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दुर्गाकुंड ऑटो स्टैंड प्रकरण (भाग -1) – सभी आदेश रख ताख पर, न खाता न बही, जो नगर निगम के अधिकारी कहे बस वही सही

तारिक आज़मी

वाराणसी। वाराणसी के दुर्गाकुंड क्षेत्र स्थित मंदिर के सामने इमामबाड़े की संपत्ति पर चल रहे ऑटो स्टैंड का मामला एक बार फिर चर्चा में है। कथित रूप से औटो चालको से पैसे लेकर ऑटो स्टैंड चलाने वाले मंगल यादव ने एक बार फिर इस प्रकरण को सामने ला दिया है। बहस इस बात की तो अब होनी ही नहीं चाहिये कि मंगल यादव सच बोल रहा है अथवा कोरा झूठ का पुलिंदा बना रहा है, बल्कि बहस तो इस मुद्दे पर होनी चाहिए कि आखिर नगर निगम के खुद को ज़िम्मेदार समझने वाले अधिकारी उच्चाधिकारियों का और अदालत का आदेश ताख पर रखकर इस ऑटो स्टैंड का लाइसेंस दुसरे की संपत्ति पर कैसे जारी कर रहे है।

मामले में पूरी तह तक जाने के लिए आपको पहले ऑटो स्टैंड के लाइसेंस की प्रक्रिया बताते चले। शहर में ऑटो स्टैंड के नाम पर नगर निगम लाइसेंस जारी करता था। पहले ये लाइसेंस ऑटो और रिक्शा तथा विक्रम स्टैंड के नाम से जारी होता था। अब ये लाइसेंस ऑटो और ई रिक्शा स्टैंड के नाम से जारी होता है। इसके लिए नगर निगम अपनी संपत्ति पर ऑटो स्टैंड के लिए एक मुश्त मुकर्र फीस लेकर व्यक्ति विशेष को ऑटो स्टैंड पर ऑटो खड़ा करने वालो से एक निश्चित धनराशि लेने का अधिकार देता है। इस लाइसेंस के साथ शरायत वही होती है जो शरायत अन्य लाइसेंस के साथ होती है। जैसे कि ऑटो चालको से निश्चित रकम ऑटो खडी करने के लिए लेने वाला व्यक्ति वही होगा जिसके नाम से लाइसेंस होगा। अमूमन इस शरायत को कही लोग पालन करते है कही नही करते है। आम तौर पर देखा जाता है कि ऑटो स्टैंड का लाइसेंस लेने वाला व्यक्ति बाहुबली किस्म का होता है और अपने चेले चम्पट को रखकर वसूली करवाता है। मगर साथ ही वह खुद भी ऑटो स्टैंड पर हर समय मौजूद रहता है।

मगर दुर्गाकुंड इलाके में ऐसा कुछ भी नही है। प्रकरण जब उठा तो उस समय मंगल यादव के द्वारा ऑटो से वसूली किया जाता था जबकि लाइसेंस जो उस समय समाप्त हो चूका था, वह लाइसेंस गोला दीना नाथ के निवासी एक व्यक्ति का था। जिसके बाद एक नया लाइसेंस महज़ ३ माह से कम समय के लिए जारी हुआ जो 7 जुलाई को समाप्त हो चूका है। लाइसेंस किसी संजय सिंह के नाम से था। जिस दिन लाइसेंस खत्म हुआ उसी के दुसरे दिन से “रायता आफ मंगल यादव” सीरीज की शुरुआत हुई है। मगर हमने कहा कि हम बहस इस मुद्दे पर आज नही करेगे कि मंगल यादव के आरोप सच है कि झूठ। क्योकि न हमको इस मामले में मगल यादव से मतलब है और न ही वाराणसी पुलिस कमिश्नरेट से कोई सवाल है। यहाँ सवाल केवल और केवल नगर निगम के गैर कानूनी काम से है। हम आज मुद्दे को वह उठा रहे है जो इस बात को साबित कर देगा कि नगर निगम जिस सपत्ति पर दुर्गाकुंड ऑटो स्टैंड का लाइसेंस जारी कर रहा ही वह संम्पत्ति उसकी है ही नही और लाइसेंस गलत तरीके से जारी किया जा रहा है।

