तारिक़ आज़मी
आज मन बड़ा भारी है। अश्क आँखों से निकलने को बेताब है। मगर जज्ब करना भी तो मज़बूरी है। कोई रिश्ता तो नही था उस नन्ही परी से। फिर भी दिल उसके जाने पर ग़मगीन है। आज से महज़ 54 दिन पहले ही तो उस मासूम ने इस दुनिया में कदम रखा था। अपने माँ-बाप की पहली फुल सी बेटी, महज़ 54 दिनों की हयात ही शायद लेकर आई थी। पहले निमोनिया, फिर ब्रेन स्टोक, जब तक उस मासूम के वालिदैन समझ पाते क्या हुआ है उनके आँखों के नूर को, तब तक वह नन्ही परी अचेतावस्था में जा चुकी थी। बेशक नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ0 आरिफ अंसारी ने अपनी भरसक कोशिश किया। मगर उस नन्ही परी “वज़ना” ने आज सोमवार को दुसरे पहर करीब 3 बजे इस दुनिया-ए-फानी से रुखसत कह दिया।
चकबंद लखनवी ने कहा है कि “फ़ना का होश आना, ज़िन्दगी का दर्द-ए-सर जाना, अज़ल क्या है, खुमार-ए-बादा-ए-हस्ती उतर जाना।” बेशक अज़ल तो यही है। बेंइन्तहा ज़ालिम और बेदिल। मासूम परी से मेरी मुलकात सनीचर को तो हुई थी। जब उसके वालिदैन उसको बनारस लेकर आये थे इलाज की खातिर। बेशक एक मासूम बच्ची को देख कर मन खुश हो जाता है। ए नन्ही परी तुझे भी देख कर मैं ऐसा ही खुश हुआ था। बेशक तू बहुत बीमार थी। बिलाशुबहा मेरा तुझसे कोई रिश्ता तो नही था। मगर शायद कोई तो रिश्ता था। तेरी वो बेबसी कि तू अपनी तकलीफ भी न बता सके। मेडिकल साईंस ने तो उसी दिन हाथ खड़े कर दिए थे। मगर ए मासूम परी तेरे वालिदैन, तुम्हारे घर वालो के साथ मैंने और डॉ0 आरिफ अंसारी ने कोई कोर कसर नही छोड़ी।
बेशक ए नन्ही पारी तुझे देखने के पहले मेरा तुझसे कोई रिश्ता नही था। मगर अब तो खून का रिश्ता बन चूका था। तेरे जिस्म में चंद कतरा ही सही मेरा भी तो खुन था। एक बार जाने के पहले अपनी किलकारी तो देखा देती। चंद लम्हे ही सही मेरे साथ खेल लेती। तुझको खिला लेता मैं भी। मैंने इस दरमियान तमन्ना पाल रखा था कि तुझको गोद में उठा कर तुझे खिलाऊंगा। तुम्हे घुमाऊंगा। दोनों हाथो का झुला बना कर तुम्हे झुला झुलाऊंगा। तेरे मासूम मुस्कराहट पर अपने सभी दर्द भूल जाऊँगा।
वक्त आया भी ए मासूम परी। तू मेरे दोनों हाथो में थी। मगर मैंने कभी नही सोचा था कि तुझे ऐसे लूँगा। मेरे हाथो में तू थी ए मासूम परी, मगर तेरे पुरे जिस्म में कोई हरकत नही थी। डाक्टर हमेशा से सख्त दिल का समझा गया है। मगर डॉ0 आरिफ अंसारी के आँखों का नम कोना देख कर मैं समझ गया था। काफी देर तक लिए हुवे तो था मैं तुझे ए मासूम परी, मगर ऐसे मैं गोद में नही लेना चाहता था। मेरे हाथ काँप रहे थे। कभी खुद को इतना कमज़ोर नही महसूस किया कि महज़ 3 किलो का वज़न न उठा सकू। मगर तुम्हारा ये महज़ तीन किलो का वज़न मुझसे उठाया नही जा रहा था। मेरे हाथो में लर्जिश थी कि तुम्हारी गहरी नींद जो अब कयामत के रोज़ खुलेगी, काश खुल जाये। मेरी आँखे रोना चाहती थी। तेरी रुखसत पर दो आंसू बहाना चाहती थी। मगर खुद को रोकना पड़ा वरना तुम्हारे वालिदैन और परिवार के सदस्य और भी टूट जाते। इंसान ही तो हु, कोई पत्थर तो नही हु।
ए नन्ही परी मैं पिछले 48 घंटो से तुम्हारे वेंटीलेटर से ठीक होकर आने का इंतज़ार करता रहा। मेडिकल साइंस भले कहे कि अब कुछ होने लायक नही, मगर सभी कोशिश कर रहे थे। मुझे बहुत उम्मीद थी कि वो होगा जिसको करिश्मा कहते है। झुझारू तो तू भी थी मासूम परी। पुरे 48 घंटो तक मौत से ज़बरदस्त तुमने लड़ाई लड़ा। मगर आखिर हार भी मिली अज़ल से, तो कैसे मिली कि तू अब इस दुनिया से रुखसत हो चुकी है। मेरे हाथो में लर्जिश अभी भी है। मैं अभी भी नही मान पा रहा हु कि तू बहुत दूर चली गई है। रात का तीन पार हो चूका है। जल्द ही दुनिया दूसरा सवेरा करने की तैयारी कर रही होगी। मगर मालूम है ए मासूम परी मेरी आँखों से नींद आज कोसो दूर है। आँखों के आगे तेरा मासूम चेहरा ही घूम रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे अभी तूम होश में आकर जोर से रोते हुवे पुरे माहोल को सर पर उठा लोगी। मगर ये मेरा सिर्फ एक ख्वाब ही रहेगा। अरसा गुज़र जाएगा तुम्हारी यादो को मिटाने में ए नन्ही परी।
जब कुदरत के करिश्मे की बात हुई तो न जाने कितने हाथो ने रब के आगे फ़ैल कर तुम्हारी हयात मांगी थी। मगर कुदरत को किसी की न सुननी थी तो न सुनी। सबने रब से तुम्हे हयात बक्शने की इल्तेजा किया। मगर हयात नही मिली। शायद उस रब की बनाई जन्नत में तुम्हारी जैसे नन्ही परी की ज़रूरत थी। अलविदा ए नन्ही परी। “मौत उसकी, करे जिसका ज़माना अफ़सोस, यु तो दुनिया में सभी आते है मरने के लिए।”
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