तारिक़ आज़मी
वाराणसी में किट्टू के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के बाद वाराणसी के पुलिस महकमे ने चैन की साँस लिया है। वही सूत्रों की माने तो नेक्स्ट टारगेट मनीष सिंह सोनू पर पुलिस ने ध्यान केन्द्रित कर रखा है। पुलिस सनी सिंह गैंग का पूरा खात्मा करने की तैयारी में है। मगर ध्यान देने वाली बात ये है कि इस गैग के कई छुटभैया जैसे अपराधी अभी भी या तो जेल के अन्दर है अथवा बाहर टहल रहे है। इस दरमियान व्यापारी किट्टू के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद से प्रसन्न दिखाई दे रहे है।
कौन है अज़ीम खान ?
वाराणसी में आरपीएफ के कांस्टेबल रहे करीम खान आरपीऍफ़ कम्पाउंड, मडूआडीह वाराणसी में रहते थे। उन्होंने अपनी बड़ी तमन्नाओं के साथ अपने बेटे का नाम अज़ीम रखा था। मगर शायद उनको नहीं पता था कि उनका अज़ीम एक वक्त आएगा जब अपराध की दुनिया में अज़ीम मुकाम स्थापित कर लेगा। अज़ीम को लोग डाक्टर के नाम से पुकारते थे। किसी तरह इंटर तक पढ़ाई किया और उसके बाद पढ़ाई छोड़ कर अपराध की दुनिया में कदम बढ़ा बैठा।
अज़ीम के अपराध का मुख्य केंद्र शहर में शिवपुर थाना क्षेत्र रहा। बड़ी कम उम्र में ही इसने अपराध में बड़ा नाम कमा लिया। रंगदारी इसका मुख्य पेशा बन गया। इसके ऊपर अकेले शिवपुर थाने में ही एक दर्जन के करीब मुक़दमे दर्ज है। यही नही इसने अपनी रंगदारी का खौफ दिल्ली तक फैला रखा है।
कहा से आया अज़ीम चर्चा में
अज़ीम खान उर्फ़ डाक्टर शुरू से ही मनबढ़ किस्म का युवक था। इसका नाम सबसे पहले बड़े केस में वर्ष 2012 में सामने आया था जब इसने शिवपुर थाना क्षेत्र के भरलई निवासी मार्बल कारोबारी सुशील सिंह से रंगदारी मांगी थी। रंगदारी की रकम नही मिलने पर इसने 28 मई 2012 में सुशील सिंह की हत्या कर डाला। इस हत्या के बाद से अज़ीम के नाम की अपराध जगत में तूती बोलने लगी। इस घटना के ठीक दुसरे दिन ही इसने एक और कारोबारी आशीष जायसवाल से रंगदारी की मांग किया। आशीष की शिकायत पर पुलिस ने माला दर्ज कर उसको प्रोटेक्शन दे दिया।
इसके बाद पुलिस ने अज़ीम उर्फ़ डाक्टर की तलाश जारी कर दिया। इस दौरान इसके तीन साथी एक मुठभेड़ में पकडे गए मगर अज़ीम पुलिस के हाथ नही लगा। जिसके बाद से अज़ीम की रंगदारी का फोन शहर में आना और भी बढ़ गया। एक बड़े कारोबारी विक्की हिमानी से इसने फोन पर पांच लाख की रंगदारी मांगी। पुलिस को सुचना होने के बाद पुलिस ने विक्की को प्रोटेक्शन प्रदान तो किया मगर तत्कालीन शिवपुर पुलिस विक्की के अन्दर विश्वास नही पैदा कर पाई कि वह शिकायत दर्ज करवाता। जिसके बाद विक्की ने अज़ीम से सुलह कर लिया और मामला ढाई लाख की रंगदारी पर तय हुआ।
बताया जाता है कि विक्की ने ये रकम अज़ीम के साथियो को अन्ध्रापुल के पास बुलाकर दिया। सूत्र बताते है कि ये पुलिस की एक बड़ी नाकामी थी, जब प्रोटेक्शन के बावजूद भी रंगदारी की रकम चली गई और अज़ीम के गुर्गे आराम से रकम लेकर फरार हो गए और पुलिस देखती ही रह गई। अधिकतर इसके रंगदारी के फोन तो पुलिस के पास शिकायत के रूप में पहुचे ही नही। पुलिस सूत्रों की माने तो इसके बाद अज़ीम ने मुख़्तार अंसारी गैंग का साथ पकड़ा और इसकी रफ़्तार भी बदती गई। फ़रवरी 2013 में अज़ीम ने बद्नानी सेठ से रंगदारी की मांग किया जिसको लेने के लिए कैंट पर तत्कालीन खुद को समाजसेवक कहने वाला अनवारुल हक़ गया था। मगर सही समय पर पहुची पुलिस ने अनवारुलहक को रंगे हाथो गिरफ्तार कर लिया। इस बार भी अज़ीम पुलिस के लिए एक अबूझ सवाल रहा।
इस दरमियान पुलिस ने कई बार इसकी घेरेबंदी किया मगर हर बार अज़ीम रेत की तरह उसके हाथो से फिसल गया। सूत्र बताते है कि वर्ष 2015-16 तक अज़ीम ने अपना वर्चस्व बनारस के साथ पूर्वांचल और दिल्ली एनसीआर तक फैला लिया। पुलिस के पकड़ से दूर अज़ीम अपराध पर अपराध किये जा रहा था और पुलिस के हाथ उसके कालर पर पहुच ही नही पाए थे।
बनाया एनसीआर के पास अपना अड्डा – सूत्र
बनारस से खासे दूरी पर एनसीआर के एक गाव में अज़ीम ने खुद का डेरा बना लिया। सूत्र बताते है कि रंगदारी के लिए फोन का उपयोग वह मेट्रो से दिल्ली के घनी आबादी में आकर करता रहा। एक बार पुलिस को इसके एनसीआर के पास अड्डे का पता पुलिस को लगा। वाराणसी पुलिस मामले में गिरफ्त्रारी को लेकर संजीदा हुई मगर छ्पेमारी के पहले ही अपराधी अज़ीम मौके से फरार हो गया। ये आखरी घटना थी जब अज़ीम और पुलिस के बीच थोडा सा दुरी रही वह भी लगभग 25 मीटर। घटना के बाद से अज़ीम बनारस पुलिस के लिए एक ऐसा सवाल बन गया जिसको आज तक पुलिस ने हल नही किया है। क्रमशः – भाग 2
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