तारिक आज़मी
वसीम रिज़वी और विवाद एक दुसरे के पूरक ही समझे जाते है। वसीम रिज़वी का नाम आते ही दिमाग में एक ऐसी शख्सियत का चेहरा बन जाता है जो जब भी जुबा खोलेगा केवल विवाद को ही जन्म दे देगा। ऐसा पहली बार नही है कि वसीम रिज़वी मुस्लिम समुदाय के निशाने पर है। इसके पहले भी कई ऐसी मामले हुवे है जिसमे वसीम रिज़वी मुस्लिम समुदाय के निशाने पर थे। मगर इस बार विवाद कुछ अधिक ही वसीम रिज़वी ने मोल लिया है। इस बार मुस्लिम का सिर्फ एक वर्ग ही नही बल्कि हर एक फिरके के निशाने पर वसीम रिज़वी आ गए है।
इस दलील के बाद वसीम रिज़वी पुरे मुस्लिम समुदाय के ही निशाने पर आ गये। मुस्लिम समुदाय के हर एक फिरके ने उनके इस बयान और ऐसी याचिका पर आपत्ति जताई है। यहाँ तक कि शिया समुदाय ने वसीम रिज़वी को मुस्लिम मानने से ही इनकार कर दिया है। वही देवबंद मसलक से लेकर बरेलवी मसलक और अन्य मसलक ने भी वसीम रिज़वी का विरोध किया है। वसीम रिज़वी के खिलाफ शिकायतों की तहरीरे देश में अलग अलग थानों में पड़ना भी शुरू हो गई है। बतौर एक मुस्लिम वसीम रिज़वी के इस तरीके के बयानों की मैं खुद भी कड़े शब्दों में निंदा करता हु। मेरा मानना है कि आप किसी भी मज़हब को माने तो उसको दिल से माने और दुसरे किसी मज़हब में ऐब तलाशने की कोशिश न करे।
शायद वसीम रिज़वी को इस्लाम की जानकारी नही है
बतौर एक मुस्लिम भावनाए तो हमारी भी आहत हुई है। मगर हम देश की न्यायपालिका पर पूरा विश्वास करते है और इन्साफ ज़रूर होगा। अदालत वसीम रिज़वी को खुद जवाब देगी। मगर कुछ मामलात में वसीम रिज़वी को हमारे भी जवाब है। वसीम रिज़वी शायद इस्लाम को जानते होंगे मगर समझते नही होंगे। वसीम रिज़वी को शायद इस्लाम शब्द का अर्थ नही पता। शायद उनको ये भी नहीं मालूम होगा कि “सरेंडर टूवर्थ आल माईटी” असल में होता क्या है। थोडा जानकारी रखना भी ज़रूरी होता है। मशहूर शायर अल्लामा इकबाल ने अपने तराना-ए-हिन्द में कहा है कि “मज़हब नही सिखाता आपस में बैर रखना” तो यह बात हर्फ़ के आखरी नुखते तक सही है।
वसीम रिज़वी शायद राजनैतिक बड़े फायदे के लिए ऐसे गलत बयानबाजी करते रहते है। उन्होंने इसके पहले एक नही कई मौको पर गलत बयानबाजी किया है। जिसमे उनका अयोध्या में एक बयान आया था जो गाँधी-नेहरू परिवार से था। उन्होंने इंद्रा गांधी के परिवार को मुस्लिम करार देते हुवे कहा था कि प्रियंका गाँधी खुबसूरत है पहले मिलती तो उनको मैं अपनी फिल्म में जगह देता। गौरतलब हो कि वसीम रिज़वी ने एक फिल्म भी बनाई थी जो विवादों का केंद्र रही। फिल्म का नाम “राम जन्म भूमि” था। वसीम रिज़वी इस फिल्म को लेकर भी विवादों के केंद्र में आ गए थे।
इसी तरह जुलाई 2019 में भी वसीम रिज़वी ने मुस्लिम समुदाय पर निशाना लगाते हुवे विवादित बयान का वीडियो जारी किया था। उन्होंने अपने वीडियो में बयान देते हुवे कहा था कि उत्तर प्रदेश में चल रहे मदरसे आईएसआईएस के सिपाही तैयार कर रहे है। मदरसों में पढ़ाई नही बल्कि आतंकवादी पैदा किये जाते है। प्रदेश सरकार को मदरसे बंद कर देने चाहिए। उनके इस बयान की भी जमकर आलोचना हुई थी। इस बयान के भी मुखालिफ मुस्लिम समुदाय से सभी मसलक के आलिमो ने इस मामले में अपने बयान देकर विरोध जताया था। ऐसा ही कुछ बयान वसीम रिज़वी ने जनवरी 2019 को प्रधानमन्त्री को एक चिट्टी लिखते हुवे दिया था कि देश में सभी मदरसे बंद कर दिए जाने अन्यथा देश में 50 प्रतिशत मुस्लिम हो जायेगे। इस दरमियान वसीम रिज़वी ने कई अन्य विवादित बयान दिए थे। ओवैसी बधुओ को टारगेट पर लेते हुवे उन्हें मुग़ल वंशज कहते हुवे मुहब्बत की निशानी ताज महल पर भी विवादित बयान देते हुवे कहा था कि ओवैसी के पुरखो (मुग़ल) ने अपनी लैला के लिए ताजमहल बनवाया। यही नही उस बयान में वसीम रिज़वी ने कई हदे पार कर दिया था।
इन सबके बीच मोहसिन रजा और वसीम रिज़वी के बीच भी बयानबाज़ी तेज हो चुकी थी। इनकी संपत्तियों के बारे में भी बाते होने लगी तो योगी सरकार ने वक्फ संपत्ति पर घोटाले की आशंका के कारण इसकी जाँच सीबीआई से करवाने का फैसला लिया और फिर वसीम रिज़वी पर गाज गिरी। वसीम रिज़वी पर सीबीआई ने मुकदमा दर्ज करवाया था। जिसके बाद से वसीम रिज़वी हाशिये पर आ गए और उनके खिलाफ कार्यवाही होने की स्थिति आ गई। शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैंन का पद भी हाथ से चले जाने के बाद से वसीम रिज़वी ने बयानों से थोडा किनारा किया था। मगर इस बार एक याचिका दाखिल करके फिर से सुर्खियाँ बटोरने के चक्कर में वसीम रिज़वी में पुरे मुस्लिम समुदाय की नाराज़गी मोल लिया।
