Categories: MorbatiyanSpecial

तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – मोबाइल और सोशल साइट्स पर सिमटे रिश्ते

तारिक़ आज़मी

आज सुबह सुबह काका आ धमके। सीधे हमारे कमरे में आये और चाय की फरमाईश कर बैठे। वैसे तो चाय सुबह के समय मेरे लिए रूम में अपने मामूर के अनुसार आई थी। तो एक कप काका के सामने रख दिया। आज काका तनिक उदास लग रहे थे। वो उनकी कप से चाय पीने की अदा पुरानी वाली नही थी। कुछ बड़े गंभीर मुद्रा में लग रहे थे। तो हमने पहले उनको छेड़ना सही नही समझा। सर्वप्रथम मैंने पता करना शुरू किया कि कही कोई खानदान या रिश्तेदारी में निकल तो नही लिया है। क्योकि काका सिर्फ उदास किसी के निकल जाने पर ही होते है। जब पता चला सब खैर है तो हमारे भी बर्दाश्त की सीमा खत्म हो गई। काका हमे ऐसे उदास अच्छे नही लग रहे थे।

आखिर हमने पूछ ही लिया, “का काका बड़ा उदास हो, काहे उदास हो काका, सुबह सुबह कही काकी ने हऊक तो नही दिया है ?” मगर काका के चेहरे पर लग रहा था आज एक्सप्रेशन फेविकोल लगा कर चिपका पड़ा है। काका चाय खत्म होने के बाद भी हाथो में कप लिए ऐसे ही उदास बैठे रहे। नहीं तो काकी के “हऊकने” का डायलोग सुनकर काका पुरे राजधानी एक्सप्रेस की स्पीड में चल पड़ते है। काका तनिक भी टस से मस नही हुवे तो हमको चिंता सताने लगी। हम तुरंते बेड से उतर पड़े। वैसे काका अपने ज़माने में अच्छे ओहदे पर थे। बढ़िया पेंशन मिलती है। काकी आज भी तीन महिना में एक साडी ज़बरदस्त खरीदती है और पुरे मोहल्ले में उस दिन दौरे पर निकलती है। बाल बच्चे भी बढ़िया सेट है। फिर काका की ये उदासी काहे है ?

हम बेड से उतरे और नीचे लगभग बैठते हुवे काका के हाथ से कप पकड कर बोले, “का काका एक कप और चाय दे का।” मगर काका मुह से कुछ न बोले बल्कि मन भर की मुंडी न में हिला दिए। एक शुन्य में खोये काका अचानक वापस आते है और बेहतरीन अद्धी के कुर्ते की जेब से दो नया मोबाइल निकाल कर हमे थमाते हुवे कहते है, “ए बबुआ तनिक एकरा पर फेसबुक, व्हाट्सअप कुल चालु कर दो दुन्नो पर, एक तुम्हार काकी का है और एक हमार नम्बर लगा हुआ है, दुन्नो पर अलग अलग चालु कर दो।” काका का सबसे दुलरवा भतीजा होने के कारण हमारी काका से हंसी मजाक चला करती है। इसी हसी मजाक में काका अक्सर हमको लाठिया भी देते है।

Tariq Azmi
Chief Editor
PNN24 News

तो हम हंसी में उनको चिढाने के लिए बोल पड़े, “का काका, एक पैर कबर में और दुसरा केला के छिलके पर है, और इहा व्हाट्सअप और फेसबुक चलाओगे काका। अरे काकी का समझ में आता है कि अभी ऊ जवान है तुम्हार तरीके से बूढा न गई है, मगर अपने बुढापे का ख्याल तो करो।” हमारा मकसद सिर्फ काका को हसाने का था, काका कब्र की बात सुनकर काफी उत्तेजित हो जाते है। मगर काका के चेहरे का भाव वापस वैसे ही था जैसे किसी ने सुबह सुबह काका का चेहरा फेविकोल से धो दिया हो। कोई इम्प्रेशन नही। तो थोडा हम खुद सीरियस हो गये।

काका से बैठ कर हमने समस्या का कारण पूछा तो काका ने कहा, बेटवा रिटायर्ड होने के इतने साल के बाद अब अहसास होने लगा है कि हम रिटायर्ड हो गये है। घर में बेटा है, बहु है, पोती पोता है। मगर हम दो बुढा बुढऊ से बात करने का किसी के पास टाइम नही है। सबके हाथ में मोबाइल है। सब मोबाइल पर व्यस्त रहते है। अभी तीन दिन पहले हमारे शादी को 50 साल पूरा हो गया। मगर न बेटे के पास वक्त था न बहु के पास। हमको एसएमएस करके शादी की सालगिरह का बधाई दिए रहा हमारा बेटा। हम सुना है व्हाट्सअप पर सब एक दुसरे से बात करते है। तो सोचा इस बार पेंशन से दो मोबाइल ले लेंगे और दोनों लोग से फिर व्हाट्सअप पर बच्चे बात तो कर लेंगे।

