तारिक़ आज़मी
पंचायत चुनाव संपन्न हो चूका है। कोरोना के देश में जारी कोहराम के बीच संपन्न हुवे पंचायत चुनाव कोरोना के कहर के बीच अपनी आवाज़ को दबाये हुवे है। मगर सियासी दल इसके परिणामो को लेकर गंभीर भी है। एक तरफ जहा सपा अपनी ज़मीन कायम रखने पर मुस्कुरा रही है वही बसपा अपनी सियासी जमीन के कायमी पर सुकून की साँस ले रही है। वही सत्तारूढ़ दल के लिए थोडा पेशानी पर परेशानी का बल डालने वाला पंचायत चुनाव परिणाम रहा है। मगर ये सभी सियासी हलचले कोरोना के कोहराम के बीच दबी हुई है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत गढ़ माने जाने वाले पूर्वांचल में भाजपा की सियासी जमीन इस पंचायत चुनाव में खिसकती हुई दिखाई पड़ी है। पंचायत चुनावों में गोरखपुर और वाराणसी से भाजपा को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी है। जिला पंचायत के चुनाव में सपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। माना जाता है कि पूर्वांचल में जिस पार्टी की पैठ होती है। वही पार्टी सत्ता पर काबिज होती है। इस पंचायत चुनावों में भाजपा के समर्थित प्रत्याशियों ने सीधा चुनाव सपा के खिलाफ ही लड़ा था। जिसमे सपा को बढ़िया जीत हासिल हुई है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसी पूर्वांचल के गोरखपुर जिले से हैं तो वही सपा के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आजमगढ़ के सांसद हैं। उनकी भी नजर पूर्वांचल पर है। ऐसा माना जाता है कि पूर्वांचल का मतदाता कभी किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहा है। यही कारण है कि 2007 में जहां बसपा पर विश्वास जताया था तो वहीं 2012 में सपा को जनमत दिया था। 2017 के चुनाव में भाजपा पर विश्वास किया था। 2022 के चुनाव में जनता किस ओर करवट लेगी पंचायत चुनाव से संकेत मिलने लगे हैं। मशहूर इतिहासकार और राजनैतिक विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर मोहम्मद आरिफ ने कहा कि “पूर्वांचल में जिस प्रकार से सपा ने अपनी सियासी जमीन मजबूत किया है वह 2022 के विधान सभा चुनावों को लेकर उसकी तैयारियों को साफ़ दिखा रहा है। वही बसपा ने भी अपनी सियासी ज़मीन कायम रखा हुआ है जो सत्तारूढ़ दल भाजपा के लिए अच्छी तस्वीर नहीं पेश कर रहा है। बेशक ये पंचायत चुनाव बदलाओ के तरफ इशारा कर रहा है।”
यूपी में पूर्वांचल से तकरीबन 33 प्रतिशत सीटें आती हैं। पूर्वांचल के 28 जिलों से 164 विधानसभा सीटें आती हैं। पूर्वांचल की राजनीतिक दशा और दिशा वाराणसी, जौनपुर, भदोही, आजमगढ़, गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज, संत कबीरनगर बस्ती, मऊ, गाजीपुर, बलिया, बहराइच, सुल्तानपुर, अमेठी, प्रतापगढ़, कौशांबी, प्रयागराज आदि तय करते हैं। पंचायत चुनाव के परिणाम में तकरीबन 25 प्रतिशत वोट सपा को मिले हैं तो वही भाजपा और बसपा तकरीबन 15 प्रतिशत वोट प्राप्त किए हैं। इन मतों को अगर गौर से देखे तो भले निर्दल और अन्य बढ़िया वोट प्रतिशत पाए है, मगर भाजपा और सपा के मध्य 10 फीसद मतों की अधिक संख्या बड़ा इशारा करती है। अगर निर्दलियो के मतो को दो बराबर हिस्सों में तकसीम करे तो भी लीड सपा के खाते में जाती है। जबकि यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि बसपा ने भी अपनी सियासी जमीन कायम रखा हुआ है। वह 15 फीसद मतो को लेकर सुकून की साँस ले रही है। यानी निर्दल और नया को मिले मतों में वह भी दावेदार है। इस प्रकार सपा का मत प्रतिशत फिर कही अधिक दिखाई देगा।
चुनावी जानकारों की माने तो यदि बुआ और बबुआ फिर से एक हो गए तो फिर ये सीन एकदम उल्ट जायेगा और वर्त्तमान स्थिति को ही मध्य में रखे तो 40 फीसद मतो के साथ ये गठबंधन खड़ा नज़र आएगा। इस स्थिति में सत्तारूढ़ दल भाजपा को सियासी जमीन बचानी मुश्किल हो जाएगी। क्योंकि पंचायत चुनाव के परिणाम में बसपा भाजपा का वोटिंग प्रतिशत आसपास ही है। जबकि सपा भाजपा से बहुत आगे है। ग्रामीण इलाकों में 60 प्रतिशत जनता निवास करती है और पंचायत चुनाव के परिणाम ने दिखा दिया कि एक चौथाई जनता सपा के साथ है। ये एक बड़ा मत प्रतिशत है। जिसके परिणाम 2022 के विधानसभा चुनावों में नज़र आ सकते है।
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