तारिक़ आज़मी
वाराणसी। पैसा, पॉवर और हनक युवाओं को “आया राम गया राम” की दुनिया के तरफ आकर्षित करती रही है। जरायम जगत में आसानी से मिलने वाला रसूख युवाओं को भ्रमित कर रहा है। उन्हें ये सोचना चाहिए कि उनके जेल जाने के बाद परिजनों की फजीहत या किसी अनहोनी का शिकार होने के बाद उनका दर्द कुछ देर की मौज से ज्यादा बड़ा है। चंद सिक्को की खनक और किसी बाहुबली के हाथो से मिले असलहे के बल पर बाहुबली बनने का सपना भले ही कुछ दिनों के लिए रंगीनिया दिखा दे, मगर उसका अंजाम बुरा ही होता है।
वैसे तो जरायम की दुनिया में इंट्री बड़ी आसानी से मिल जाती है। सफ़ेदपोश बन चुके लोगो के द्वारा संरक्षण भी मिल जाता है। मगर युवाओं को इसका ज़रा भी अंदेशा नही होता है कि इस जरायम की दुनिया में आने के रास्ते तो है, मगर वापसी का रास्ता चंद लोग ही चुन पाए है। जरायम की दुनिया में दिखाई देने वाली चकाचौंध से दिशाभ्रमित होने वाले तमाम युवा ऐसी ही नज़ीर हैं। अगर उनके इतिहास को खगाला जाए तो वो कुछ जीवन में अपने अच्छा कर सकते थे। मगर उन्होंने चंद लम्हों की शमा के तरह जरायम की दुनिया को अपना रास्ता बनाया और फिर इस चंद लम्हों की शमा तो आखिर बुझ ही गई। एक-दो नहीं बल्कि कई बड़े बदमाशों का अंत उनके खुद के साथियों के प्रतिघात के कारण ही हुआ है। आइये कुछ शहर बनारस की बड़ी नजीरो से रूबरू करवाते है।
अपने ही चलाते है यहाँ पीठ पर खंजर
सुरेश गुप्ता का मैदागिन-दारानगर-ईश्वरगंगी इलाके में अपना दबदबा था। जैतपुरा थाना क्षेत्र के ईश्वरगंगी इलाके में रहने वाला सुरेश गुप्ता तत्कालीन बाहुबली डिप्टी मेयर अनिल सिंह का बेहद करीबी था। ये अनिल सिंह वही थे जिनके लिए मुन्ना बजरंगी भी ड्राईवर की तरह काम कर चूका था। तत्कालीन डिप्टी मेयर अनिल सिंह का दाहिना हाथ सुरेश गुप्ता को समझा जाता था। यहाँ तक की मुन्ना बजरंगी भी उसकी कोई बात नहीं काटता था। सुरेश ने अपना पूरा जीवन गैंग को बढ़ाने में लगा दिया।
समय पलता और फिर मुन्ना बजरंगी के खुद का अपना गैंग बना लिया। अपना गैंग बनाने के बाद मुन्ना बजरंगी ने ईश्वरगंगी छोड़ दिया। इसके बाद वर्चस्व की जंग में वर्ष 2003 में उसी मुन्ना बजरंगी जो कभी सुरेश गुप्ता की बात नही काटता था के शूटरों ने सुरेश गुप्ता को ठिकाने लगा दिया। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक 2003 में बजरंगी गैंग के शूटरों ने सुरेश गुप्ता की गोली मारकर हत्या कर दी। यहाँ ख़ास तौर पर अगर गौर किया जाए तो कहा जाता है कि बजरंगी सुरेश गुप्ता के इशारों पर कभी चलता था मगर सुरेश गुप्ता की हत्या भी बजरंगी के ही शूटरो ने कर दिया था।
इसी वर्ष बजरंगी गैंग से नाराज़ चल रहे रिंकू गुप्ता ने अपने ही गैंग के महेश यादव को गोलियों छलनी करके हत्या कर दिया था। ऐसा ही कुछ मुन्ना बजरंगी के करीबी और बाबु यादव के ख़ास रहे सभासद मंटू यादव के साथ हुआ। उसे 20 दिसंबर 2003 को सिगरा में उसके करीबियों ने ही गोली मार दी। उस दिन मंटू यादव अपनी कार से मिनी संसद को जा रहा था। तभी रास्ते में सरेराह दिनदहाड़े उसकी हत्या हुई थी।
