तारिक आज़मी/ए0 जावेद
वाराणसी। वाराणसी के आदमपुर थाना क्षेत्र के कायस्थ टोला में बच्चो के मामूली झगड़े ने बडो के बीच विवाद उत्पन्न कर दिया। पहले माँ-बहन, फिर हाथ पैर और फिर दोनों पक्षों के बीच हल्का फुल्का पथराव हुआ। इस दरमियान रास्ते में खडी एक विक्रम, और एक ई-रिक्शा को नुक्सान हुआ है। कुछ लोगो के घायल होने की भी जानकारी मिल रही है। हंगामे की सुचना पर पहुची आदमपुर पुलिस ने स्थिति को तत्काल नियंत्रण में ले लिया। मौके पर शांति व्यवस्था कायम है।
इसी दरमियान सुचना पाकर फैटम दस्ते के साथ क्षेत्रीय चौकी इंचार्ज कुवर अंशुमन सिंह मौके पर पहुचे। पुलिस को देखते ही दोनों पक्ष मौके से भागे। चौकी इंचार्ज ने इस घटना की सुचना अपने अधिकारियो को दिया। सुचना पाकर थाना प्रभारी आदमपुर इन्स्पेक्टर सिद्धार्थ मिश्रा अपने दल बल के साथ मौके पर पहुच गए। इस दौरान सोशल मीडिया पर दो पक्षों के इस झगड़े को सांप्रदायिक रंग की बात करते हुवे कुछ सोशल मीडिया के रणबांकुरे खुद को समझने वालो ने बात फैला दिया। इसको बल शायद इस कारण मिला कि एक पक्ष के नाम में धर्म और दुसरे के नाम में मज़हब तलाश बैठने वालो की कमी नही है।
घटना स्थल पर सूचना पाकर एडीसीपी काशी जोन, आदमपुर, जैतपुरा, कोतवाली, कैंट, चौक समेत कई थानों की पुलिस फोर्स मौके पर पहुच गई और क्षेत्र में पैदल गश्त किया। एहतियातन इलाके में पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई है। पुलिस प्रकरण में पूछताछ के लिए 4 लोगो को थाने लेकर आई है। समाचार लिखे जाने तक दोनों पक्षों में से किसी तरफ से तहरीर नही पड़ी है। पुलिस विधिक कार्यवाही की तैयारी कर रही है।
इसके पहले भी इसी प्रकार से छोटी छोटी बातो पर हुआ है ऐसा ही विवाद
घटना में शामिल दोनों पक्षों में छोटी छोटी बातो को लेकर पहले भी विवाद हुआ है। मामले बढे है और मारपीट तथा गली गलौंज भी हुई है। प्रकरण कभी ये सब थाना चौकी के दहलीज़ तक नही पंहुचा क्योकि सुबह होने के बाद पहले एक दुसरे पक्ष को घुरी घुरौवल होती है उसके बाद फिर शाम तक दोनों पक्ष एक साथ बैठ कर हंसी मजाक करता है। महज़ 24 घंटे के अन्दर मामला खत्म हो जाता है। मगर इस बार बात थोडा ज्यादा ही बढ़ी।
क्यों बढ़ी इस बार बात
मामला बढ़ने का कारण सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वाले लोग भी है। पुलिस किसी के घर तलाशी में जाती है। कमज़ोर दरवाज़ा पीटने पर सिटकनी अपने से खुल जाने को दरवाज़ा तोडना कोई दिखाता है तो कोई एक ही पक्ष का पक्षकार बनकर बच्चो को युवक बताते हुवे भयानक पथराव जैसे शब्द का प्रयोग करके सनसनी फैलाने की चाहत रखता है। समाज के लिए कलमकारों को भी मामूली बात को मामूली ही लिखना बेहतर होता है शायद ये सोशल मीडिया के रणबांकुर समझने में भूल कर जाते है।
बेशक कभी चौहट्टा लाल खान नाम ही पुलिस के लिए सरदर्द इलाका हुआ करता था। मगर ये भी हकीकत है कि ये तीसरा दशक चल रहा है जब इस इलाके में कोई बहुत बड़ी घटना नही हुई है। छुटपुट लड़ाई-झगड़े, गाली गलौंज और चोरी जैसी घटनाओं को छोड़ दे तो ये क्षेत्र लगभग 25 साल से शांत हो चूका है। यदि 25 साल पहले की भी बात करे तो सांप्रदायिक तनाव तो कभी नही हुआ इस क्षेत्र में। जिस जगह होलिका की आग लगती है और युवक होली खेलते है वही मुहर्रम में मातम भी होता है।
एक कडवा सच ये भी है
चौहट्टा लाल खान से मुहर्रम के महीने में अँधेरे का जुलूस निकलता है। जुलूस के रास्तो में अँधेरा कर दिया जाता है। जुलूस के रास्ते में कई घर हिन्दू समुदाय के भी है। किसी घर के अन्दर अथवा उसकी खुद की व्यक्तिगत लाइट व्यवस्था को जुलूस कमेटी बंद करने को नही कहती है। मगर सांप्रदायिक सौहार्द ही है कि जिस प्रकार से मुस्लिम समाज के सभी लोग अपने घरो के बाहर की लाइट बंद कर देते है वैसे ही हिन्दू समुदाय के लोग भी अपने घरो की लाइट बंद कर देते है। यहाँ दीपावली पर मुस्लिम समाज के भी युवक पटाखे छोड़ते है तो ईद पर हिन्दू समाज के युवक भी घरो के बाहर निकल कर नमाज़ खत्म होने के बाद अपने परिचितों से गले मिलते है।
हकीकत ये है कि चंद लोगो से किसी एक पक्ष की बात सुनकर दुसरे पक्ष को कटघरे में सीधे खड़ा कर देना कम से कम पत्रकारिता तो नही हो सकती है। क्षेत्र का इतिहास भूगोल समझे बिना किसी क्षेत्र को संवेदनशील कागजों में कहा जा सकता है। मगर हकीकत की ज़मीन पर उतर कर मुहब्बत की बहते सरोवर को भी देख लेना चाहिए। दो पक्ष अगर एक दुसरे से धर्म और मज़हब में अलग है तो क्या वो दो पक्ष ही नही हो सकते है ? दो सम्प्रदाय ही होंगे ?
झगडे में एक पक्ष के परिजनों के दो सैलून इसी इलाके में है। कभी फुर्सत से उस सैलून में बैठ कर वहा आने वाले ग्राहकों के नाम में मज़हब तलाश करे और फिर दुकानदार तथा ग्राहक के बीच होने वाला हंसी मजाक देखे। शायद धर्म और मज़हब नही यहाँ दो एक ही मोहल्ले के लोगो की बातचीत आपको समझ आएगी। कलम चलने के पहले उस कलम के लफ्जों पर ध्यान रखना चाहिए। कही हमारे लफ्ज़ नफरत तो नही बो रहे है ? बेशक कलम आज़ाद है, लब आज़ाद है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है मगर कही इस स्वतंत्रता का दुरूपयोग तो नही हो रहा है ?
सुरक्षित रहे, स्वस्थ रहे। “दो गज दुरी, मास्क ज़रूरी” ये ध्यान रखे।
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