सुजाबाद में शिवमंदिर के बाहर “फूलन देवी की प्रतिमा” रखने का हुआ प्रयास, मौके पर पहुची पुलिस ने हटवाया मूर्ति, जाने कौन थी फूलन देवी और क्या था बेहमई कांड

तारिक आज़मी/देवकांत/अनुराग पाण्डेय

वाराणसी। वाराणसी के रामनगर थाना स्खेत्र के सुजबाद पुलिस चौकी के समीप पानी टंकी के पास आज प्राचीन शिव मंदिर के जगह पर “दस्यु फूलन देवी” की मूर्ति रखने को लेकर क्षेत्र में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई। मामले की जानकारी होने पर मौके पर पहुची पुलिस ने विवाद को संभाला और फूलन देवी की मूर्ति को हटवाया। मूर्ति रखने वालो में बिहार की सियासी पार्टी वीआईपी के कार्यकर्ता बताये जा रहे थे।

प्रकरण में मिली जानकारी के अनुसार आज सुबह कतिपय लोगो द्वारा पानी टंकी के पास शिव मन्दिर की ज़मीन पर दस्यु सरगना फूलन देवी की मूर्ति रखने का प्रयास होता देखा इलाके के अन्य ग्रामीणों ने आपत्ति दर्ज किया। देखते देखते मौके पर भीड़ इकठ्ठा हो गई और भीड़ दो पक्षों में तब्दील हो गई। इस भीड़ में एक पक्ष जो बिहार की राजनैतिक पार्टी का समर्थक था वह फूलन देवी की मूर्ति स्थापना करना चाहता था। वही दूसरा पक्ष इसका विरोध कर रहा था। विवाद की जानकारी इस दरमियान सुजाबाद पुलिस चौकी इंचार्ज को हुई, मौके पर पहुचे सुजाबाद चौकी इंचार्ज ने प्रकरण की जानकारी उच्चाधिकारियों को दिया। जिसके बाद थाना प्रभारी रामनगर मय दल बल मौके पर पहुच गए।

इसी बीच प्रकरण की जानकारी होने पर एसीपी कोतवाली प्रवीण सिंह दल बल के साथ मौके पर पहचे और मामले में उन्होंने हस्तक्षेप करके मूर्ति को हटवाया। मौके पर किसी प्रकार के तनाव की स्थिति न हो इसके लिए भारी संख्या में पुलिस बल और पीएसी के जवानो की तैनाती कर दिया गया है। समाचार लिखे जाने तक मामला शांत और स्थिति सामान्य हो चुकी है।

मामले में एसीपी कोतवाली प्रवीण सिंह ने बताया कि बिहार की एक राजनैतिक पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं के द्वारा यहाँ “फूलन देवी” की मूर्ति रखने का प्रयास किया गया था। स्थिति को संभाल लिया गया है। मौके पर अहतियात के तौर पर पुलिस बल की तैनाती कर दिया गया है। मूर्ति को हटवा दिया गया है। स्थिति अब सामान्य है।

ग्रामीणों से बात करने पर पुलिस ने रोका

स्थित को समझने के लिए जब कतिपय पत्रकारों ने ग्रामीणों से बात करने का प्रयास किया तो मौके पर मौजूद कुछ पुलिस कर्मियों ने ग्रामीणों से बात करने से मीडिया कर्मियों को रोक दिया। मीडिया कर्मियों का कहना था कि पुलिस चाहती थी कि जो बयान है हमसे समझे। वही कुछ मीडिया कर्मियों ने इस मामले में पुलिस द्वारा रोके जाने पर भी मामले में ग्रामीणों से बातचीत किया। ग्रामीणों का एतराज़ इस बात पर निकल कर सामने आया कि मंदिर की संपत्ति पर मूर्ति क्यों रखा जा रहा है ? एतराज सही भी समझ आता है कि यदि कोई किसी को व्यक्तिगत रूप से अपना आदर्श मानता है और उसकी मूर्ति स्थापित करता है तो वह मूर्ति अपनी संपत्ति पर स्थापित करे न कि किसी सार्वजानिक जगह अथवा किसी अन्य की संपत्ति पर।

बिहार के एक मंत्री ने किया था मूर्ति लगाने की घोषणा पर क्यों नहीं जागी थी पुलिस ?