काका के आखो में इतने वर्षो में पहली बार मैंने उदासी देखा था। थोडा वाक्या देखा सुना सा लगने लगा। अभी पिछले वर्ष ही मेरे जन्मदिन पर मेरी खुद की फैमली के एक सदस्य ने जन्मदिन की बधाई मुझको व्हाट्सअप पर दिया था। जबकि हम सभी एक ही छत के नीचे रहते है। वाकई भाग दौड़ की ज़िन्दगी में रिश्ते मोबाइल पर सिमटते जा रहे है। लॉक डाउन में बंद हुवे स्कूल ने बच्चो को भी हाथो में मोबाइल थमा दिया। कहने को तो ऑनलाइन क्लास की बात थी, मगर बच्चो को भी ऑनलाइन क्लास के बाद सोशल साइट्स का चस्का पड़ गया। अब कहा वो पहले जैसी बात रह गई। पहले घर छोटे और कच्चे होते थे। मगर रिश्ते पक्के और दिल के बड़े होते थे। अब मकान तो बड़े और पक्के होते जा रहे है मगर रिश्तो में कच्चापन आता जा रहा है।

हकीकत उठा कर देखे तो हमारे आपके पास कितना वक्त परिवार के साथ बिताने का होता है। सच में बहुत थोडा सा होता है। उस वक्त का इस्तेमाल हम सोशल साइट्स पर अपडेट के लिए करते है। पहले घर में एक टीवी हुआ करती थी। पूरा परिवार एक साथ कार्यक्रम को देखता था। उसकी अच्छी बुरी बातो पर आपस में तस्किरा करता था। जैसे चित्रहार हफ्ते में दो दिन आता था जिसे गाने दिखाए जाते थे। हफ्ते के उस दो दिन पूरा परिवार एक घंटे का चित्रहार देखने के लिए समय से पहले से ही टीवी के सामने बैठ जाता था। अब एक घंटे अथवा उस 45 मिनट के कार्यक्रम में गाने कितने दिखाए इसके ऊपर चर्चा कार्यक्रम खत्म होने के बाद होती थी। कम दिखाया तो कहा जाता था इस बार कम दिखाया। मगर अगर एक ज्यादा दिखा दे तो उस ख़ुशी का ठिकाना नही रहता था।

परिवार एक साथ रामायण भी देखता था और अलिफ़ लैला की कहानिया भी देखता था। केवल परिवार ही क्यों, आसपडोस के लोग भी आ जाते थे। हंसी मज़ाक का दौर होता था। एक दुसरे का हाल हम सब जानते थे। पड़ोस में क्या चल रहा है। क्या समस्या है सबको जानकारी होती थी। एक दुसरे का सुख दुःख बाटते थे। मगर जब से घर में एक टीवी की जगह हर कमरे में टीवी होने लगी है तब से रिश्ते भी किश्तों में हो गये है। सभी अपने अपने कमरों में टीवी देखने का आनद ले रहे होते है। कहने को तो वो आनंद लेते है मगर हकीकत में देखे तो जो आनंद एक साथ बैठ कर देखने में आता था उसका ज़र्रा बराबर भी अब नही आता। अक्सर टीवी पकाऊ तंत्र लगता है।

वो सर्द रातो में शाम होते ही घर के एक निश्चित स्थान पर आग जलना, फिर पुरे परिवार का उसी आग के आसपास बैठना। उसका मज़ा अब कहा मिलेगा जब कमरों में ब्लोवर चल रहा हो और सभी नर्म मुलायम बिस्तर में सिमटे हो। वो गर्मी की रातो में एक साथ बैठा कर अन्ताक्षरी में अपने बेसुरे गले से गाना गाना और खुद को मुहम्मद रफ़ी समझ कर बड़े सुर लय ताल में गाना गाना, उसका आनंद क्या आज की जेनेरेशन समझ पायेगी। वो तो पज़ल गेम में वातानुकूलित कमरों में बैठ कर अकेली ही व्यस्त है। उसके पास सुविधाए है मगर जो ज़िन्दगी का असली आनंद है वो शायद नही है।

हाइजेनिक फ़ूड के तरफ भागते हमारे कदम क्या जबान को कच्चे आम का वो स्वाद दिलवा पायेगे जो स्वाद अमिया को काट कर नमक लगा कर खाने में आता था। अरे हम तो वो जेनेरेशन के है जो दस पैसे का जीभ जरऊना पाचक तक खाया गया है। वो ज़बान का वैसा स्वाद इस जेनेरेशन में मिल पायेगा ? वो दूध वाली टाफी का स्वाद क्या आज की महँगी टाफी भी दे सकती है ? वो गर्मी में आम का मौसम और पिता जी द्वारा लाया गया सफ़ेदा आम, वो एक बाल्टी पानी में दो घंटे ठंडा होने के लिए रखने के बाद उसको निकाल कर चूस कर खाना और छिलका तथा गुठली एक अलग पानी से आधे भरे बर्तन में रखना ताकि मक्खी न आये। क्या वो स्वाद आज चाक़ू से काट कर कांटे से आम के पीस खाने में मिल पायेगा ?

