तारिक आज़मी
हिन्दी पत्रकारिता दिवस आज संपन्न हुआ। पिछले दो वर्षो से ये कब आया और कब चला गया पता ही नही चला। सच बताता हु अगर व्हाट्सएप पर बधाइयो के आदान प्रदान न होते रहते तो मालूम ही नही चलता कि आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है। असल में हिंदी पत्रकारिता दिवस न होकर हिंदी पत्रकारिता पखवाडा मनाने की आदत पड़ चुकी थी। 26 मई से ही कार्यक्रम शुरू हो जाते थे। सबसे अधिक तो 30 मई को रहते थे। शुरू से ही मैं 26 से लेकर 30 मई तक पत्रकारिता तो नही करता था। हाँ एक से लेकर दुसरे संगोष्टी और कार्यक्रमों में शिकरत करता रहता था। एक शहर से दुसरे शहर। बस यही हुआ करता था। वो तो नासपीटे कोरोना ने नारद वंशजो से वह भी ख़ुशी नही देखी गई और छीन लिया है दो सालो से।
बहरहाल, पहला कारण मुख्य तो ये थे। अब दुसरे सबसे बड़े एक और कारण पर आते है। भाई देखिये देश में पत्रकारों से कही ज्यादा ताय्दात में “पतलकाल छाब” लोग है। वैसे आज सुबह से सबसे अधिक दो वर्ग ही हिंदी पत्रकारिता दिवस की बधाई दे रहा है। एक है नेता लोग और दुसरे है “पतलकाल छाब” लोग। भाई आप सही सोच रहे है कि हिंदी पत्रकारिता दिवस पर मैं क्या बात कर रहा हु ? दरअसल क्या आपको “उदन्त मार्तंड” और पंडित जुगल किशोर शर्मा जी की बाते बता कर पढ़े लिखे को फ़ारसी सिखाने का काम करू। आज तो थोडा मन हल्का करने का वक्त है तो कर लिया जाता है। अगर दिन हमारे लिए बना है तो घर में बैठ कर कम से कम मौज मस्ती नही तो लोलाबम चला कर हंस लिया जाए।
खैर, हम वापस आते है “पतलकाल छाब” लोग पर। देश में पत्रकारों से अधिक सख्या “पतलकाल छाब” लोग की है। तो पहले बधाई उनको ही देना चाहिए। कलम और कलमकार की बात करते हुवे कलम को तलवार की धार और पिस्तौल की मार सुबह से बता रहे “पतलकाल छाब” को भी हिंदी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये। वैसे नेताओं की बात तो बाद में करूँगा पहले “पतलकाल छाब” लोग की बात किया जाए और उनको विशेष सम्मान दिया जाए। इनको सबसे उंचा पीढा दिया जाए। ये बड़ी मेहनत और मशक्कत से “पतलकाल छाब” बनते है। काफी पैसे खर्च करते है इस “पतलकाल छाब” बनने के लिए।
नही समझ रहे है तो आपको बताते है। वो जो जुम्मन चा का बेटवा है न, अरे वही कलुआ। ऊ कक्षा 5 पास है। बड़ी मेहनत से कक्षा 6 में गया था और एक घंटा पूरा पड़ा रहा। एक्के घंटे में टीचर के समझ आ गवा कि ई घंटा न पढ़ पहिये। तो वापस भेज दिया। आज कल वहु “पतलकाल छाब” बन गवा है। जाकर ओकरा कारड देख ले आप। कार्ड नही कारड देखे। उप्पे लिखा होईये कि ऊ अचार सम्पादक होई गवा है। ऊ छोड़े साहब, ऊ जो खर्पत्तू का पोता है। कल्लन्वा ऊ तो पढ्वे नही किया मगर अब ऊहो “पतलकाल छाब” हो गवा है। बड़ी मेहनत करे है ऊहो। इतनी मेहनत की जाके नदेसर पर गाडी के उप्पर लिख्वाईस है “प्रेस।”
बहरहाल, समस्त “पतलकाल छाब” लोग को भी हिंदी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये। उनको ख़ास तौर पर जो बधाई देना पड़ता है। अब आते है नेता लोग पर। भाई कल तक मीडिया को गली गली घूम कर गाली देने वाले नेता भी आज मीडिया कर्मियों हो हिंदी पत्रकारिता दिवस की बधाई दे रहे है। ऐसे लोगो के लिए राहत इन्दौरी साहब एक शेर लिख कर गए है कि “सियासत में ज़रूरी है रवादारी समझता है, वो रोज़ा तो नही रखता मगर इफ्तारी समझता है।” बस वो भी नेता लोग ढंग से रवादारी निभा रहे है। दरअसल उनको अपनी जयकारा की भीड़ दिखाने के लिए अपना छपास रोग दूर करने के लिए रवादारी तो दिखाने ही है न। तो वो दिखा रहे है। महफ़िल में खुद के नाम कर परचम लिए, बिना रीढ़ के लोगो की भीड़ जुटाए बस अपना जयकारा कहलवाने वाले कल तक मीडिया को पानी पी पी कर गाली देने वालो को भी हिंदी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक सुभकामनाए। शायद इसको ही कहते होंगे कि “वो झूठ बोल रहा है बड़े सलीके से, मैं एतबार न करता तो और क्या करता ?
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