इसके बाद वर्ष 2004 में सबसे बड़ी हत्या बंशी यादव की हुई थी। जेल के गेट पर बंशी यादव को गोली मारी गई थी। जानकार बताते है कि बंशी यादव बजरंगी गैंग से जुडा हुआ था और तत्कालीन सभासद भी था। मगर वह बजरंगी गैग से अलग हो रहा था। जो बजरंगी को नागवार गुज़रा था। जानकार बताते है कि बंशी यादव की हत्या जिला कारागार के गेट पर 9 मार्च 2004 को अन्नू त्रिपाठी और बाबू यादव ने कर दी थी। इस हत्याकांड में अन्नू त्रिपाठी और बाबु यादव के गैंग के कई अन्य सदस्यों का भी नाम आया था। वही अन्नू त्रिपाठी को बजरंगी से जुडा होना जगजाहिर था।
इसी गैंग से जुड़े एक अन्य सभासद मंगल प्रजापति को 21 दिसंबर 2005 में उसके करीबियों ने मारा डाला था। मंगल प्रजापति की हत्या में उसके करीबी रहे राकेश उर्फ़ लम्बू का नाम आया था। जिसके बाद उसी वार्ड के सभासद राकेश उर्फ लंबू भी 25 मई 2007 को उसके करीबियों की गोलीयो का निशाना बना। लंबू, मंगल का करीबी था और उस पर मंगल की हत्या का आरोप था। उसे घर से बुलाकर गोली मारी गई। इसको मंगल की हत्या का बदला भी माना गया था।
ये घात प्रतिघात अपनों के द्वारा सिर्फ बजरंगी के गैंग से जुड़े लोगो के साथ ही नहीं हुआ था। ब्रिजेश सिंह से जुड़े ठेकेदार सुनील सिंह, गुड्डू सिंह, पप्पू सिंह, की हत्याओं में उनके करीबियों का ही हाथ होना सामने आया था। वही बिहार के कोल किंग राजीव सिंह भी अपने लोगों के शिकार हो गए। अगस्त 2014 में मिर्जापुर के अहरौरा थाना क्षेत्र में खप्पर बाबा आश्रम के पास भी एक बहुचर्चित गैंगवार हुआ था। इस गैंगवार में तत्कालीन 50 हज़ार का इनामिया बदमाश राजेश चौधरी अपने दो साथियों के साथ मारा गया था।
राजेश चौधरी कृपा चौधरी का दामाद लगता था। मुम्बई में एनकाउंटर में मारे गए मुन्ना बजरंगी का कुख्यात शूटर कृपा चौधरी और राजेश चौधरी के बीच ससुर दामाद का रिश्ता था। पुलिस रिकार्ड्स के मुताबिक राजेश चौधरी जरायम की दुनिया छोड़ चूका था। मगर जानकार बताते है कि राजेश चौधरी इस दरमियान अपराध में अपना कट लेने लगा था। इसके अलावा वह जमीन के कारोबार में भी शामिल हो चूका था। उसके साथ मारा गया कल्लू पांडेय दौलतपुर के एक प्रतिष्ठित परिवार का लड़का था। खुद इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके कल्लू का भी आपराधिक इतिहास था।
सबसे दर्दनाक बाडू हत्याकांड था। वर्ष 2012 में हनी सिंह गैंग से जुड़े गुर्गे आपस में लूट के माल को तकसीम करने में भीड़ गए थे। नतीजतन रंजीत गौड़ उर्फ बाड़ू और एक अन्य युवक की हत्या उसके साथियों ने ही कर दिया था। घटना दर्नाक तब साबित हुई जब घटना का खुलासा हुआ। बाडू और उके साथी की हत्या करके शवों को निर्माणाधीन सड़क में दफना दिया गया था। बाड़ू का पिता रिक्शा चलाता था और मां अपनी झुग्गी में कपड़े धोती थी। बेटे के लापता होने के बाद मां महीनों तक अफसरों की चौखट पर सिर पटकती रही। आखिर जब पुलिस ने मामले का खुलासा किया तो फिर बाडू की लाश का पता चला था वह भी उसकी पहचान कर पाना मुश्किल था। माँ बाप के बुढापे का सहारा एकलौता बेटा कंकाल के शक्ल में बरामद हसा था। सड़क को जेसीबी से खोद कर लाश निकाली गई थी।