कल ही बिहार सरकार के मंत्री मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) ने इस बात की घोषणा दिया था कि 25 जुलाई को वह बिहार एवं उत्तरप्रदेश में फूलन देवी का शहादत दिवस मनाने की तैयारी के क्रम में उत्तर प्रदेश के 18 प्रमंडलों में फूलन देवी की 18 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित करेगे। यह जानकारी वीआइपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पशुपालन विभाग के मंत्री मुकेश सहनी ने मीडिया से बात करते हुवे दिया था और एक लिस्ट भी जारी किया था। इस लिस्ट में वाराणसी जनपद का भी ज़िक्र था। जिसमे 17वे क्रम पर वाराणसी का ज़िक्र था और इसके लिए बाकायदा जिम्मेदारो का नाम और नंबर भी दिया गया था। इस लिस्ट में प्रतिमा स्थापना का स्थान सुजबाद भी दर्शाया गया था। जिम्मेदारो में डॉ अमित चौधरी, बनारसी निषाद, इंजिनियर अमित कुमार और हरिशंकर का नाम भी था। राजनैतिक सोच से देखे तो यह पूरी कवायद यूपी चुनाव को देखते हुए की जा रही है। मुकेश सहानी हाल में ही यूपी का दौरा कर लौटे हैं और उनकी निगाह निषाद (मल्‍लाह) समुदाय के वोटों पर टिकी हुई है।

लिस्ट को कई मीडिया संस्थानों ने खबर में प्रमुखता से जगह दिया था। इस लिस्ट के आने पर स्थानीय पुलिस का इस मामले में संज्ञान न लेना स्थानीय थाना प्रभारी अथवा चौकी इंचार्ज की सोच को प्रदर्शित करता है कि आखिर कितने आराम से किसी मुद्दे पर आँखे बंद तब तक किये रहे जब तक मामला विवाद का केंद्र न बन जाए। विवाद के केंद्र में मुद्दा आ जाने पर मामले को हल करने के लिए तो एसीपी प्रवीण सिंह है ही। अगर स्थानीय चौकी इंचार्ज ने इस मामले में पहले ही वीआईपी पार्टी के उन जिम्मेदारो को बुला कर अथवा मिल कर समझा होता कि मूर्ति स्थापित कहा होगी तो मामला विवाद के केंद्र अथवा एतराज़ की जगह बन जाने से पहले ही हल हो गया होता।

कौन थी फुल्लन देवी

फूलन देवी 80 के दशक की एक कुख्यात दस्यु सरगना था। जिसके ऊपर बेहमई काण्ड जैसी जघन्य हत्या कांड का आरोप था। फूलन के दस्यु बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प बताई जाती है। कहा जाता है कि फूलन देवी के ऊपर काफी अत्याचार हुवे थे जिसके बाद फूलनदेवी एक दस्यु बन गई और खुद के ऊपर हुवे अत्याचार का बदला बेहमई कांड से लिया। फूलन देवी के ऊपर एक फिल्म “बैंडिट क्वीन” का भी निर्माण हुआ जो काफी चर्चा में रही थी। जेल में लम्बा समय बिताने के बाद वह समाजवादी पार्टी के सांसद के रूप में सदन में भी गई। इसके बाद 10 अगस्त 1963 को जन्मी फूलन देवी की हत्या 25 जुलाई 2001 को की गई थी।

क्या था बेहमई काण्ड

14 फरवरी 1981 की शाम को, उस समय जब गाँव में एक शादी चल रही थी, फूलन और उसके गिरोह ने पुलिस अधिकारियों के रूप में पहनी हुई वर्दी के साथ बेहमई की उस शादी में शामिल हुई। जिसके बाद फूलन ने मांग किया कि उसको “श्री राम” और “लाला राम” द्वारा उत्पीडन किया गया है, ये दो व्यक्ति मुझको चाहिए। रेकार्डो और चर्चाओं को आधार माने तो उसने कथित तौर पर कहा कि दो व्यक्तियों को दो जब ये दोनों व्यक्ति नहीं मिले तो फूलन देवी ने गाँव के सभी युवकों को गोल कर दिया और एक कुएँ से पहले एक लाइन में खड़ा कर दिया। फिर उन्हें नदी तक ले जाया गया। हरे तटबंध पर उन्हें घुटने टेकने का आदेश दिया गया। गोलियों की बौछार हुई और 22 लोग मारे गए।

