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नहीं रहे सरदार मिल्खा सिंह, जाने आखिर क्यों कहते थे उन्हें “फ्लाईंग सिख” और पढ़े उनकी उपलब्धियां

तारिक खान

नई दिल्ली। मिल्खा सिंह नाम किसी परिचय का मोहताज तो नही है। एक जुझारू शख्सियत के धनी मिल्खा सिंह ने कोरोना से जंग के दरमियान कल यानि शुक्रवार देर रात 11:30 बजे अस्पताल में आखरी सांच लेकर इस दुनिया से रुखसत कह दिया। गौरतलब हो कि 13 जून को उनकी पत्नी और भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल कौर ने भी कोरोना संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया था।

पद्मश्री मिल्खा सिंह 91 वर्ष के थे। उनके परिवार में उनके बेटे गोल्फर जीव मिल्खा सिंह और तीन बेटियां हैं। जीव मिल्खा सिंह की गिनती विश्व के बड़े गोल्फर में होती है। उनके नाम भी कई बड़ी उपलब्धियां है। ‘फ्लाइंग सिख’ के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनकड़, बॉलीवुड एक्टर शाहरुख खान, पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर वीवीएस लक्ष्मण समेत कई हस्तियों ने उन्हें नम आंखों से श्रद्धांजलि दी।

मिल्खा सिंह भारत के ऐसे एथलिथ रहें हैं जिनकी सफलता ने भारत का नाम विश्व पटल में शीर्ष पर पहुंचाया था। खासकर फर्राटा रेस में उनके जैसे कोई दूसरा भारतीय धावक आज तक नहीं हुआ है। मिल्खा सिंह जुझारू शख्सियत और जीवट क्षमता के करियर के कारण उन्हें ‘फ्लाइंग सिख’ के उपाधि से नवाजा गया। मिल्खा भारत के उन महान हस्तियों में शामिल हैं जिनके ऊपर फिल्म बन चुकी है, उनके जीवन की उपलब्धियों को लेकर ओमप्रकाश मेहरा ने फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग” बनाई थी जो सुपरहिट हुई।

मिल्खा सिंह की ज़िन्दगी पर गौर करे तो वह हर एक नवजवान के लिए झूझने की हिम्मत का एक उदहारण है। 1960 के रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह ने एक कमाल का रिकॉर्ड बना दिया। हालांकि वो कांस्य पदक जीतने से चूक गए लेकिन रेस में जिस तरह से उ्न्होंने दौ़ड़ लगाई वो अपने-आप में एक बड़ी उपलब्धी है। एक सेकेण्ड के भी सौवे हिस्से के अंतर से मिल्खा सिंह मैडल से चुके थे। जिस धावक ने कांस्य पदक जीता था उसने दौड़ 45।5 सेकंड में पूरी की थी, वहीं। मिल्खा सिंह जीत ने रेस 45।6 सेकंड में पूरी की थी। मिल्खा सिंह को कास्य पदक नहीं जीतना का मलाल हमेशा रहा। वो अपने इंटरव्यू में इस बात को हमेशा कहा करते थे।

मिल्खा सिंह ने 1956 और 1964 ओलंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया है। साल 1959 में उन्हें पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजा गया था। इसके अलावा 2001 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया लेकिन उन्होंने सरकार के अर्जुन पुरस्कार को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि “इसको हुए 40 साल हो गए हैं बहुत देर हो चुकी है।’ एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह ने 4 बार गोल्ड मेडल हासिल किए। 1958 में इंग्लैंड में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने 400 मीटर की रेस में भारत को गोल्ड मेडल जीताया था। ऐसा कर वो भारत के पहले ऐसे एथलिथ बने थे जिन्होंने भारत की ओर से भारत को पहला व्यक्तिगत गोल्ड मेडल दिलाया था।

इसके साथ-साथ जापान में खेले गए खेलो में मिल्खा सिंह का जलवा बरकरार रहा, उन्होंने यहां पर भी कमाल करते हुए भारत को  200 मीटर और 400 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल दिलाया। इसके बाद जकार्ता में  आयोजित हुए एशियाई खेलो में फ्लाइंग सिख ने 200 मीटर की रेस में गोल्ड और 400 मीटर की रिले रेस में भी गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था। PNN24 न्यूज़ इस जीवट क्षमता के एथलीट को विनम्र श्रधांजलि अर्पित करता है।

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