हकीकत में हम हाईटेक होने की दौड़ में काफी पिछड़ गए है। हमारे पास बुजुर्गो के पास बैठ कर बात करने, उनसे हंसी मजाक करने का वक्त ही नही है। कभी सोचा है कि आज के बच्चे क्या वो आनंद ले पायेगे जो हमने और आपने नानी के पास जाने के बाद झुण्ड में बैठ कर कहानियाँ सुनने का लिया है ? वो माँ के द्वारा परियो की कहानी, तो कहानी में राजा का होना शायद जंगल बुक के मोगली और डोरेमोन अथवा छोटा भीम से कही ज्यादा रोचक होता था।

कभी सोचे हम रिश्तो में कितने दूर होते जा रहे है। घर के अन्दर रहकर भी हम एक दुसरे को बधाई सोशल साइट्स से देते है। तीन से चार फुट की दुरी पर कमरे में हमारा छोटा भाई क्या कर रहा है इसकी हमको जानकारी नही होती है। हमारा छोटा भाई किस सेक्टर में कहाँ काम कर रहा है उसकी भी जानकारी हमको अधूरी रहती है। कभी वो वक्त ही याद करे जब छोटे से छोटा काम भी हम अपने घर के बुजुर्गो से पूछ कर करते थे। आज क्या वो हालत है, क्या हमने अपने घर में अपने छोटे भाई से कभी पूछा “कहा थे जी ? रात सोने के लिए बनी है और दिन काम करने के लिए।” यानी अमूमन वही सवाल जो हम और आप ने रोज़ सुनते थे।

भले ही आज के लेख में मेरे काका और काकी काल्पनिक है। वास्तविकता से कोई सरोकार नही है। मगर वास्तविक ज़िन्दगी में झाक कर देखे तो हम और आप भी काका काकी के दर्द का अहसास कर सकते है। हम आखिर क्यों भूल जाते है कि जो हम बोएगे वही काटेगे। हम जैसा संस्कार आगे देंगे वैसा ही प्रतिउत्तर हमको मिलेगा। वक्त निकाले। अपनों से बात करे। आखिर हम दिन रात जो मेहनत करते है किसके लिए करते है ? क्या सिर्फ दो वक्त की रोटी के लिए ? नही न, क्योकि हम जानते है कि हमारी मेहनत हमारे परिवार के लिए है। सिर्फ आपकी पत्नी, आपके बच्चे ही आपका परिवार नही है। सिर्फ घर के अन्दर एक कमरा और उसका नर्म मुलायम बिस्तर ही आपकी वरासत नही है। आपकी वरासत आपके कमरे से महज़ चंद फिट की दुरी पर स्थित आपके भाई का भी कमरा है। कभी उसमे भी झाके। शायद उसको आपकी ज़रूरत हो। आप बड़े है तो छोटो को आपके द्वारा दिए जाने वाले हौसलों की ज़रूरत है, अगर आप छोटे है तो बड़ो को आपके द्वारा दिलने वाले सम्मान की भी ज़रूरत है। इसको समझे। परिवार के साथ वक्त गुज़ारे। उनसे बाते करे। ख़ास तौर पर अगर आपके घर में बुज़ुर्ग है तो वो अल्लाह की रहमत है। ईश्वर का प्रद्दत एक बड़ा तोहफा है। उनको वक्त दे। उनके साथ बैठे। उनसे बाते करे। भले करे आप अपने मन का, मगर उसकी जानकारी उनको दे। उससे उनका हौसला बढेगा। सोशल साइट्स के मायावी दुनिया में भले हम खोते जा रहे है, मगर अपनी इस असली दुनिया को तो अपने साथ रखे। फिर कहता हु मेरे काका-काकी काल्पनिक है, वास्तविक दुनिया से उनका कोई लेना देना नही है। मगर इस कल्पना में भी काका बिना लठियाते अच्छे नही लगते है। वो सीरियस न आपको अच्छे लगे होंगे और न मुझको पसंद आये। तो काका को लठियाने वाला ही रहने दे।

pnn24.in

Recent Posts

महाराष्ट्र में सीएम पद हेतु बोले अजीत पवार गुट ने नेता प्रफुल्ल पटेल ‘हर पार्टी चाहती है कि उसको मौका मिले’

आफताब फारुकी डेस्क: महाराष्ट्र में चुनावी जीत के बाद महायुति गठबंधन में शामिल एनसीपी (अजित…

2 hours ago

उपचुनाव नतीजो पर बोले अखिलेश यादव ‘यह नतीजे ईमानदारी के नहीं है, अगर वोटर को वोट देने से रोका गया है तो वोट किसने डाले..?’

मो0 कुमेल डेस्क: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने…

2 hours ago

बोले संजय राऊत ‘महाराष्ट्र चुनाव के नतीजो हेतु पूर्व सीएजआई चंद्रचूड ज़िम्मेदार है’

फारुख हुसैन डेस्क: शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के नेता संजय राउत ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव…

2 hours ago