तारिक आज़मी की मोरबतियाँ : इन्साफ या फिर ज़ुल्म –14 लोगो को ऑक्सीजन मुहैया करवाने वाले युवक सहित तीन पर हुआ महामारी अधिनियम में मुकदमा दर्ज

तारिक आज़मी

जौनपुर। खबर आपको पढ़कर हो सकता है नागवार गुज़रे, कुछ सत्ता के पैरोकारो को हमारे लफ्ज़ कडवे लगे। शायद आपको उस युवक की इंसानियत अन्दर तक झकझोर नही सकती है। मगर आज पुलिस उस इन्सानियत के जज्बे वाले युवक की गिरफ़्तारी करने को तलाश रही है जिसने एक नही 14 लोगो को आक्सीजन देकर उनकी जान बचाने में मदद किया। वजह सिर्फ ये है कि उसने बिना इलाज के साँसों हेतु तड़प रहे लोगो की मदद किया और उनको ऑक्सीजन मुहैया करवाया। ये काम सीएमएस साहब को इतना नागवार गुज़र गया कि उन्होंने उस युवक सहित उसके दो अन्य अज्ञात साथियों पर महामारी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया।

आइये आपको पहले खबर पूरी बताते है। जौनपुर के जिला अस्पताल में बृहस्पतिवार को उपचार के लिए दूरदराज से पहुंचे मरीजों को बेड के अभाव में भर्ती नहीं किया गया। ऐसे मरीज़ वही परिसर में ही फर्श पर छटपटाते रहे। यह दृश्य प्राइवेट एंबुलेंस चलवाने वाले युवक विक्की अग्रहरि ने देखा तो उसके अन्दर इन्सानियत का जज्बा जाग गया। उसने आनन फानन में अपनी एंबुलेंस में मौजूद तीन सिलिंडरों को निकालकर मरीजों को ऑक्सीजन देना शुरू कर दिया। बाद में उसने एक अन्य एंबुलेंस से भी तीन सिलिंडर मांग लिए। इसके बाद एक अन्य युवक जिसने अपने पिता के लिए सिलिंडर मंगाए थे, किंतु पिता की मौत हो जाने पर वह बच गए थे ऐसे दो सिलिंडर भी उसने विक्की को सौंप दिए। कुल आठ सिलिंडरों की मदद से विक्की ने 14 लोगों को आक्सीजन देकर राहत पहुंचाई।

युवक की ये मानवता उसके मुसीबत का सबब बन गई। फिर क्या था, मानवीय ह्रदय के साथ किये गए उसके इस कार्य की चर्चा सोशल मीडिया पर होने लगी। जिसके बाद शायद अस्पताल प्रशासन को ये बुरा लगा होगा कि उसके रहते कोई कैसे किसी की मदद करके उनको राहत दे रहा है। मामला सुर्खियों में आने के बाद पहुंचे सीएमएस ने मरीजों को तो किसी तरह अस्पताल में भर्ती कर लिया। मगर उनका गुस्सा सातवे आसमान पर था।

इसके बाद आज शुक्रवार सीएनएस डॉ0 अनिल शर्मा ने उस मददगार युवक विक्की अग्रहरि और उसके दो अज्ञात साथियों के खिलाफ धारा 144 और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का उल्लंघन, महामारी फैलाने सहित अन्य धाराओं में केस दर्ज करवा दिया। सीएमएस डॉ0 अनिल शर्मा का कहना था कि ओपीडी पर्ची काउंटर के बगल में मरीजों को लेटाकर युवक ऑक्सीजन दे रहा था, जबकि वह न तो इसके लिए अधिकृत था और न ही उसके पास कोई डिग्री है। यह मरीजों की जान से खिलवाड़ करना था। बस अस्पताल प्रशासन की छवि खराब करने के लिए ऐसा किया गया था।

इस सम्बन्ध में कोतवाली थाना प्रभारी तारावती यादव ने बताया कि मामला दर्ज कर छानबीन की जा रही है। अब मामले में पुलिस आरोपी युवक विक्की अग्रहरी और उसके दो अन्य अज्ञात साथियों को तलाश रही है। सीएमएस साहब अपनी पीठ खुद थपथपा रहे होंगे। कारण है कि आखिर उनके अस्पताल में जब मरीज़ भर्ती नही हो रहा था तो उन मरीजों की जान बचाने वाला आखिर विक्की होता कौन है ? कैसे उसने किसी की साँसों को राहत दिया। अस्पताल तो अस्पताल होता है। आखिर विक्की कैसे किसी को ऑक्सीजन दे सकता है। क्या आम जनता की मदद करके वो हीरो बनेगा। बिलकुल नहीं बनने देगे उसको हीरो। उसको जेल भेजेगे आखिर कैसे उसकी हिम्मत हुई कि आम जनता की सेवा करने लगा। किसने अधिकार दिया आखिर उसको कि उसके अन्दर इन्सानियत जागे।

बिलकुल सही किया डॉ अनिल शर्मा ने। कैसे कोई किसी की मदद कर सकता है। वह भी इन्सानियत दिखायेगा। इतनी हिम्मत हो गई है एक नागरिक की ? सूली चढवा दे डाक्टर साहब, मगर जाकर कभी उन मरीजों के तीमारदारो से पूछे जो आपके टीम के सामने गिडगिड़ा रहे थे कि साहब एडमिट कर लो। वो रो रहे थे कि साहब कुछ करो, बचा लो मरीज़ को। उस वक्त आप कहा थे डाक्टर साहब। भले इन्सानियत किसी के अन्दर न जागी हो मगर ऐसे इन्सानियत के देवता बनकर उभरे युवको को तो आप जेल भेज के मानना ताकि फिर कोई इंसान अपने अन्दर इन्सानियत न पैदा कर सके। पुलिस को भी उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाने को कहना चाहिए था अस्पताल प्रशासन को। आखिर अस्पताल में इंसानियत कहा से जन्म ले बैठी।

अब खबर पूरी हो चुकी है. आप इस खबर को पढ़कर बेशक अफ़सोस कर रहे होंगे, करना भी चाहिए. आखिर मदद के बाद जब सलाखे मिलेंगी तो लोग अपनी इन्सानियत को घर की फ्रिज में बंद करके बाहर आया करेगे. मगर कभी सोचियेगा, क्या विक्की अग्रहरी ने कोई गुनाह किया है. क्या उसको कभी ऐसा नही करना चाहिए. जब भी आप कभी कही सीएमएस साहब से मिले तो पूछियेगा ज़रूर कि आखिर उस युवक का गुनाह क्या था ?

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