यही नहीं बल्कि चौक थाना क्षेत्र का दालमंडी भी ऐसी घटनाओं का गवाह है। दालमंडी में भी घात प्रतिघात में कई जाने गई है। सभासद कमाल की हत्या के सम्बन्ध में आज भी उनकी पत्नी नजमी सुलतान से पूछे ले तो उस वक्त की हकीकत ब्यान हो जाएगी। कमला की हत्या में जिस आलम का नाम आया था वह आलम कमाल के सबसे करीबियों में गिना जाता था. वही चर्चित छोटे मिर्जा की हत्या में भी अपनों ने ही प्रतिघात का मामला सामने आया था।
इसी प्रकार चर्चित बंदमाश काले अन्नू को भी उसके ही करीबियों ने रामनगर थाना क्षेत्र में मार के फेंक दिया था, इसी प्रकार दालमंडी के ही बदमाश राजू बम को मारकर अलईपुरा के पास रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया गया था। राजू बम और काले अन्नू की हत्या में उसके अपनों का ही प्रतिघात सामने आया था। पूर्व राज्यमंत्री के भाई शेखू हत्याकाण्ड की कहानी घात प्रतिघात की ही है। जानकार बताते है कि शेखू को सुबह जलेबी खाने के लिए बुलाया गया था और गोली मार कर हत्या कर दिया गया था।
अपना और अपने अपनों का रखे ख्याल
समाज में बहुबल की हनक और चंद दिनों के लिए मलाई खाने के तमन्ना में भले ही लोग इसको भूल जाते है कि इस जरायम के जीवन का रास्ता जेल की काल कोठारी तक पहुचाता है। सफ़ेदपोशी का संरक्षण पा कर कुछ दिन मलाई तो ज़रूर खाई जा सकती है। मगर उसके बाद जब इसके धब्बे सफ़ेद पोशाक पर पड़ने की नौबत आती है तो फिर आखिरी सफ़र शमशान अथवा कब्रस्तान ही होता है।
नजीर उठा कर देखा ले कि जितने भी बड़े नाम अपराध जगत के अपने पढ़े है उनके बाद उनके परिवार का क्या हाल है पता कर ले। एक दो को छोड़ कर इन बड़े अपराधियों एक परिजनों का आज कोई पुरसाहाल नही है। कभी बनारस से लेकर कानपुर तक आतंक का दूसरा नाम बने रईस बनारसी के परिवार की वर्त्तमान हाल देख ले। शायद एक बड़ा सबक मिल सकता है। पत्नी और बच्चे किस स्थिति में है। जिस परिवार में रईस बनारसी के रहते कोई कमी नही थी आज वह आभाव की ज़िन्दगी जी रहा है। नज़र उठा कर देखे आपके आसपास का माहोल कैसा है।
गलती परिजनों की भी है
आसपास के माहोल को हम ध्यान नही देते है। बेटे जो कमाई नही करता है अचानक 20-25 हज़ार का मोबाइल हाथो में लेकर घूमता है तो पिता को शायद सोचना ज़रूर चाहिए कि इतने पैसे इसके पास आये कहा से। बेटे के एक बार कह देने से कि मेरे दोस्त ने गिफ्ट किया है हम संतुष्ट हो जाते है। हमको पता करना चाहिए कि मेरे बेटे का कौन ऐसा दोस्त है जो उसको इतना महंगा मोबाइल गिफ्ट कर सकता है। वह दोस्त क्या कारोबार अथवा काम करता है। बेटा किसके साथ रहता है। परिवार अपने बेटे की हनक को देख कर आँखे बंद कर लेता है और ये आखिर घातक होता है।
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