तारिक़ आज़मी
किसान आन्दोलन अपने चरम पर है। सरकार आधा दर्जन बैठके किसानो के साथ कर चुकी है। किसान कृषि कानून के वापस लेने से कम पर बात नही कर रहे है वही सरकार की मंशा केवल अमेंडमेंट की ही है। सरकार किसी भी तरीके से कानून को वापस लेने को तैयार नही है। हकीकत कहे तो किसानो का आन्दोलन मुद्दों के प्रति ईमानदारी का प्रतीक बनता जा रहा है। वही किसानो के संगठनो में बातचीत के नाम पर फुट डालने की भी कोशिश जारी है। जितनी कोशिश किसानो में फुट डालने की हो रही है वही किसान एकता बढती ही जा रही है।
भले ही कुछ मीडिया हाउस अपनी ज़िम्मेदारी से मुह मोड़ रहे है और आपको वो दिखा रहे है जिसको आप न समझना चाहते है और न ही देखना चाहते है। भले ही गला फाड़ कर कोई चिल्ला रहा हो कि पूछता है भारत, मगर हकीकत में जानना चाहता है भारत कि आखिर किसान जो एक भोली भाली कम्युनिटी समझी जाती है वह बड़े कार्पोरेट घरानों से टकरा पायेगी। क्योकि किसानो ने सीधे सीधे अडानी अम्बानी से टकराने की बात कर रहे है। इतने बड़े कार्पोरेट घराने से टकराना क्या किसानो के लिए आसान होगा।
किसानों ने रिलायंस और अडानी के विरोध का एलान कर बता दिया है। किसान इन दोनों को सरकार के ही पार्टनर के रूप में देखते हैं। जनता अब बात बात में कहने लगी है कि देश किन दो कंपनियों के हाथ में बेचा जा रहा है। विपक्षी दलों में राहुल गांधी ही अंबानी अडानी का नाम लेकर बोलते हैं बाक़ी उनकी पार्टी और सरकारें भी चुप रहती हैं। किसानों ने रिलायंस और अडानी के प्रतिष्ठानों के बहिष्कार का एलान किया है।
हो सकता है शायद सारे किसान रिलायंस जियो का सिम वापस न कर पाएँ। लेकिन जिस जियो के ज़रिए उन तक व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी मुफ़्त में पहुँची है अब वे उसके ख़तरे को समझने लगे हैं। वही जियो इस बात को भली भाँती समझता है कि इसका मतलब क्या होता है। जियो ने अपने कस्टमर केयर यूनिट को विशेष टास्क दे रखा है। हर एक ट्वीट जिसमे जियो का नाम आप लायेगे तुरंत कस्टमर केयर उस ट्वीट पर एक हिस्सा बनेगा और आपको पर्सनल मैसेज करने और अपना नम्बर उपलब्ध करवाने की बात करने लगेगा।
आप जियो को एक सिम्बल के रूप में देख सकते है न कि एक ऐसी कंपनी के रूप में जिसका विरोध हो रहा हो। इस माह में लाखो सिम पोर्ट करवाने को किसान तैयार बैठे है। वही अन्य नेटवर्क “वी” और एयरटेल इस मौके के तलाश में है जिनको अधिक कस्टमर मिल रहे है। हकीकत देखे तो लॉकडाउन के दौर में जब छोटे से लेकर बड़े उद्योग धंधे बिखर रहे थे, तब अंबानी अडानी के मुनाफ़े में कई गुना वृद्धि की ख़बरों का जश्न मनाया जा रहा था। अब अंबानी और अडानी किसानों के निशाने पर हैं। इस विरोध का भले ही इस बड़े कार्पोरेट घराने पर कोई फर्क न पड़े मगर आम जनता अपने ज़िन्दगी में सियासत का कार्पोरेट घरानों के साथ दखल समझ चुकी है।
किसानो को अब समझ आने लगा है कि आखिर इस क़ानून के आने के पहले ही बिहार से लेकर पंजाब तक में भारतीय खाद्य निगम अडानी समूह से भंडारण के लिए करार क्यों कर चुका है। अडानी ने बड़े बड़े भंडारण गृह बना भी दिए हैं। मंशा ठीक होती तो वह भी अडानी की कंपनी के तरह इस तरह के भंडार गृहों का निर्माण करती। पंजाब और बिहार में अडानी ने जिस तरह के भंडार गृह का निर्माण किया है और एससीआई ने तीस साल तक किराया देने की गारंटी दी है, वह किसानो के बीच अब समझ आता है कि तर्ज पर आ चूका है। उनको समझ आने लगा है कि अडानी की नई कंपनी ने नए क़ानून से कितने दिन पहले भंडारण का काम शुरू किया है और भंडारण को लेकर उनकी कंपनी किस तरह का विस्तार कर रही है?
स्टार्ट अप इंडिया के फायदों पर आप भले ही बहस कर रहे हो, मगर इस बहस से बाहर निकल कर देखेगे तो तो साफ दिखता है कि आर्थिक जगत में घरानों को कैसे मजबूती मिल रही है। पुराने औद्योगिक घरानों खत्म होने के कगार पर जा रहे है और महज़ कुछ औद्योगिक घराने ही अपने कारोबार और प्रभाव को बढाते जा रहे है। इस सब बातो को अब किसान समझने लगा है। किसान अब समझदार भी हुआ है। और किसान संगठनो ने काफी मशक्कत के बाद किसानो को इस बात को समझाया भी है। किसान आन्दोलन के पहले महीनो से इस मामले में किसान संगठनो ने बैठके और जनजागरूकता अभियान भी चलाया है।
सबसे मुद्दे की बात करे तो किसानो द्वारा सीधे सीधे अडानी और अम्बानी से टकराना आसान नही होगा। खुद के बातो को और मुद्दों को प्रभावी तरीके से उठाने और सही रपट दिखाने के लिए मशहूर एनडीटीवी को अम्बानी ने अपनी लिस्ट से हटा कर अपनी मंशा ज़ाहिर कर दिया है। हकीकत में किसानों ने अंबानी और अडानी के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों का एलान कर बहुत बड़ा जोखिम लिया है। इनका प्रभाव अच्छा ख़ासा गोदी मीडिया पर है। अब गोदी मीडिया इस प्रभाव से किसान आंदोलन को लेकर और भी हमलावर होगा। जिससे ये आन्दोलन दो तरफ से हमलो का शिकार होगा। एक तरफ अडानी अम्बानी के साथ सरकार और दूसरी तरफ गोदी मीडिया का दुष्प्रचार।
वैसे भी व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी ने आपके हाथो में अधकचरे ज्ञान का पिटारा दे रखा है। अब उसके बाद सीधे सीधे मीडिया के उस तबके से टकराना होगा जो तबका सत्ता के साथ खड़ा उसकी जयकार किया करता है। भले ही आज तक की क्रांति के इतिहास को उठा कर देखे तो मीडिया की भूमिका अहम रही है। भले वह जेपी आन्दोलन हो या फिर अन्ना आन्दोलन। मीडिया ने अपनी बड़ी भूमिका निभाई थी। मगर अब ऐसा नही है। मीडिया खुद आन्दोलन के खिलाफ खड़ी दिखाई दे रही है। चैनलों पर बहस चल रही है कि ये किसान आन्दोलन नहीं है। ये भटका हुआ आन्दोलन है। ये किसान नहीं आतंकवादी है। खालिस्तानी है। निहत्थे किसानो को चारो तरफ से घेरा जायेगा। क्रांतियो का इतिहास भले कोई लिखे मगर लिखा उसके नज़रिए से जायेगा।
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