वाराणसी। हिंदी पत्रकारिता में सांध्य कालीन अखबारों में अपनी एक अलग ही पहचान बनाया था समाचार पत्र “गांडीव” ने। संध्या कालीन दैनिक का नाम आते ही इस अख़बार का नाम जुबां पर आ जाता था। हाल कुछ इस तरह थी कि शाम को अख़बार खरीदने निकले हर एक शख्स कहता था कि “एक ठे गांडीव दे दा।” ये एक हकीकत है कि इस अख़बार ने कई नामी गिरामी पत्रकारों को जनपद में परिचित करवाया। एक प्रतिष्टित संस्थान के तौर पर “गांडीव” का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता था। अख़बार के सस्थापक भगवान दास अरोड़ा से लेकर राजीव अरोड़ा तक ने अपनी जी जान लगा कर इस अख़बार के गुलशन को सीचा और हिंदी पत्रकारिता की लम्बे समय तक सेवा किया।
अब हमको देख कर वायरल करने का कारण था भाई। हमारी नज़र पड़ जाती तो फ्री की हम उनकी तफरी ले डालते। मगर हमारे चाहने वाले भी कम नही है। उन्होंने स्क्रीन शॉट मार कर भेज दिया। कहा देखा देखा पाण्डेय तोहर खबर के चुरा लेलन। अब पाण्डेय जी ने पूरी खबर कापी पेस्ट मार तो दिया। भले उन्होंने मोनू पहाड़ी का नाम न सुना हो मगर खबर कापी किया तो नाम सुनने का क्या मतलब बनता है। बस नाम अपना चेप डालो और वाह वाही लुट लो। सब्जेक्ट क्या है ? क्या लिखा है इससे कोई मतलब नहीं बस चेप डालो।
अब जब स्थिति ऐसी है कि एक प्रतिष्ठित अखबार गांडीव के खुद को क्राइम चीफ बताने वाले ऐसा कर रहे है तो फिर बकिया उनकी टीम जो क्राइम रिपोर्टर है वो क्या करते होंगे समझा जा सकता है। वैसे क्राइम चीफ साहब को शायद ये न पता होगा कि भले वो क्राइम चीफ है मगर जो कृत्य या कहे कुकृत्य उन्होंने किया है वह क्राइम है। वैसे अख़बार को भी इस बात पर तवज्जो देना चाहिए कि उनके क्राइम चीफ साहब उनका नाम कितना रोशन कर रहे है।
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