तारिक़ आज़मी
वाराणसी। शिवपुर थाना प्रभारी के खाली पड़े पद पर तेजतर्रार इस्पेक्टर के तौर पर देखे जाने वाले राजीव रंजन को प्रभार मिला है। राजीव रंजन को शिवपुर थाने का प्रभार मिलने के बाद आशा एक बार फिर से बलवती हुई है कि एक साल से अधिक समय से बंद पड़े नितेश सिंह बबलू हत्याकांड का खुलासा होगा। ऐसा ख़ास तौर पर इसलिए भी देखा जा रहा है क्योकि एक पत्रकार वार्ता में इस घटना के संबध में सवाल उठाने पर वाराणसी के पुलिस कप्तान ने बड़े ही शालीन भाव से जवाब दिया था कि “इस प्रकरण की फाइल का अध्यन हमने खुद किया है, पूर्व में हुई इस घटना का खुलासा अब तक हो जाना चाहिये था, परन्तु नहीं हुआ है। शिवपुर के थाना प्रभारी के पद पर जिसकी भी नियुक्ति होगी उसके प्राथमिकता में यह खुलासा रहेगा।”
कैसे और कब हुआ था नितेश सिंह बबलू हत्याकांड
नितेश सिंह बबलू की हत्या 30 सितम्बर 2019 दिन सोमवार को हुई थी। उस दिन की वह सुबह आम दिनों के तरीके से ही थी। सभी अपने कामो में व्यस्त थे। वाराणसी तहसील परिसर में भी सभी कार्यालय खुले हुवे थे। सभी अपने कामो में व्यस्त थे कि अचानक गोलियों की तड़तडाहट से पूरा परिसर ही नहीं आस पास का इलाका गुजने लगा था। कार्यालय में काम करने वाले सभी लोग दुबक गए थे। जो जहा खड़ा था वही खुद को छुपाने की कोशिश कर रहा था। सिर्फ दो थे वो, और पुरे सैकड़ो की भीड़ के बीच उन्होंने गोलियों से अपने दुस्साहस का एक इतिहास उस दिन रचा था।
दुस्साहस भी ऐसा वैसा नही, गोलियों की गूंज से इलाके को कपाने के बाद वो गये, मगर फिर पटल कर वापस आये और देखा कि जिसको वो मारने ये थे वो मरा कि नही। देखने के बाद अपनी पल्सर गाडी से वापस चले गये। उनके जाने के बाद भी लोग खौफजदा था। कोई पास नही जा रहा था। तो एक लग्जरी वाहन में एक व्यक्ति मरा पड़ा था। उसकी कमर पर लाइसेंसी पिस्टल थी। जिसको शायद उसने अपनी जान बचाने के लिए खुद की सुरक्षा हेतु लिया होगा, मगर उसको निकाल पाने तक की मोहलत मौत ने नही दिया। गाड़ी बुलेट प्रूफ थी, मगर वह भी उसकी जान नही बचा पाई थी। पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस हत्याकांड में प्रतिबंधित बोर की पिस्टल .30 का भी प्रयोग हुआ था
मृतक की शिनाख्त नितेश सिंह बबलू के रूप में हुई। सहेली बस का मालिक नितेश सिंह बबलू खुद भी एक हिस्ट्रीशीटर था और लोहिया नगर, सारनाथ में उसका निवास था। मृतक चंदौली जिले के धानापुर थाना क्षेत्र के ओदरा का मूल निवासी था। बबलू के पिता वन विभाग में रेंजर से सेवानिवृत्त हैं। बबलू वन विभाग में ठेकेदारी भी करता था। गाजीपुर-वाराणसी रूट पर सहेली नाम से बस चलती है। बबलू कई कार्यालय में कैंटीन भी चलवाता था।
नितेश सिंह बबलू हत्याकांड के सफल खुलासे के लिए तत्कालीन कप्तान ने कई टीम बनाया। हत्याकांड के कारण थाना प्रभारी शिवपुर पर कार्यवाही हुई और घटना का खुलासा करने के लिए शिवपुर थाना क्राइम एक्सपर्ट के हवाले किया गया। घटना के सफल खुलासे के लिए जहा एक तरफ क्राइम ब्रांच टीम तत्कालीन प्रभारी विक्रम सिंह के नेतृत्व में काम कर रही थी। तो शिवपुर पुलिस टीम भी अपना काम कर रही थी। वही क्राइम पर बढ़िया पकड़ रखने वाले तत्कालीन थाना प्रभारी लंका भारत भूषण तिवारी भी अपनी टीम के साथ काम कर रहे थे।
कहा रुका मामला
