तारिक़ आज़मी
हमारे काका ने कल सुबह सुबह हमको बड़े मुहब्बत से जगाया। हम डर गये कि आखिर कौन सी मुसीबत आ गई है। काका हमसे कहे अबे पत्रकार चल तुम्हे बनारस की स्मार्ट सिटी दिखाते है। कितना स्मार्ट हो गया है बनारस ई दिखाए। हमने कहा अमा काका छोडो यार कहा पंचायत कर रहे हो। तो काका कहे अरे समझो बबुआ, हमारा सिटी इत्ता स्मार्ट हो गया है कि हर गली गली नुक्कड़ नुक्कड़ “मैं स्मार्ट हु” चिल्ला रहा है। चलो उठो और लप्प से चाय पीकर चलो। काका हमसे ई कहकर चले गए अपने कमरा में और हम चाय की चुस्की में अपनी नींद भगाने लगे।
आगे बढ़ते बढ़ते हम पहुच गए हनुमान फाटक। ज़बरदस्त बारिश का पानी लगा था। मगर हमको विश्वास नही हो रहा था कि ये पानी घुटनों से ऊपर तक का है। हम आखिर पानी में घुस ही गए। जैसे जैसे अन्दर जाते रहते पानी बढ़ता ही रहता। और महज़ 20 कदमो की दुरी पर ही पानी हमारे टखनो को पार करते हुवे ऊपर को चल पड़ा था। तभी हमारे परिचित बाबु भाई दिखाई दे गये। अपने घर के ऊँचे से चबूतरा पर हाथो में चाय की कप लिए हमने देख कर बोले “क्या भाई मौसम का मजा ले रहे हो क्या ?” हमने कहा नही यार थोडा देख रहा था कि आखिर प्रधानमन्त्री के संसदीय सीट वाराणसी स्मार्ट सिटी को बदनाम कौन कर रहा है ? खैर छोडो, अपनी बताओ क्या हाल है ? तो बाबु भाई शायराना अंदाज़ में बोले, “मियाँ हमारी क्या है ज़िन्दगी एक कहानी है, घर के बाहर घुटनों से ऊपर तक सीवर का पानी है।”
तभी हमारी नज़र सामने से आ रही एक बाइक पर पड़ी। बाइक सवार शायद पानी को हलके में ले गया था। तो पानी ने उसके कदमो को भारी कर दिया और उसकी बाइक को 90% अपने अन्दर समा लिया। सिर्फ सीट और हैंडल का हिस्सा दिखाई दे रहा था। बाइक सवार के चेहरे पर एक तिलमिलाई सी मुस्कान थी। मन के अन्दर इस पानी से ज्यादा भावनाए हिचकोले खा रही थी। मगर मुह पर मुस्कराहट दिखाई दे रही थी। हमारे दिमाग में कुछ और भी चल रहा था। हम वापस आते है और हनुमान फाटक चौराहे पर एक ऊँचे चबूतरे पर खड़े काका को लेते है तथा पीलीकोठी की तरफ चल पड़ते है। अब भीग ही गए है तो थोडा हालात का जायजा ढंग से ले लिया जाए।
आदमपुर थाने की दीवारे बड़ी मजबूत है, वरना कल तो बरसात और सीवर के पानी ने पूरा मन बना रखा था कि थाना बहा ले जाऊँगा। घुटना के नीचे तक का पानी थाना परिसर के अन्दर था। खुद पुलिस वाले अपराधी से नही बल्कि पानी से जूझते हुवे दिखाई दे रहे थे। थोडा आगे बढ़ने लगा तो काका ने कहा कि तुम जाओ। हम नही जायेगे। शायद काका को अंदाजा रहा होगा। आखिर पुराना चावल जो ठहरे। हम भी पानी का लुत्फ़ लेते हुवे कच्ची बाग़ के रास्ते पर चल पड़े। बरसात का पानी। उस पर से सीवर ने भी बना रखा था अजीब कहानी। हम आगे बढ़ते तो कदम पानी के थपेड़ो से पीछे के तरफ भागते समझ आते। गुरु सच बताता हु कि पिंडली दर्द करने लगी थी इस पानी में चलने पर।
कमाल तो तब हो गया जब पानी हमारे कमर तक पहचने लगा। गुरु सच बताता हु। कच्चीबाग़ में पानी कमर तक था। हालत आप समझ सकते है। अगर दो फुट पानी और बढ़ता तो शायद तैर कर वापस आना पड़ता। हम समझ चुके थे कि हमारी सिटी स्मार्ट हो गई है। लोग स्वीमिंग पुल में जाकर तैरते होंगे मगर हमारी सिटी को स्मार्ट हमारे नगर निगम ने इतना कर दिया है कि थोडा बारिश के बाद हर तरफ खुदही स्वीमिंग पुल बन जाता है। तैरना जो चाहे तौर ले और फिर भी काम न बने तो पऊड के वापस आ जाये। कहा दुसरे शहरों की तारीफ आप करते है। देखे हमारे नगर निगम से आकर दुसरे बड़े शहरों वाले सीखे। कैसे स्मार्ट बनाया जाता है सिटी को। वो तो भला हो कि मोहल्ले के लोगो ने हर एक खुले सीवर पर कुछ ऐसी आहाट बना दिया है जो सबको बता देती है कि हम सीवर है। वर्ना गुरु हनुमान फाटक से घुसोगे तो सीधे बिना टिकट गंगा जी में प्रवाहित हो जाओगे। दस हज़ार अंतिम संस्कार का भी बच जायेगा।
इसी तरीके की कुछ हालात आपको कबीर चौरा-पिपलानी कटरा मार्ग पर देखने को मिल जायेगी। हालात बद से बदतर समझ आ रहे थे। ऐसा नही था कि पहले कुछ इससे बेहतर हालात थे। मगर कम से कम इतने बुरे हालात तो नही ही थे। ख़ास तौर पर तब जब स्मार्ट सिटी होने का दावा नगर निगम कर रहा है। आखिर क्या शहर की स्मार्टनेस भी कई हिस्सों में तकसीम रहेगी। गोदौलिया स्मार्ट रहेगा तो नई सड़क थोडा कम स्मार्ट होगा। औरंगाबाद की स्मार्टनेस पूरी खत्म होगी और कच्चीबाग़ गवई स्मार्टनेस जैसा रहेगा। शायद ऐसे स्थिति में स्मार्ट होना उचित नही होगा।
हम घर को वापस आ चुके थे। काका के होंठो पर एकदम सौतन की सहेली वाली मुस्कराहट थी। ऐसा लग रहा था जैसे काका कहना चाहते हो कि “बेटवा, सही कहते है हम कि बतिया है करतुतियाँ नाही, मेहर है घर खटिया नाही।”
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