वाराणसी। देवो की नगरी है काशी यानि बनारस, अर्थात वाराणसी। वाराणसी के सांसद प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी है। वाराणसी के विकास पर प्रदेश सरकार का विशेष ध्यान रहता है। शायद इसी कारण वाराणसी नगर निगम समय समय पर कुछ क्रांतिकारी विकास करता रहता है जिससे वह चर्चाओं में हमेशा रहे। अब जब नगर निगम वाराणसी ऐसे क्रन्तिकारी विकास कर सकता है तो उसका अलोक विभाग तो दो कदम आगे चलकर विकास करेगा ही। अब आप इसको विकास न समझे और इसको जानकर हंसे तो फिर हम क्या कर सकते है।
कल यानी सोमवार को इस फोटो के साथ हमने यह समस्या नगर निगम वाराणसी के ट्वीटर पर शेयर करके अधिकारियो का ध्यान इस तरफ आकर्षित करवाया। नगर निगम ने ट्वीटर पर प्राप्त इस समस्या से सम्बंधित शिकायत का तत्काल संज्ञान लिया और जवाब भी दिया। सुबह का इंतज़ार हमको भी था और क्षेत्र के नागरिको को भी था। नगर निगम का रजिस्टर भी शायद इस समस्या के निस्तारण का इंतज़ार कर रहा था। इस इंतज़ार की घड़ी खत्म हुई और आखिर सुबह हुई।
नगर निगम ने इस शिकायत को कहाँ भेजा कहाँ नही भेजा ये तो हमको जानकारी नही है। मगर सुबह नगर निगम के आलोक विभाग में कार्यरत एक कर्मचारी का आगमन क्षेत्र में होता है। खम्भे के पास चारो तरह घूम कर कर्मचारी महोदय (बड़े सम्मान के साथ बात नही करेगे तो नाराज़ हो जायेगे और कोई अन्य क्रन्तिकारी विकास कर डालेगे) के द्वारा समस्त निरक्षण करने के उपरांत इस समस्या का जो क्रांतिकारी समाधान किया है वह कोई दूसरा कर ही नही सकता है। नगर निगम इन सज्जन ने एक सीमेंट के खाली बोरे का इंतज़ाम किया। उसके बाद सब तार-वार समेट कर बोरा के अन्दर ठूस कर बोरा को खम्बे से बाँध दिया तथा अपने कागज़ पर समस्या का समाधान लिख कर चल गये।
भाई इतना क्रांतिकारी आविष्कार किया है साहब ने कोई कर नही सकता है। बेकार का सरकार ने इतना खर्च करके डब्बा-वब्बा लगवाया। सरकार को उन्होंने इस समस्या का समाधान ऐसे करके बताया कि इस डब्बे के जगह अगर बोरा इस प्रकार से बाँध दिया गया होता तो काफी सहूलियत हो जाती। “जीवन के साथ भी, जीवन के बाद भी” बोरा। भाई जब तक समझ आये इस बोरा का उपयोग आप स्ट्रीट लाइट के लिए करे, और जब न समझ आये बोरा खोले और तार-वार चेक कर ले।
अब आप बताये क्रांतिकारी आविष्कार है कि नही, क्रांतिकारी विकास है कि नही। कर्मचारी ने जाकर अपने दायित्वों की इतिश्री कर लिया होगा और अपने कागज़ी घोड़े पर समस्या का समुचित समाधान लिख लिया होगा। नगर निगम के आलोक विभाग ने भी इस कागज़ी घोड़े को अग्रसारित करके अपने यहाँ के एक और शिकायत का निस्तारण महज़ 24 घंटे के अन्दर करना लिख लिया होगा। मगर क्या हकीकत में समस्या का निस्तारण हुआ है ? ये बड़ा प्रश्न खुद आलोक विभाग के ज़िम्मेदार खुद से करे। अगर ऐसे समस्या का निस्तारण करना होता तो न जाने कब का क्षेत्रवासी एक बोरा खरीद कर इसके ऊपर ऐसे बाँध चुके होते और नगर निगम द्वारा इसको ठीक करने का इंतज़ार न करते।
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