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वाराणसी – साँसों का सहारा बना बनारस का ये युवक, 15 अप्रैल से लेकर अब तक 300 से अधिक मरीजों की कर चूका है सहायता

ए जावेद

वाराणसी। मौज और मस्ती का शहर है बनारस। जिंदा दिल लोगो का शहर बनारस कोरोना के कहर से कराह उठा है। बेशक भले दर्द यानी रफ़्तार इसकी कम हुई है मगर शहर में कोरोना का कहर तो अभी भी जारी है। इस आपदा काल में जब लोग अपनों का साथ छोड़ दे रहे थे ऐसे वक्त में एक युवक ने दिन देखा न रात, सुबह देखा न शाम, बस आम जन की सेवा में खुद को समर्पित कर दिया। कई कई राते बिना सोये बिताने वाले इस युवक की मेहनत की आज चर्चा शहर में है।

वाराणसी शहर के हृदयस्थल में एक गोदौलिया के निवासी इन्शुरेन्स एजेट मनोज दुबे। पेशे से एक एजेंट है। काम ठीक ठाक चलता है जिससे डाल रोटी चल जाती है। समाज सेवा के लिए एक संगठन से जुड़ कर समाज सेवा भी किया करते है। इस दरमियाना अप्रैल माह में वाराणसी में शुरू हुवे कोरोना के कहर ने इनके अध्यात्म गुरु को अपने चपेट में ले लिया। काफी प्रयास के बाद भी उन्होंने इस नाश्वर दुनिया को अलविदा कह दिया। अपने गुरु के लिए आक्सीजन हेतु मनोज ने काफी प्रयास किये थे। मगर उनको बचाया नही जा सका। ये घटना मनोज दुबे के दिमाग में घर कर गई।

अपनी बेचैनी को अपने परिचितों में बताया तो वाराणसी के प्रतिष्ठित काशी चाट भंडार के दीपक केसरी और प्रदीप केसरी ने तीन आक्सीजन सिलेंडर मनोज को दिलवाया गया। जिसके बाद से मनोज ने अपने समाज सेवा के तहत साँसों को राहत पहुचाने का काम किया। कोई भी आया जिसको आक्सीजन की आवश्यकता है उसे तत्काल आक्सीजन का अरेंज करना। भले ही तीमारदार इसके पैसे देने को तैयार हो, मगर उससे पैसे न लेकर एक वायदा लेना कि इन पैसो से किसी गरीब की अन्य मदद कर दीजियेगा।

मनोज की समाज के प्रति इस लगन को देख कर डॉ सुभाष गुप्ता ने अपने कुछ सिलेंडर मनोज को देकर कहा कि इसकी जब भी जितनी रिफिलिंग होगी उसके पैसे मैं दूंगा। फिर शुरू हो गया साँसों को राहत देने का मनोज दुबे का ये सफ़र। “मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग आते गए और करवा बनता गया” के तर्ज पर मनोज के साथ लोग जुटते गए। मनोज ने दिन रात एक करके शहर में लोगो की सेवा करना शुरू कर दिया। कई कई दिनों तक बिना सोये, सिर्फ एक घंटी पर फोन उठाने वाले मनोज आज भी लोगो की खिदमत कर रहे है।

मनोज की इस लगन को देख कर डॉ ओपी मिश्रा और डॉ सुभाष गुप्ता ने उनका भरपूर सहयोग करना शुरू कर दिया। दोनों ही चिकित्सको ने मरीजों की फोन पर सहायता करते हुवे उन्हें मुफ्त चिकित्सीय सलाह देना शुरू कर दिया। रात बिरात किसी भी समय मनोज के फोन को तुरंत उठाना। उनके माध्यम से मरीज़ से बात करके उनको चिकित्सीय सहायता प्रदान करना दोनों नामी चिकित्सको ने शुरू कर दिया। वही दूसरी तरफ मनोज जिसके पास दवाओं का पैसा न हो उसके लिए दवा भी अपने जेब से ले जाकर देना शुरू कर दिए।

मनोज के बचपन के दोस्त और सखा दीपू पांडे ने भी मनोज के कदम से कदम मिलाकर चल रहे है। सिलेंडर खाली होते ही उसको भाग भाग कर भरवाने का काम दीपू ने देखना शुरू कर दिया। सोशल साइट्स पर किसी ने मनोज दुबे का नम्बर वायरल कर डाला। इसके बाद तो फोन आने की लाइन ही लग गई। मगर मनोज इन फोन काल्स पर तनिक भी परेशान नही हुवे बल्कि सबकी सहायता करना जारी रखा। न आईडी प्रूफ न कोई दस्तावेज़, ज़रुरतमंद को उसकी ज़रूरत की पूर्ति करना सिर्फ यही एक मकसद लिए मनोज दुबे ने अब तक 300 से अधिक लोगो की इस आपदा काल में सहायता अब तक किया है। यहाँ तक कि जब पूरी सेविंग खत्म हो गई तो अपने गुल्लक जो उन्होंने शौकिया रखा हुआ था और उसमे पैसे इकठ्ठा करते थे को तोड़ कर उसके पैसो को भी समाज हित में लगा डाला है। समाज सेवा की मिसाल मनोज दुबे को हम दिल से सलाम करते है।

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