तारिक आज़मी
वाराणसी। जनपद के लोहता थाना क्षेत्र के कुछ सरदार लोग अब तुगलकी फरमान जारी करने लगे है। “टाट बाहर” की धमकी देना और न मानने पर “टाट बाहर” कर देना की कुछ घटनाए हमारे संज्ञान में आती रही है। मगर अब तो हद ख़त्म होती जा रही है कि ये सरदार लोग अब खुद की हनक बनाये रखने के लिए कानून को ताख पर रखकर तुगलकी फरमान भी जारी कर देते है। फरमान नही माना तो “टाट बाहर” की धमकी दी जाती है।
दरअसल सरदारी प्रथा कबीलों से हुई थी। पहले समाज कबीलों में बटा होता था। इस कबीले का एक सरदार होता था। सरदार का आदेश पूरा कबीला मानता था। धीरे धीरे कबीले खत्म हुवे और सरदारी प्रथा भी समाप्त हो गई। मगर कुछ समुदाय ऐसे है जिसमे सरदार की प्रथा आज भी जारी है। इनमे वाराणसी जनपद में “अंसारी तंजीम” है। अंसारी में सरदारी प्रथा आज भी कायम है। मोहल्ले के सरदार को पांचो का सरदार कहा जाता है। ऐसे ही 14हो के सरदार, 22सी के सरदार और 52नी के सरदार होते है। पांच मोहल्ले को मिला कर एक सरदार होते है जिन्हें पांचो के सरदार कहा जाता है।
वैसे तो अमूमन सरदार और महतो लोग किसी भी विवादित मामले में दखलअंदाजी नही करते है और न ही ऐसे मामले में हस्तक्षेप करते है जो मामला कानूनी हो। अमूमन दो पक्षों के विवाद में ये लोग आपसी सुलह समझौते करवा देते है। मोहल्ले में पड़ने वाले किसी शादी विवाह में अपना मशवरा दे देते है। समाज में एकता कायम रहे। समाज कानून का पालन करे इसका खास ख्याल सरदार और महतो रखते है। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि सरदारी परिवार में ही रहती है। एक सरदार के मृत्योपरांत दूसरा सरदार उसी परिवार का व्यक्ति होता है। इसके लिए बाकायदा कार्यक्रम के साथ सरदारी सौपी जाती है। मगर लोहता के कुछ सरदारों के क्रियाकलापों को जान कर आप भी अचंभित रह जायेगे कि कैसे कानून को ताख पर रखकर ये लोग कथित पंचायत के माध्यम से तुगलकी फरमान तक जारी कर देते है।
लोहता के कनीसराय में पंचायत ने करवाया था अजीबो गरीब तलाक
पहला मामला आपको बताते चलते है लोहता के कनीसराय का वर्ष 2020 का है। लोहता के ग्राम कनीसराय में रहने वाले शमशुद्दीन तीन भाई है। इस्लाम, शमशुद्दीन और मैनुद्दीन तीनो भाइयो में काफी एकता थी। यहाँ हमने “थी” शब्द का प्रयोग किया है, तो इसका मतलब साफ़ है कि एकता थी, मगर अब ये एकता खंडित हो चुकी है। एक अभी वर्ष 2020 तक ऐसी स्थिति थी कि शमशुद्दीन और मैनुद्दीन कुछ भी करते थे तो अपने सबसे बड़े भाई इलाम से सलाह लिए बिना नही करते थे। और इस्लाम बतौर गार्जियन परिवार में थे। उनको कुछ भी करना होता तो अपने दोनों भाइयो की सलाह के बगैर न करते थे। भले खाना पीना अलग अलग बनता था, मगर एक दुसरे को अपने घर में पका खाना दिया जाता था। संपत्ति भी ऐसी थी कि अन्दर जाने पर अहसास नही हो सकता है कि तीन अलग अलग परिवार रहता है इसमें। सबका सेहन एक ही था।
हुआ कुछ इस प्रकार से कि मैनुद्दीन के बेटे की शादी हुई। ये शादी बताया जाता है कि शमशुद्दीन ने ही लगाई थी। शादी होकर बहु घर आती है। तीनो भाई बहु लाने में खुश थे। मगर शायद उनकी खुशियों को क्षेत्र के कथित पञ्च और एक वकील साहब की नज़र लगने वाली थी। शमशुद्दीन का छोटा बेटा शादी के कुछ समय बाद अपने चचेरे भाई की पत्नी यानी अपनी भाभी को लेकर फुर्र हो गया। बेटा काफी छोटा था। लोग मामले को जब तक समझते दोनों फरार हुवे युगल वापस भी आ गये।
