तारिक आज़मी
वाराणसी। एक तरफ इन्सानियत सिसक रही है। दूसरी तरफ दावा है कि कमी किसी चीज़ की नही है। वही तीसरी तरफ कोरोना संक्रमण के बढ़ने से कुछ प्राइवेट अस्पताल जमकर चंडी काट रहे है। उनकी इस बढ़ी फीस और अन्य सेवाओं के लिए लिया जा रहा भुगतान कही से भी इन्सानियत के श्रेणी में तो नही खड़ा करता है। हाँ ये जरुर कहा जा सकता है कि लूट खसोट जारी है।
मरीज़ के तीमारदार ने हमसे बताया कि अस्पताल में एक दिन का बेड चार्ज 20 हजार रुपया है। साथ ही रोज़ का दवाई खर्च अलग। दवा खर्च के सम्बन्ध में बताया कि 11 हज़ार से लेकर 13 हज़ार तक की एक दिन की दवा पड़ती है। दवा भी ऐसी कि सिर्फ उनके अस्पताल के डिस्पेंसरी में ही मिलती है और कही नही। उसके पैसे अलग से देने होते है। पिछले 6 दिनों से माँ भर्ती है और अभी तक हालत में सुधार नही हुआ है। अब डाक्टर कहते है कि ऑक्सीजन नही है। भरवा कर लाओ तब आगे का इलाज होगा। मरीज़ के दोनों बेटे शहर में ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर उसको रिफिल करवाने के लिए दौड़ रहे है। तीमारदार ने बताया कि माँ को सांस लेने में दिक्कत हो रही है और सांस फुल रही है। बुखार भी आ रहा है। जब हमने पूछा कि क्या कोरोना की जाँच हुई है तो वह बोला नही।
अब आप सोचे। सभी सिमटम्स कोरोना के नज़र आ रहे है। मगर डाक्टर साहब की मोटी फीस बता रही है कि वह शायद कोरोना के आपदा काल में अवसर तलाश बैठे है। उनके अवसर की तलाश कहे अथवा फिर कमाई की भूख कि उनको मरीजों के आर्थिक स्थिति से कोई फर्क नही पड़ता है। देश का सबसे महंगा होटल भी इससे काफी कम कीमत में आ जायेगा। समझ नही आया कि 20 हज़ार प्रतिदिन का कौन सा ऐसा बेड है। क्या सद्दाम हुसैन की सोने से बनी पलंग है क्या भाई ?
इन सबको देख कर तो अहसास होता है कि इस आपदा काल के बाद डाक्टर साहब एक ताजमहल बनवायेगे। मगर उस आलीशान ताजमहल के नीचे कितनी सिसकिय और कितनी करुणा दफ्न होगी ये समझने के लिए एक मुलायम दिल चाहिए। आखिर डाक्टर साहब पर नियंत्रण क्यों नहीं है आप यही सोच रहे होंगे न। तो जो अस्पताल में भर्ती है उनकी नज़र में अपने मरीज़ की सिर्फ और सिर्फ बेहतरी दिखाई देती है। उनके दिमाग में है कि कहा लेकर जायेगे। सब जगह कोई देख नही रहा है। और यही अवसर प्रदान कर देता है। रही बात नियंत्रण की तो नियंत्रण आखिर करेगा कौन ? मुख्य चिकित्साधिकारी के नम्बर पर उनके पीआरओ राघवेन्द्र फोन उठाते है। बेशक बड़े नम्रता से बात करते है मगर उनका आखिर में उत्तर सिर्फ ये रहता है कि साहब से बात नही हो पायेगी।
वही अगर डीएम साहब को फोन करे तो उनका फोन भी पीआरओ ही उठाते है। इसके अलवा नोडल अधिकारी फोन ही नही उठाते है। अब आप खुद स्थिति को समझे कि जब पत्रकारो का फोन नही उठता है तो फिर आखिर आम जनता का कैसे फोन पर उनको समाधान मिलेगा। अभी दो दिनों पहले की ही बात है कि एक प्राइवेट अस्पताल में एक पेशेंट मर गया था। उसके डेड बॉडी देने के पहले बड़ी रकम की मांग हुई तो परिजनों ने हंगामा करना शुरू कर दिया। हंगामे की सुचना पर पहुची पुलिस ने मामले को संभाला और परिजनों को डेड बॉडी दिलवाई। ये हंगामे की सुचना पुलिस को अस्पताल प्रशासन ने ही दिया था। जिस सुचना को पाकर मौके पर पहुची पुलिस ने मामले को मानवता की नज़र से हल किया था और परिजनों को डेड बॉडी दिलवा कर सख्त हिदायत अस्पताल को दिया था।
अब देखना होगा कि जिला प्रशासन ऐसे निजी अस्पतालों पर कब कार्यवाही करेगा जो मुख्यमंत्री के स्पष्ट आदेश का पालन नही कर रहे है। ये नार्मल अस्पताल है। वही कोविड के इलाज हेतु अधिकृत किये गए अस्पतालों की बात अभी बाकी ही है। एक वेंटिलेटर बेड के लिए सुना जाता है कि मोटी फीस है। यानी गरीब बिना इलाज के ही सिर्फ फीस की रकम सुनकर ही दहशत में आ जाए।
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