम करना पड़ा है।
नशे की जड़
बहरहाल, हम नशे जैसे लफ्ज़ पर वापस आते है। बड़े नशे के तौर पर लोग हिरोईन और चरस जैसे नशे को देखते है। वैसे हिरोईन की एक पुडिया 50 रुपयों में अमूमन बिकती है और एक नशेडी एक दिन में एक पुडिया से लेकर दो पुडिया तक पीता है। भरिया गांजा की पुडिया 150 रुपये या फिर फुट में 80 की पुडिया आती है। 150 की पुडिया पुरे 3 दिन चलती है जबकि 80 की पुडिया को भी दो दिनों तक गजेडी का नशा दूर हो है। वही चरस जिसको नशे के कारोबार में बत्ती नाम से पुकारा जाता है वह थोडा महंगा होता है और अमूमन सिगरेट के साथ भर कर ही मिलता है जिसकी कीमत 300 के पार होती है। ये बत्ती अक्सर केवल विदेशी सैलानी ही उपयोग करते है। शराब वगैरह थोडा सर्वमान्य जैसा नशा होता जा रहा है। वही बियर तो शौक बनता जा रहा है।
इस सबसे ऊपर ड्रग्स जैसे शब्द को हम सुनते है। हमारे ख्याल में आने के बाद कुछ नींद की गोलियों के पत्ते और एक नशेडी द्वारा 10-12 गोलिया एक साथ खाने का ख्याल आ जाता है। मगर ये नशे थोडा इससे और भी बहुत आगे तक है जिसको हम सोच भी नहीं सकते है। इसमें सबसे बड़ा नशा है “आइयोड़ेक्स” का जिसको नशेडी ब्रेड पर बटर की तरह लगा कर खाते है। इसके सेवन करने वाले अक्सर आपको सडको पर लुढ़कते और मैले कुचैले से दिखने वाले ही दिखाई देंगे। उनको देख कर ही आप समझ जायेगे कि अमुक इंसान नशेडी है। ऐसे नशे करने वाले लोग कई कई दिनों तक नहाते नही है। क्योकि सर पर पानी पड़ने से उनका नशा हल्का हो जाता है। इस वक्त सबसे अधिक नशा जिसने नवजवानों में अपना पैर फैला रखा है वह है “कोडिन” का नशा।
क्या है कोडिंन
कोडिन एक कफ सिरप का एक फार्मूला है। 90 रुपयों से लेकर 110 रुपये तक की एक शीशी इसकी आती है। इसको नशेडी “एमबी” के नाम से पुकारते है। अमूमन कोडिन खासी में काम आने वाला सिरप है। इसको चिकित्सक जब किसी की खांसी नही रूकती है और खांसी रोकना अधिक आवश्यक होता है तभी रिकमेंड करते है। “कोडिन” के कारण पेशेंट को नींद आती है, साथ ही साथ गहरी नींद के वजह से उसको आराम मिलता है। इस नींद के असर के कारण कोडिंन ने खुद को नशे के कारोबारियों का चहिता और नशेड़ियो का इश्क बना डाला।
जो सिरप महज़ 10 एमएल देकर मरीज़ को गहरी नींद के साथ खांसी में आराम देता है। वही कोडिन इन नशेड़ियो द्वारा पूरा 100 एमएल एक साथ प्रयोग किया जाने लगा है। एक शीशी पूरी एक बार में पीने के बाद इनको मीठी से मीठी चाय चाहिए होती है और फिर उसके बाद शुरू होता है उड़ान का सिलसिला। शराब के बदले कोडिन लेना इनके लिए आसान होता है। एक साँस में सिरप अन्दर, उसके अलावा मुह से महक भी नही। नशा भी ज़बरदस्त।
इसके साथ होने वाली प्रॉफिट को अगर देखे तो वो ज़बरदस्त है। एक रिटेलर एक एक शीशी सिरप 90 से 110 रुपयों तक का देता है। जिसकी उसको खरीद महज़ 32-38 रूपये पड़ती है। इस खरीद और बिक्री के बीच का एक बड़ा मुनाफा लगभग एक शीशी पर 50 से लेकर 80 रुपयों का होता है। एक बिक्री करने वाला व्यक्ति कम से कम एक दिन में 100 शीशी बेच लेता है। यानी 5 हज़ार कम से कम रोज़ का मुनाफा। इस मुनाफे को अगर 30 दिन के कार्यो से मिला कर देखे तो मुनाफे इतने है जितने में आप एक साल में ताजमहल बनवाने की सोचने लगेगे।
न पुलिस की झकझक, न किसी को देना रकम, कस्टमर खुद आयेगे
इस कारोबार के बड़े मुनाफे को देखते हुवे अमूमन हिरोईन की बिक्री करने वाले भी इसकी बिक्री गली मुहल्लों में करते नज़र आयेगे। लगभग शहर के हर एक क्षेत्र में इसके सप्लायर दिखाई दे जायेगे। मगर चंद रुपयों का माल एक बड़ी रकम बनकर उभरता है तो किसको ये पैसे काटेगे। कारोबार भी कुछ ऐसा कि न पुलिस की झक और न ही किसी को पैसे देने पड़ेगे। कोई कानून कायदा नही। अगर पुलिस ने देखा भी तो क्या करेगी पुलिस। उसके समझ में तो यही आयेगा कि दवे का कारोबार कर रहा है। बस यही सोच भी रहती है पुलिस की। वैसे भी वीआईपी ड्यूटी से लेकर सड़क पर यातायात दुरुस्त करती पुलिस के पास इसके लिए फुर्सत कब मिल पायेगी। हकीकत भी यही है कि उसको फुरसत ही नहीं मिलेगी।
बहरहाल, गली मुहल्लों का सहारा लेकर इसका कारोबार जोरो शोर से जारी है। महज़ 90 रुपयों तक के खर्च में ही इसके नशे में चूर होकर युवक सडको पर ही चलते हुवे आसमान में उड़ते हुवे दिखाई दे जायेगे। चाय की दुकानों पर इसको पीकर चाय लेकर साथ में थोड़ी शक्कर और डलवा कर पीते हुवे युवक हर मुहल्लों में दिखाई दे जायेगे। रोज का कूड़ा अगर शहर में उठा कही आपको दिखाई दे जाये तो उसमे काफी मात्रा में कोडिन की शीशी होती है। खबरों का सिलसिला जारी रहेगा, जल्द हम इस सम्बन्ध में बड़े खुलासे करेगे कि कैसे ये केवल नॅशनल ही नहीं इंटरनेश्नल कारोबार बनता जा रहा है। कैसे सफेदपोश लोग इस कारोबार में खुद को लालोलाल किये है। जुड़े रहे हमारे साथ।
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