घटना के खुलासे के लिए सभी टीम जी जान लगाये हुई थी। सफेदपोशो पर हाथ डालने के लिए “लोड कौन लेगा?” जैसे शब्दों का सामना करना आम बात है। वही दूसरी तरफ घटना में जौनपुर के सफेदपोश से लेकर लखनऊ के सफेदपोशो तक की कड़ियाँ जुड़ रही थी। इस क्रम में घटना के नज़दीक तक दो टीम पहुच रही थी कि तभी भारत भूषण तिवारी को इस घटना से अलग करके दूसरा टास्क दे देने की चर्चाये विभाग के सूत्रों से प्राप्त हु। दूसरी तरफ तत्कालीन क्राइम ब्रांच प्रभारी विक्रम सिंह ने अपनी जी जान लगा दिया था।
विक्रम सिंह का हुआ ट्रांसफर और ठन्डे बस्ते में गया केस
इस दरमियान सफेदपोशो का बोलबाला काम करता हुआ दिखाई दिया। तत्कालीन क्राइम ब्रांच प्रभारी विक्रम सिंह और तत्कालीन लंका थाना प्रभारी भारत भूषण तिवारी ने जी जान लगा रखा था। भारत भूषण तिवारी की सुई शूटर के नाम पर आजमगढ़ के एक अपराधी और दुसरे चोलापुर के मूलनिवासी गिरधारी लोहार पर जाकर रुकी। सूत्र बताते है कि इस दरमियान भारत भूषण को केस से अलग किया गया था।
दूसरी तरफ तत्कलीन क्राइम ब्रांच प्रभारी विक्रम सिंह ने अपनी जी जान इस केस के खुलासे को झोक रखा था। विक्रम सिंह ने मामले के सफल खुलासा अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया हुआ था। सूत्र बताते है कि विक्रम सिंह ने एक लम्बी जद्दोजेहद के बाद गिरधारी लोहार का नाम घटना में खोल दिया। जिसके बाद विक्रम सिंह का वाराणसी से ट्रांसफर अन्य जनपद कर दिया गया और उनको भी केस से अलग कर दिया गया।
कहा से आया दुबारा केस चर्चा में
एक बड़े अपराधिक इतिहास रखने वाले गिरधारी लोहार पर इनाम घोषित होने के बाद मामला दुबारा चर्चा में आया था। गिरधारी के गिरफ़्तारी के लिए कुछ प्रयास शुरू भी हुवे थे मगर टीम वर्क की एक बड़ी कमी नज़र आई थी। गिरधारी के उस समय बनारस में होने की संभावना थी। पुलिस उसकी गिरफ़्तारी के लिए प्रयासरत थी। दूसरी तरफ अपने मामूर के हिसाब से गिरधारी सरेडर करने की कोशिश में था। इस दरमियान चली जद्दोजेहद में गिरधारी पुलिस के हाथो में आने के पहले ही रेत की तरह फिसल गया और वापस केस ठन्डे बसते में चला गया।
तत्कालीन क्राइम ब्रांच प्रभारी विक्रम सिंह का ट्रांसफर गैर जनपद हो चूका था, और शब्द वही “लोड कौन लेगा” का उत्तर नही मिल रहा था। गिरधारी वापस फरार हो चूका है और पुलिस एक बार फिर से हाथ मल रही है। अपराध को लगभग 14 महीने गुज़र चुके है और पुलिस के हाथ पूरी तरह खाली है।
कौन था नितेश सिंह बबलू
ये भी एक हकीकत है कि मृतक बबलू एक हिस्ट्रीशीटर था। उस पर हत्या, मारपीट, जमीन कब्ज़ा और रंगदारी मांगने के कई मुक़दमे दर्ज थे। 2007 में डॉ शिल्पी राजपूत के पति डॉ डीपी सिंह की हत्या के बाद बबलू ने जरायम की दुनिया में जगह बनायी। इसके बाद उसकी पहचान पूर्वांचल के एक चर्चित माफिया के धुर विरोधी बदमाश के रूप में बनी। पिछले एक साल से उसकी घनिष्ठता मुन्ना बजरंगी गैंग के एक कुख्यात बदमाश से बढ़ती चली गई थी।
नहीं कर सकी है अभी तक पुलिस गिरधारी को गिरफ्तार
एक बड़ा अपराधिक इतिहास रखने वाले गिरधारी विश्वकर्मा उर्फ़ गिरधारी लोहार को अभी तक पुलिस गिरफ्तार नही कर सकी है। हमेशा उसने अदालत में आत्मसमर्पण किया है। इस बार गिरधारी सरेंडर भी नहीं कर पाया और पुनः फरार हो गया। पुलिस का फोकस एक बार फिर इस केस पर कम हो गया और वापस ये फाइल धुल खाने लगी है। अब जब राजीव रंजन शिवपुर थाना प्रभारी बनकर आये है तो एक आशा उनसे जागी है कि घटना का अब सफल खुलासा हो जाए।
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