बेहमई नरसंहार ने पूरे देश में आक्रोश पैदा कर दिया था। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वी॰पी॰ सिंह ने बेहमाई हत्याओं के मद्देनजर इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद एक विशाल पुलिस अभियान शुरू किया गया था, जो फूलन का पता लगाने में विफल रहा। यह कहा जाने लगा कि अभियान केवल इस कारण सफल नहीं था क्योंकि फूलन को इस क्षेत्र के गरीब लोगों का समर्थन प्राप्त था। रॉबिन हुड मॉडल की कहानियाँ तत्कालीन मीडिया कर्मियों द्वारा घुमाई जाने लगी। फूलन को बैंडिट क्वीन कहा जाने लगा, और उसे भारतीय मीडिया के कुछ वर्गों द्वारा एक निडर और अदम्य महिला के रूप में महिमामंडित किया गया, जो दुनिया में जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रही थी।

आत्मसमर्पण और जेल की अवधि

बेहमई नरसंहार के दो साल बाद भी पुलिस ने फूलन को नहीं पकड़ा था। इंदिरा गांधी सरकार ने आत्मसमर्पण पर बातचीत करने का फैसला किया। इस समय तक, फूलन की तबीयत खराब थी और उसके गिरोह के अधिकांश सदस्य मर चुके थे, कुछ पुलिस के हाथों मारे गए थे, कुछ अन्य प्रतिद्वंद्वी गिरोह के हाथों मारे गए थे। फरवरी 1983 में, वह अधिकारियों को आत्मसमर्पण करने के लिए सहमत हुई। हालाँकि, उसने कहा कि उसे उत्तर प्रदेश पुलिस पर भरोसा नहीं है और उसने जोर देकर कहा कि वह केवल मध्य प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करेगी। उसने यह भी आग्रह किया कि वह महात्मा गांधी और हिंदू देवी दुर्गा की तस्वीरों के सामने अपनी बाहें रखेगी, पुलिस के सामने नहीं। उसने चार और शर्तें रखीं जो इस प्रकार थी।

  • आत्मसमर्पण करने वाले उसके गिरोह के किसी भी सदस्य पर मृत्युदंड नहीं लगाया जाएगा।
  • गिरोह के अन्य सदस्यों के लिए कारावास आठ वर्ष से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • जमीन का एक प्लॉट उसे दिया जाए।
  • उसके पूरे परिवार को पुलिस द्वारा उसके आत्मसमर्पण समारोह का गवाह बनाया जाना चाहिए।

इसके बाद एक निहत्थे पुलिस अधिकारी ने उससे चंबल के बीहड़ों में मुलाकात किया। जिसके बाद आत्मसमर्पण के पहले उन्होंने मध्य प्रदेश के भिंड की यात्रा की, जहाँ गांधी और देवी दुर्गा के चित्रों के समक्ष अपनी राइफल रखी। दर्शकों में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के अलावा लगभग 10,000 लोग और 300 पुलिसकर्मी शामिल थे। उसके गिरोह के अन्य सदस्यों ने भी उसी समय उसके साथ आत्मसमर्पण कर दिया।

डकैती और अपहरण के तीस आरोपों सहित फूलन पर 48 अपराधों का आरोप लगा। उसके मुकदमे को ग्यारह साल की देरी हो गई। इस दौरान वह एक विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में रही। इस अवधि के दौरान उसका अल्सर के लिए ऑपरेशन किया गया और एक हिस्टेरेक्टॉमी से गुजरना पड़ा। अंत में उसे निषाद समुदाय के नेता विशम्भर प्रसाद निषाद, (नाविकों और मछुआरों के मल्लाह समुदाय का दूसरा नाम) के हस्तक्षेप के बाद 1994 में पैरोल पर रिहा किया गया था। जिसके बाद मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके खिलाफ सभी मामलों को वापस ले लिया। इस कदम ने पूरे भारत में सार्वजनिक चर्चा और विवाद का विषय बना दिया था।

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