तारिक़ आज़मी
बुलंदशहर। कभी कभी हम अपने बच्चो को लाड और प्यार में बिगाड़ देते है। या फिर कुछ इस तरीके से कहे ही हर कोई अपने बच्चो को बेइंतेहा मुहब्बत करता है। मगर कभी कभी हमारी मुहब्बत ही हमारे बच्चो का भविष्य बिगाड़ देती है। हम जो बाते बच्चो के सामने करते है उसका असर भी बच्चो के ऊपर बेशक पड़ता है।
प्रतिस्पर्धा के इस दौर में हम अपने बच्चो को अच्छी तालीम देने की तो सोचते है मगर उनकी तरबियत बिगड़ रही है इसकी फिक्र हम नही करते है। हमारी दी जा रही गलत तरबियत हमारे बच्चों के मुस्तकबिल को किस तरीके से बिगाड़ सकती है इसका जीता जागता नमूना बुलंदशहर में देखने को मिला जब एक महज़ 14 साल के बच्चे ने अपने हम उम्र स्कूल के साथी की मामूली सी बात पर गोली मार कर हत्या कर डाला। हम पहले आपको घटना से रूबरू करवा देते है।
बुलंदशहर के शिकारपुर स्थित सूरजभान सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में कक्षा 10 में टार्जन पुत्र रवि कुमार पढ़ता था। उसका एक दिन पहले उसी कक्षा में पढने वाले एक छात्र से सीट पर बैठने के मामले में झगड़ा हुआ था। कल स्कूल सुबह 9 बजे से शुरू हुआ, तो गोली मारने वाला छात्र तर्जन के पास की सीट पर बैठ गया। ठीक 11 बजे दूसरा पीरियड खत्म हुआ, तो टीचर क्लास से चले गए और तीसरे पीरियड के टीचर अभी क्लास में पहुंचे नहीं थे, तभी छात्र ने अपने स्कूल बैग से आर्मी वाले चाचा की पिस्तौल निकली और उससे टार्जन यानी मकतुल को ताबड़तोड़ तीन गोलियां मार दीं। एक गोली उसके सिर पर लगी। दूसरी उके पेट में और तीसरी सीने में लगी। मकतुल की मौके पर तीन गोलिया लगने से मौत हो गई।
इस दरमियान क्लास में कुल 35-40 बच्चे और थे। इस घटना को होते देख कर सभी चीख पुकार करने लगे। कई बच्चे तो खौफज़दा इस तरीके से हो गए कि रोने लगे। एक दुसरे को धक्के देकर भागने लगे। स्कूल में हडकंप मच गया और गोली मारने वाला बच्चा मकतुल की मौत का इत्मिनान करके पहले तल्ले पर अपनी क्लास से भागता हुआ नीचे की तरफ आया और प्रेयर ग्राउंड में पंहुचा। जहा कई टीचरो ने हिम्मत दिखाते हुवे गोली मारने वाले छात्र को पकड़ लिया।
उस महज़ 14 साल के बच्चे ने यहाँ भी पेशेवराना अंदाज़ दिखाया और उसको पकड़ने वाले टीचर्स को काफी धमकियां देते हुवे हवाई फायरिंग भी किया। लेकिन टीचरों ने हिम्मत कर उसे पकड़ लिया। पकड़े जाने पर उसने टीचरों को भी गोली मारने की धमकी देते हुए उनके साथ धक्का-मुक्की की, लेकिन वह पकड़ा गया था। घटना की सुचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुच गई और मकतुल की लाश को कब्ज़े में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। वही गोली मारने वाले बच्चे को अपनी हिरासत में लेकर कार्यवाही शुरू कर दिया।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर कौन सी तरबियत हम अपने बच्चो को दे रहे है कि उनके दिमाग में इतनी कम उम्र में इतना अधिक गुस्सा भरा हुआ है। हमारे सभी सवालात सिर्फ गोली मारने वाले बच्चे के परिजनों से ही उठता दिखाई दे रहा है। आखिर फ़ौज में एक ज़िम्मेदार सैनिक ऐसी भूल कैसे कर सकता है कि उसकी पिस्टल किसी और के हाथो में लग जाए। यहाँ तो घर का बच्चा पिस्टल चुरा कर ले गया था। वही सूत्रों की माने तो हत्या करने वाले छात्र के पास एक देसी तमंचा भी था। अब ये तमंचा घर में कैसे आया ये भी एक बड़ा सवाल है। अगर तमंचा बच्चा घर से चुरा कर नहीं लाया था तो फिर सवाल ये है कि तमंचा खरीदने के पैसे उस छात्र के पास कहा से आये। सवालात तो कई उठेगे मगर जवाब इसका कही नही है।
हम बच्चों को तालीम उम्दा दे रहे है मगर क्या तरबियत पर भी ध्यान देंगे। एक परिवार का चश्म-ओ-चराग बुझ गया। एक भविष्य खुद के उज्जवल होने के पहले ही खत्म हो गया। क्या हम सिर्फ बच्चो को तालीम दिलवा रहे है और इस दरमियान तरबियत पर ध्यान ही नही दे रहे है ? कडवी सच्चाई है कि गोली मारने वाले बच्चे का भविष्य तो अंधकारमय हो चूका है। वही मकतुल के वालिदैन खुद के जिगर का टुकड़ा खो जाने से गमजदा है। ये ऐसा ग़म है कि कभी खत्म नही होगा। हमको सोचना होगा हम कहा आ गए है अब ?
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