तारिक आज़मी
वाराणसी। वाराणसी में जर्जर मकानों के ध्वस्तीकरण की कार्यवाही हेतु जिलाधिकारी वाराणसी को आदेश दिए हुवे महिना गुजरने वाला है। इस दरमियान कई हादसे छोटे बड़े शहरी सीमा में हो गए मगर नगर निगम वाराणसी आज भी कागज़ी घोड़े ही दौड़ा रहा है। एक नोटिस अथवा दो नोटिस के बाद संपत्ति के मामले में शांत बैठ जाने वाला नगर निगम शायद किसी बड़ी दुर्घटना का इंतज़ार कर रहा है।
शांत बैठा नगर निगम इस घटना को भी उसी तरह देखता रहा जैसे पहले हुई घटनाओं को मूकदर्शक बना देखा करता चला आया है। इस दुर्घटना की सूचना मिलते ही एसीपी कोतवाली प्रवीण कुमार सिंह, प्रभारी निरीक्षक कोतवाली ने मयफ़ोर्स घटनास्थल का निरीक्षण किया और वीडियोग्राफी करवाई है। जर्जर मकान की छत गिरने से घर के कीमती सामान भी क्षतिग्रस्त हो गए है। ये कोई पहला हादसा नही है। इसके पूर्व पियरी इलाके में भी एक भवन गिर गया था। जिसमे कोई जान माल की हानि तो नही हुई मगर नगर निगम के कागज़ी घोड़े की पोल ज़रूर खुल गई। चौक थाना क्षेत्र के इस जर्जर भवन के लिए नगर निगम ने क्या पहले कार्यवाही किया था ये नगर निगम ही बता सकता है। भले इस हादसे में कोई जानमाल का नुक्सान नही हुआ मगर दहशत तो बन ही गई है।
वही कुछ समय पहले विश्वनाथ कारीडोर के समीप एक जर्जर भवन गिरने से एक मजदूर दब गया था। मजदूर को तत्काल एनडीआरऍफ़ की टीम ने रेस्क्यू करके मलवे से बाहर निकाला। इस जर्जर भवन के लिए भी नगर निगम की कार्यवाही सिर्फ नगर निगम ही जानता होगा। क्योकि अगर कार्यवाही हुई होती और जिलाधिकारी के आदेशो का पालन हुआ होता तो शायद ये सभी हादसे होते ही नही।
फिर चर्चा में आया दालमंडी के सकरी गली का ये जर्जर भवन
इन सभी हो रहे हादसों के बीच दालमंडी के सकरी गली में स्थित अत्यंत जर्जर भवन सीके 39/5 एक बार फिर चर्चा में आया है। कोतवाली ज़ोन में स्थित इस जर्जर भवन के कारण काफी लोगो की जान सासत में अटकी हुई है। सकरी गली में स्थिति इस जर्जर भवन के लिए नगर निगम से लेकर पीडब्लूडी के इंजिनियर भी मान चुके है कि भवन अत्यंत जर्जर है और कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है।
खुद नगर निगम ने इस भवन के लिए 10 जून को ही नोटिस जारी कर दिया था। तेज़ चलती कार्यवाही में न जाने क्या हुआ कि सब कुछ ठन्डे बसते में चला गया। नगर निगम शायद इस बात को गंभीरता से समझ नही रहा है अथवा समझना नही चाहता है कि सकरी गली में मार्किट के समय यदि कोई हादसा इस भवन के साथ हुआ तो भारी संख्या में जान माल का नुक्सान हो सकता है। इस जर्जर भवन के कारण आसपास के लोग डर के साए में जी रहे है। ये भवन अगर दुर्घटना का शिकार हुआ तो आसपास के कई अन्य भवनों को भी नुक्सान पंहुचा जायेगा। मगर नगर निगम के ज़िम्मेदार इस मामले में जिस प्रकार से शांति बनाये हुवे है उसको देख कर उनकी मंशा ही शक के दायरे में आ रही है। क्या सिर्फ कागज़ी घोड़े दौडाने के लिए ही नगर निगम ने जिलाधिकारी के आदेशो पर खानापूर्ति शुरू किया था ? शायद नगर निगम किसी बड़े हादसे का इंतज़ार कर रहा है।
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