क्यों करते है विवादित बयानबाजी वसीम रिज़वी
वसीम रिज़वी और विवादित बयानों को अगर देखे तो अमूमन देखने से लगता है कि वसीम रिज़वी खुद को बड़ा ही उदारवादी मुस्लिम साबित करते हुवे भाजपा को खुश करने की कोशिश करते है। भाजपा को खुश करने के पीछे दो कारण हो सकता है। वसीम रिज़वी खुद एक लिए सदन में सीट का इंतज़ाम करना चाहते है अथवा फिर खुद के सीबीआई द्वारा दर्ज केस में महफूज़ रखने की कवायद हो। अगर खुश करने की बात होगी तो शायद वसीम रिज़वी ये भूल रहे है कि भाजपा एक वसीम रिज़वी के लिए पुरे मुस्लिम समुदाय के नाराज़गी को दुसरे तरफ नही रखेगी। भाजपा क्या कोई भी सियासी दल ऐसा नही करेगा क्योकि वसीम रिज़वी कोई बहुत बड़े वोट बैंक का आधार नही है और न कभी थे। उलटे अब स्थिति कुछ इस प्रकार है कि वसीम रिज़वी के नाम पर किसी भी दल का वोट ख़राब हो सकता है।
वही सियासत के जानकारों की माने तो वसीम रिज़वी खुद को सियासत में चर्चाओं के दरमियान रखने के लिए इस प्रकार की बयानबाजी करते है। इस तरीके की बयानबाज़ी के कारण वसीम रिज़वी को मीडिया जगह देती है। फिर विवादों का दौर शुरू होता है जो वसीम रिज़वी के नाम को सुर्खियों में रखता है। फिर मामला धीरे धीरे ठंडा होने के बाद वसीम रिज़वी का नाम भी मीडिया में कम आने लगता है। मीडिया कुछ मसाले के लिए इनके बयान को लेने के लिए आतुर दिखाई देती है। शायद यही एक कारण है कि वसीम रिज़वी बयानबाजी में हमेशा विवादों को जन्म देते है।
क्या है वसीम रिज़वी पर वक्फ संपत्ति से जुड़े घोटाले के आरोप
वसीम रिजवी पर पहला मामला वर्ष 2016 में प्रयागराज में अवैध निर्माण का है। इस दरमियान सूबे में अखिलेश सरकार थी और वसीम रिज़वी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष थे। अध्यक्ष रहते हुए रिजवी पर इमामबाड़ा गुलाम हैदर त्रिपोलिया, ओल्ड जीटी रोड प्रयागराज में अवैध रूप से दुकानों का निर्माण कराने का आरोप है। इस मामले में जब शिकायत की गई तो क्षेत्रीय अवर अभियंता ने 7 मई 2016 को निरीक्षण के बाद पुराने भवन को तोड़कर किए जा रहे अवैध निर्माण को बंद करा दिया था। इसके बाद में फिर से निर्माण कार्य शुरू करा दिया गया था। इमामबाड़ा गुलाम हैदर में चार मंजिला मार्केट खड़ी कर दी गई थी। इसके खिलाफ वसीम रिजवी पर वक्फ कानूनों के उल्लंघन को लेकर 26 अगस्त 2016 को एफआईआर दर्ज कराई गई थी लेकिन प्रशासन की ओर से वसीम रिजवी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। एक बार फिर याद दिलाते चले कि उस समय सूबे में अखिलेश यादव की सरकार थी और वसीम रिज़वी का कोई भी विवादित बयान नही आता था।
वसीम रिजवी के खिलाफ दूसरी एफआईआर लखनऊ के हजरतगंज कोतवाली में 27 मार्च 2017 को दर्ज की गई थी। उस समय प्रदेश योगी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी थी। ये मामला कानपुर देहात के सिकंदरा में शिया वक्फ बोर्ड में दर्ज जमीनों के रिकॉर्डों में घपलेबाजी और मुतवल्ली तौसिफुल को धमकी देने का था। रिजवी और वक्फ बोर्ड के अधिकारियों पर आरोप था कि उन्होंने 27 लाख रुपये लेकर कानपुर में वक्फ की संपत्ति का रजिस्ट्रेशन निरस्त करने और पत्रावली से कागजात गायब कर दिये है। सीबीआई की लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने आईपीसी की धारा 409, 420 और 506 के तहत उस मामले में एफआइआर दर्ज की गई थी। उस ऍफ़आईआर में पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी, शिया वक्फ बोर्ड के प्रशासनिक अधिकारी गुलाम सैयदन रिजवी और वक्फ इंस्पेक्टर वाकर रजा के अलावा नरेश कृष्ण सोमानी और विजय कृष्ण सोमानी को नामजद किया गया है। इसके अलावा प्रयागराज में हुए वक्फ घोटाले के संबंध में दर्ज एफआईआर में अकेले वसीम रिजवी ही नामजद हैं। यहाँ ख़ास तौर पर गौरतलब है कि इस सीबीआई जाँच का आदेश प्रदेश की वर्त्तमान योगी सरकार ने दिया था।
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