तारिक़ आज़मी
वाराणसी। सर्द रातो में रास्ते सुनसान हो जाते है। हम नर्म मुलायम बिस्तर में जाकर छुप जाते है। कही ब्लोवर तो कही हीटर से खुद को और अपने आसपास के माहोल को गर्म करते है। आराम से फिर हमको सुकून की नींद आती है। मगर हमारे मोहल्ले के आसपास ऐसे भी लोग होते है जो सडको पर अपनी राते गुजारते है। उनको भी ठण्ड लगती है। तन ढकने को तो छिथड़े नसीब भी हो जाते है मगर सर्द रातो की कड़ाके की ठण्ड के लिए उनके पास कोई साधन नही होता है। हम उनके बारे में कब आखिर सोचते है।
आज एक निमंत्रण से खाली होकर लंका की जानिब से मेरा गुज़र हुआ। सुनसान सडको पर आवारा पशु भी कही दुबके पड़े थे। दूर दूर तक न आदम और न ही आदमजात, सिर्फ सियापा सन्नाटा और इस सन्नाटे का साथ देती सर्द हवा। हमने काफी गर्म कपडे मन में ये सोचते हुवे पहन रखे थे कि “इसे कहे है सर्दी की तैयारी।” तभी हमारी नज़र एक वर्दीधारी धारी युवक पर पड़ी। नवजवान पुलिस कर्मी ने चेहरे पर मास्क लगा रखा था। पैदल ही हाथो में एक बड़ा सा थैला लिया एक कोने में झुक कर कुछ कर रहा था।
हमारी कौतूहलता बढ़ी और हमने इस नवजवान पुलिस वाले से मिलने का फैसला लिया। पास गया तो देखा ये नवजवान एसआई दुर्गाकुंड चौकी इंचार्ज प्रकाश सिंह है। प्रकाश सिंह को जिले के तेजतर्रार दरोगा में गिना जाता है। सैन्य ट्रेनिग लिए प्रकाश सिंह के लिए किसी अपराधी को पकड़ना कोई बड़ी बात नही है। खुद के हिम्मत और लगन तथा मेहनत के बल पर प्रकाश सिंह हमेशा से अपने अधिकारियो के नज़र में अपना मुकाम बनाये रहते है।
मुझको पास पाकर प्रकाश सिंह थोडा ठिठके भी। पूर्व परिचित होने के कारण हाय हेल्लो और नमस्कार आदाब के दौर के बाद हमने इस देर रात के कार्यक्रम के बारे में पूछा तो प्रकाश सिंह ने बड़ी मुलामियत के साथ अपने पुराने अंदाज़ में कहा कि हम आप कितना पहने ओढ़े रहते है और उसके बाद भी हमको ठण्ड का अहसास होता है। इन लोगो के बारे में हम कब सोचते है जो गरीब इस तरह सडको पर रात बसर करते है। हमारा कर्त्तव्य बनता है कि हम इनके बारे में भी सोचे और अपनी क्षमता अनुसार जो कर सकते है करे।
प्रकाश सिंह ने कहा कि आज हमारी नज़र इस तरह सो रहे कुछ लोगो पर कई दिनों से पड़ रही थी। हमने आज रात धीरे से इस काम को अंजाम देने की सोचा और करने का प्रयास कर रहा हु। हमने सवाल किया भाई बताया होता तो कम्बल वितरण में कुछ खबरे हम भी उठा लेते। उस तेज़ तर्रार दरोगा ने जो जवाब दिया वह निरुत्तर कर देने वाला था। प्रकाश सिंह ने बड़ी मासूमियत से कहा भाई, कर्तव्यों का निर्वहन खबरों का हिस्सा होने के लिए नहीं किया जाता है। हम अपने कर्तव्यो का निर्वहन कर रहे है। ये शोहरत पाने के लिए किया तो फिर क्या किया ?
हम इस लाजवाब सवाल के आगे कुछ कह नही सके। हमारे लफ्जों खामोश हो चुके थे। हमने एसआई प्रकाश सिंह से विदा लिया और अपने आवास की तरफ हमारी बाइक चल चुकी थी। मगर इस बार मुझको ठण्ड का अहसास नही हो रहा था। मैं सिर्फ प्रकाश सिंह के बातो की गहराईयो को सोचता हुआ अपने आवास तक आ चूका हु।
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