ए जावेद / अनुराग पाण्डेय
वाराणसी। वाराणसी में मोबाइल लाटरी ज़ोरोशोर से चल रही है। इस मोबाइल लाटरी के माध्यम से गरीब तो अमीर बन्ने की ख्वाहिश पाल लेता है, मगर उसकी ख्वाहिशे कभी पूरी नहीं हो पाती है बल्कि उलटे अमीर के चक्कर में वो थोडा और भी गरीब हो जाता है। जबकि लाटरी खिलवाने वाले थोडा ज्यादा ही अमीर हो जाते है। इसका जीता जागता उदहारण मिलेगा आपको सूरजकुंड और दालमंडी में, थोडा आगे बढ़ेगे तो कर्णघंटा के राजगीरटोला में मिलेगा। ज्यादा घुमेगे तो लल्लापुरा के आसपास भी रहेगा।इससे ज्यादा घुमने की तमन्ना है तो फिर शिवाले के मच्छली मंडी में टहले या फिर आप लंका के संकटमोचन तक हो आये। लाटरी है साहब, गरीब तबका आगे पीछे दिखाई देगा।
सूरज कुंड पर लाटरी का नाम आये और राजन यादव का नाम न हो भला ऐसा हो सका है कभी। राजन यादव को आईपीएल शब्द जच गया तो गेम शुरू। यहाँ से वही सद्दाम ने शिवाला को अपना अड्डा बना रखा है। नगवा में अमन, सामने घाट पर अमन का चेला, माताकुंड मुरारी चाय की दूकान के पास, पितरकुंडा पर तागे वाले के पास। संकटमोचन पर विक्की के साथ। कहने का मतलब ये है कि बिमारी भी इतनी तेज़ नही फ़ैल पाती है जितनी तेज़ ये लाटरी का कारोबार फ़ैल गया। उस पर से पत्रकार साहब का कथित साथ तो दुनिया आपके कदमो में।
कमाल का कम्बीनेशन होता है। नेतागिरी का साथ, और पत्रकार का साथ पकड़ कर पुरे इलाके को अपने कब्ज़े में कर डालो। अब आप सोच रहे होंगे कि पुलिस आखिर क्या करती है। देखे हमने बड़े गहरे जाकर पता किया। आपको गहराई में जाने के बाद एक भ्रमजाल में फंसा दिया जायेगा। वैसे भी बड़ो ने कहा है कि हाथी पाल लो मगर भ्रम मत पालो। भ्रम में आपके सामने आएगा जो नाम वो बड़ा विचित्र होगा। मुन्ना, चुन्ना, बाबू, राजू, फैजी, जैकी। मतलब ऐसे नाम जिस नाम के आपको हर एक इलाके में दस बारह लोग मिल जायेगे। क्योकि ये नाम ही असल में भ्रम फैलाने के लिए होते है।
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर पुलिस क्या करती है। चलिए एक उदहारण देता हु आप समझ जायेगे। औरंगाबाद चौकी इंचार्ज श्रीकांत मौर्या ने राजन पर चाप चढ़ा डाली। जब भी पकड़ा जाता तो जेब से 1000- 500 रुपया और एक टुटा फूटा सा 200 रुपया वाला सडियल क्वालिटी का मोबाइल मिल जाता है। फिर दुबारा आता है तो दुबारा शुरू हो जाता है खेला। खेला भी ऐसा कि अंदाज़ लगना मुश्किल हो जाए कि किसका खेला है और क्या खेला है। चार लोग एक को झुण्ड में लिए रहते है। वो इधर उधर टहलता है। फिर कुछ फोन करता है फिर नम्बर एक बताता है फिर आगे बढ़ जाता है।
यहाँ आप पुलिस को क्लीन चिट भी नही दे सकते है। और सभी को एक साथ कटघरे में भी खड़ा नही कर सकते है। आप इस क्रोनोलाजी को समझे थोडा। ऐसा नही कि पुलिस विभाग पूरा का पूरा ज़िम्मेदार हो जाए इस खेल में। मगर कुछ ऐसे भी है जिनकी भूमिका पर आप सवाल नही उठा सकते है। इन पुलिस के जिम्मेदारो को हकीकत में पता ही नही है कि आखिर हो क्या रहा है। जैसे चौक पुलिस को तो मालूम ही नही है कि क्या चल रहा है। खुद को भाजपा नेता कहना और फिर अन्दर खाने में ये कारोबार करना कोई बड़ी बात नही है। बड़ी बात होगी भी कैसे ? मार्किट एरिया है। भीड़ वैसे भी रहती है। एक दूकान जैसी जगह पर एक मोबाइल से काम हो जाता है। गुज़रती हुई पुलिस समझती है कि दूकान पर कस्टमर है। अब कस्टमर तो वो होते है। मगर लाटरी के कस्टमर होते है। न कि सामान खरीदने के कस्टमर।
अब जैसे आप दूसरा उदहारण ले। कर्णघंटा का राजगीर टोला पतली गलियों का एक उदाहरण है। स्थानीय चौकी इंचार्ज को तो मालूम तक नही है कि फेक्कन वह सकरी गलियों में जाकर क्या फेकता रहता है। फेक्कन का पेट पल रहा है। खेला चल रहा है। फेक्कन का बड़का बाऊ बने भाजपा के एक कथित नेता जी का खेला है, सबका बना रेला है। सबसे बढ़िया इसमें एक स्टाइल होती है कि जब उंगली उठने की नौबत आये तो चोर ही खुद चोर चोर कहकर खूब चिल्लाये। बकिया तो सब समझदार है। वैसे चौक पुलिस अगर भाजपा के कथित नेता जी पर ध्यान दे तो शायद शहर में एक बड़े जुआ का अड्डा बंद हो जायेगा।
शाहीन अंसारी वाराणसी: विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी सामाजिक संस्था आशा ट्रस्ट द्वारा…
माही अंसारी डेस्क: कर्नाटक भोवी विकास निगम घोटाले की आरोपियों में से एक आरोपी एस…
ए0 जावेद वाराणसी: महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के शिक्षाशास्त्र विभाग में अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी…
ईदुल अमीन डेस्क: सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने संविधान की प्रस्तावना में…
निलोफर बानो डेस्क: उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले में शाही जामा मस्जिद के सर्वे के…
निलोफर बानो डेस्क: उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले में शाही जामा मस्जिद के सर्वे के…