हमने पहला शब्द ही कहा है कि “न खाता, न बही, जो नगर निगम कहे बस वही सही” के तर्ज पर नगर निगम काम कर रहा है। आइये इस शब्द के साक्ष्य सहित बात करते है। हम आपको एक बार फिर ध्यान दिलाते चले कि नगर निगम अपनी संपत्ति पर ऑटो स्टैंड का लाइसेंस देता है। मगर दुर्गाकुंड ऑटो स्टैंड के लाइसेंस की बात इसके एकदम विपरीत है। नगर निगम यहाँ दुसरे की सपत्ति पर लाइसेंस जारी कर रहा है। कारण ये है कि जिस जगह नगर निगम ऑटो स्टैंड बनाने का लाइसेंस पास कर नक़्शे के आधार पर देता है वह संपत्ति नगर निगम की न होकर शिया वक्फ बोर्ड की सपत्ति है। जिसके ऊपर ऑटो स्टैंड बनाने का अधिकार नगर निगम को है ही नही और उच्चाधिकारी इस ऑटो स्टैंड को हटाने के लिए कई बार पत्राचार कर चुके है। मगर बात फिर वही, “न खाता, न बही, बस नगर निगम जो कह दे वही सही।”

दुर्गाकुंड मंदिर के ठीक सामने पश्चिम जानिब एक शिया इमामबाड़ा है। ये इमामबाड़ा शिया वक्फ बोर्ड में पंजीकृत है और इसका पंजीकरण संख्या 2048-A है। वर्ष 1997 से पूर्व इस इमामबाड़े की संपत्ति जो बाहर चबूतरे के तौर पर है, उस पर कथित ऑटो चालको द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया था। जिसके सम्बन्ध में इमामबाड़े के तत्कालीन मुतवल्ली ने इस सपत्ति पर अवैध कब्ज़े के मुखालिफ उच्चाधिकारियों को संज्ञान देते हुवे शिया वक्फ बोर्ड को शिकायत भेजी। शिया वक्फ बोर्ड ने बकायदा नियमो के तहत हर प्रकार से जाँच कर हर एक को उसका पक्ष रखने की नोटिस जारी करने के बाद मामले में 14 मार्च 1999 में आदेश जारी किया और घोषित किया कि शिया वक्फ बोर्ड की संपत्ति पर ये अवैध औटो स्टैंड संचालित करके संपत्ति पर कब्ज़ा किया जा रहा है। जिसकी प्रति मंडलायुक्त वाराणसी को प्रेषित किया गया और कार्यवाही हेतु निवेदन किया गया।

इस आदेश के बाद तत्कालीन वाराणसी मंडलायुक्त ने तत्कालीन जिलाधिकारी को आदेशित कर अवैध टेम्पो स्टैंड हटाने को निर्देशित किया। यहाँ से शुरू हुआ कागज़ी घोड़े दौड़ना और दौडाना। नगर निगम इस कागज़ी घोड़े दौडाने एम् मास्टर डिग्री होल्डर शायद है। ये पत्र कहा किस फाइल में धुल खा रहा है ये या तो भगवान जाने अथवा नगर निगम के ज़िम्मेदार जाने। इसके बाद शिया वक्फ बोर्ड ने एक और पत्र मंडलायुक्त वाराणसी को पत्रांक संख्या 153 दिनांक ३ मई 2000 को जारी किया और ऑटो स्टैंड हटवाने की बात कही। ये भी पत्र शायद किसी दफ्तर की धुल फांक रहा है। इसके बाद अपर आयुक्त के पत्रांक संख्या 359(3)/अ0व0आ0 दिनांक 7 अगस्त 2000 को जारी हुआ। फिर मंडलायुक्त वाराणसी ने इस सम्बन्ध में 896/21-1(2012-15) दिनांक 7 अगस्त 2000 को जारी हुआ और निर्देश दिले।