वापस आने के बाद लड़की यानि कि मैनुद्दीन की बहु ने बवाल काट दिया कि उसको अपने वर्तमान पति के साथ नही रहना है, बल्कि अपने देवर के साथ रहना है। मामले में स्थानीय खुद को सरदार कहने वाले ने तत्काल टांग अड़ा दिया और मामले में एक “विशेष अधिवक्ता” को बुला कर पंचायत किया गया। पंचायत में उस युवती के देवर के पिता यानि शमशुद्दीन इस रिश्ते के लिए तैयार नही हुवे और कहा कि कितना अटपटा रिश्ता रहेगा कि एक ही घर में रहने वाले मेरे भतीजे की बीबी अब मेरी बहु बन जायगी। मगर मामला तो पहले से फिक्स जैसा था। सूत्रों के अनुसार किसी ने महिला को समझाने की कोशिश नही किया कि ये गलत है और ये सही है। एक सुर हुआ और मौके पर ही मैनुद्दीन के बेटे से तलाक करवा लिया गया। ये निकाह जो 20 नवंबर 2019 को हुआ था एक वर्ष भी नहीं चल पाया और तलाक 20 जून 2020 को मौके पर ही हो गया। पहले से इंतज़ाम करके रखा हुआ स्टाम्प पेपर पर लिखा पढ़ी साहब बहादुरों ने करवा कर दोनों पक्षों का अंगूठा निशान ले डाला। (तलाक नामे की प्रति हमारे पास सुरक्षित है।)
सूत्र बताते है कि पंचायत के दबाव में आकर नुरुद्दीन के बेटे ने मौके पर ही तलाक दे दिया था। अब लिखा पढ़ी में कानूनी दावपेच खेलना ज़रूरी था तो एक तलाक फलनवा महिला में, दूसरा ढमकाना महिना में लिखा गया। मगर तलाक हो गया। इसका ज़िक्र तलाकनामे में कर दिया गया। मगर शमशुद्दीन को बहु मंजूर नही थी। वो अपने बेटे की हरकत से नाराज़ थे और अपने बेटे को घर से निकाल कर उसको “लदावा” (बेदखल) कर डाला। बताया जाता है कि इससे नाराज़ पंचायत ने शमशुद्दीन को ही “टाट बाहर” कर दिया। अब शमशुद्दीन के तीनो भाइयो में आपसी नाराज़गी हो चुकी है। शमशुद्दीन टाट बाहर है। परेशान हाल इस कुनबे को शायद पञ्च परमेश्वर कहे जाने वालो की नज़र लग गई।
कहानी अभी और भी बाकि है साहब
कहानी तिकड़म की यही खत्म नही होती है। कहानी में और भी ट्वीस्ट है। आप सोच रहे होंगे कि ड्रामेटिक फिल्म के तरह इस कहानी में भी ट्वीस्ट पर ट्वीस्ट है। तो साहब ये लोहता है। यहाँ “आका” लोग जो कुछ कर डाले वह कम है। इसके आगे की सुने। पहले तलाक़ में देश के कानून व्यवस्था को ताख पर रख दिया गया। इसके बाद खुद को इस्लाम धर्म का सबसे बड़ा अनुयायी मानने वाले इस पञ्च समुदाय ने और भी बड़ा काण्ड देकर इस्लाम के नियमो को भी उठा कर ताख पर धर दिया। शरई कानून के मुताबिक एक महिला के तलाक़ के 3 महीने 13 दिन की इद्दत अवधी होती है। इस अवधी के दरमियान महिला दूसरी शादी नहीं कर सकती है। मगर यहाँ धर्म के रक्षक खुद को घोषित करके बैठे लोगो ने इस नियम को भी ताख पर रख डाला और जिस महिला का तलाक़ 20 जून 2020 को करवाया उसका दूसरा निकाह उस महिला के देवर के साथ महज़ तीन दिन बाद यानी 23 जून 2020 को करवा दिया।
ये दुसरे निकाह की तारिख हम नही कह रहे है। बल्कि इसकी जानकारी आप कचहरी जाकर नोटरी उदय कृष्ण चतुर्वेदी से उनके 23 जून 2020 के रजिस्टर पर क्रमांक 3384 पर देख कर कर सकते है। इस शादी इकरारनामा की प्रति हमारे पास भी सुरक्षित है। अब सवाल ये उठता है कि जब देश में “तीन तलाक़” पर कानून बन रहा था तो यही लोग थे जो छाती पीट पीट कर कह रहे थे कि मुसलमानों के कानून पर प्रतिघात हो रहा है। अत्याचार हो रहा है। अब इस्लाम कहा गया ये बात या तो अधिवक्ता महोदय बता सकते है या फिर पञ्च लोग ही बता सकते है जो खुद को इस इलाके का सरदार कहते है। क्या इनके लिए इस्लाम केवल और केवल अपने मतलब के लिए है। जब खुद की तानाशाही चलाना है तो इस्लाम के नियमो और कानूनों को उठा कर ताख पर रख दिया जाता है। यही करम अगर कोई अन्य आम नागरिक करता तो यही पञ्च और सरदार के साथ आलिम और मौलाना फ़तवा लेकर दौड़ रहे होते। मगर सरदार साहब की सरदारी की बात है तो फ़तवा अब सब घर के अन्दर ही रखा रहेगा। क्रमशः : भाग 2
नोट – इस प्रकरण में सम्बन्धित साक्ष्य महिला के पहले निकाह का निकाहनामा, उसके तलाक का तलाक नामा और दुसरे निकाह का इकरारनामा समस्त दस्तवेज़ हमारे पास साक्ष्य के रूप में सुरक्षित है।
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