मगर अनुपालन का क्या है, नगर निगम को कागज़ी घोड़े ही दौड़ना है तो दौड़ते रहेगे। कागज़ी घोड़े की रफ़्तार में वर्ष 2012 आ गया और नगर निगम ने एक क्रांतिकारी कार्यवाही किया तथा नए नक़्शे को बनवा कर नया लाइसेंस जारी कर दिया। इस नक़्शे में प्रदर्शित क्या गया कि दस ऑटो वक्फ संपत्ति के ऊपर खडी होगी और तीन ऑटो सड़क पर सवारी के भरने के लिए खडी होगी। इस नक़्शे के लिए भी मुत्वाल्लियाँन ने जमकर पत्राचार किया मगर नतीजा सिफर रहा। ये सब कुछ तब हुआ जब मंडलायुक्त वाराणसी ने अपने पत्रांक संख्या 1812/एसटी आयुक्त/2008 दिनांक 23 अप्रैल 2008 को सख्त निर्देश दिया था कि ऑटो स्टैंड हटा लिया जाए। मगर नगर निगम खुद में अपनी हुकूमत चलाने की जिद्द पाल बैठा था। वो कहा सुनने वाला किसी का भी आदेश।

बहरहाल, वर्ष 2012 में बने नक़्शे के विरोध में क्षेत्रीय नागरिको और मुत्वल्ली द्वारा शिकायतों का सिलसिला जारी रहा और ये बदस्तूर आज तक जारी है। मगर नगर निगम को भी जिद्द है कि “हम ऑटो स्टैंड तो यही बनायेगे। तो बनायेगे।” रोक भी कौन सकता है नगर निगम को। इसको हम नही बल्कि नगर निगम की कार्यशैली से समझा जा सकता है। तत्कालीन मंडलायुक्त वाराणसी ने अपने पत्रांक सख्या 8961/21-1 (2012-15) स्वा०नि०क० के द्वारा दिनांक 7 अगस्त 2014 को एक बार फिर सख्त निर्देश जारी किया जिसके तहत इस अवैध ऑटो स्टैंड को तत्काल हटाने की बात कही। मगर नगर निगम का तत्काल आज तक नही हुआ और अवैध ऑटो स्टैंड आज भी चल रहा है।

क्या कहते है ज़िम्मेदार

प्रकरण में हमने नगर निगम के जिम्मेदारो से बात किया उप नगर आयुक्त देवी दयाल वर्मा ने हमसे बात करते हुवे बताया कि “प्रकरण संज्ञान में आया है, तथ्यों के आधार पर मामले की जाँच होगी और निष्पक्ष कार्यवाही होगी।” वैसे बताते चले कि देवी दयाल वर्मा कई निष्पक्ष और त्वरित कार्यवाही के लिए चर्चा में रह चुके है। हम आशा करते है कि इस प्रकरण में भी उनकी कार्यवाही तथ्यों के आधार पर निष्पक्ष ही होगी।

क्या है कारण

अब आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर कारण क्या है कि इतने निर्देशों के बावजूद भी नगर निगम और स्थानीय पुलिस इस ऑटो स्टैंड के खिलाफ कुछ नही करती है। कारण सिर्फ एक है ऑटो यूनियन के दम पर मठाधीशी। इनसे टकराने का मतलब है चूर हो जाना शायद यही दिमाग में नगर निगम के भी होगा और स्थानीय पुलिस के भी रहा होगा। कुल जमा 13 ऑटो के लिए बने इस लाइसेंस के उपयोग में पचासों ऑटो आपको यहाँ खडी दिखाई देगी। दिन छोड़े साहब रात को ही यहाँ 20 से अधिक ऑटो अवैध तरीके से खड़ी रहती है। टकराने का नतीजा भी दिखाई दे चूका है कि कैसे दुर्गाकुंड चौकी इंचार्ज पर लांछन लग गया और लोग छोड़े खुद उनके विभाग के कुछ विभीषण इस प्रकरण को मजाक का मुद्दा बना बैठे है। इस समाचार के अगले भाग में पढ़े इसकी भी पुरी डिटेल। जुड़े रहे हमारे साथ, हम दिखाते है और बताते है वह सच जो वक्त के धुंध में कही लापता हो जाते है।

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