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जाने कौन था आतंक का दूसरा नाम दीपक वर्मा और कैसे एसटीऍफ़ से मुठभेड़ में हुआ ढेर, पढ़े दीपक वर्मा के एक चोर से कुख्यात अपराधी बनने तक का सफ़र

तारिक़ आज़मी

वाराणसी। वाराणसी ही नही बल्कि पूर्वांचल के लिए आतंक का दूसरा नाम बना हुआ दीपक वर्मा आज चौबेपुर थाना क्षेत्र के बरियासनपुर गाँव के पास रिंग रोड पर पुलिस की गोली का आखिर शिकार हो गया। 2011 में जेल जाने के बाद गांजे का शौक़ीन दीपक जब जेल से बाहर आया तो पुलिस के लिए एक अबूझ पहेली बन गया था। दीपक के मारे जाने से शहर में आम कारोबारियों ने राहत की सांस लिया है। वही अपराध जगत में एक बार फिर से वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस ने हडकम्प मचा दिया है। दीपक का एनकाउंटर होने के बाद आई तस्वीरो ने कई लोगो को अचंभित कर दिया है कि क्या ये था दीपक वर्मा ?

कैसे पड़ा अबूझ पहेली जैसा अपराधी दीपक एसटीऍफ़ के हत्थे

वाराणसी पुलिस दो वर्षो से कोरोना संक्रमण और शांति व्यवस्था में लगभग दीपक वर्मा को भूल ही चुकी थी। सूत्रों के अनुसार एसटीऍफ़ के क्षेत्राधिकारी शलेन्द्र सिंह ने अपनी टीम को ऐसे अपराधियों के सुराग हेतु लगाया हुआ था जो पुलिस के लिए एक अबूझ पहेली जैसे है। क्षेत्राधिकारी का निर्देशन मिला तो अधिनस्थो ने जी जान झोक डाला। इन्स्पेक्टर अमित श्रीवास्तव ने एक एक छोटी से छोटी जानकारी जुटाने में कोई कसर नही छोड़ी। अमित श्रीवास्तव की लगन इस केस में देख कर एक टीम का नेतृत्व अमित श्रीवास्तव को सौपा हुआ था। इस कड़ी में अमित श्रीवास्तव के साथ क्राइम पर बड़ा काम करने के लिए कभी आदमपुर और कोतवाली थाने में पोस्टेड रहे विनय मौर्या जैसे तेज़ तर्रार पुलिस वालो की टीम तैयार थी।

क्षेत्राधिकारी शैलेश सिंह के नेतृत्व में एसटीऍफ़ टीम ने ज़बरदस्त मेहनत इस अजनबी जैसे बन चुके अपराधी के लिए किया। एक एक मूवमेंट पर एसटीऍफ़ पैनी नज़र रख रही थी। इसी दरमियान एसटीऍफ़ के रडार पर दीपक आना शुरू हो चूका था। मुखबिर तंत्र भी काफी मजबूती के साथ काम कर रहे थे। इस बीच आज दोपहर एसटीऍफ़ का आमना सामना आखिर दीपक वर्मा से हो ही गया। सफ़ेद रंग की अपाचे बाइक से दो बदमाश एसटीऍफ़ को दिखाई दिए, पुलिस ने जब उनको रुकने का इशारा किया तो दोनों बदमाश उल्टे बाइक लेकर भागने लगे।

इस दरमियान बरसात के कारण बाइक फिसल कर गिर पड़ी और मौके पर झाड़ियो का फायदा उठा कर एक बदमाश भाग निकला। जबकि दुसरे ने पुलिस पर फायर झोकना शुरू कर दिया। मगर शायद दीपक भूल चूका था कि वह इस बार आम नागरिक पर गोली नही चला रहा है बल्कि जिस पर गोली चला रहा है उसने पूरी ट्रेनिग लिया हुआ है। टीम का नेतृत्व कर रहे इन्स्पेक्टर अमित श्रीवास्तव, हे0का0 विनय मौर्या आदि ने घेरेबंदी कर डाला और दीपक को असलहा रख कर सरेंडर करने को कहा। मगर दीपक था कि अपनी ही धून में दुबारा गोली चला बैठा। जिसके जवाब में एसटीऍफ़ द्वारा चलाई गई गोली से आखिर शिकारी खुद शिकार हो गया।

रूप बदलने में था माहिर

दीपक वर्मा ने अपने गुरु रईस बनारसी से न केवल अपराध का तरीका सीखा था बल्कि पुलिस से बच जाने का हुनर भी सीखा था। जैसे रईस बनारसी के मारे जाने के बाद कई पुलिस एसआई ने दबे ज़बान से इस बात को स्वीकार किया कि रईस बनारसी को उन्होंने देखा था मगर उसको पहचानते नही थे। वैसे ही आज जब दीपक मारा गया तो काफी अचंभित लोग शहर में दिखाई दिए है। औरंगाबाद सोनिया से लेकर भैसासुर घाट तक काफी लोगो को शक्ल देखी सुनी लगी है। वैसे ही रईस बनारसी के मारे जाने के बाद काफी लोग अचंभित हुवे थे कि “ये रईस बनारसी था ?” रईस पुलिस से बचने के लिए अपना हुलिया पूरा बदल लेता था।

उससे सीख हासिल कर इस कुख्यात दीपक वर्मा ने भी हुलिया बदलना सीख लिया था। कभी गोलू मोलू जैसे तस्वीर लेकर जिस दीपक को पुलिस तलाशती थी अचानक हमको वह तस्वीर मिली जिसमे दीपक का हुलिया एकदम बदल गया था। सूत्रों की माने तो इसके बाद दीपक ने अपना हुलिया फिर बदला और चश्मा लगा कर एकदम डिसेंट टाइप का पढाकू स्टूडेंट का हुलिया बनाया। जिसके बाद फिर फ्रेंच कट दाढ़ी भी रखा था। अब जो तस्वीर सामने आई है उसको और महज़ दो साल पहले की तस्वीर को देखे इंसान को पहचानना मुश्किल होगा कि ये वही युवक है। इसी हुलिया बदलने में महारत हासिल करने वाला दीपक आज तक बचता चला आया था।

चोर से कुख्यात अपराधी तक का था दीपक का सफ़र

दीपक वर्मा के अपराध जगत में आने की कहानी भी पूरी फ़िल्मी ही है। रमेश वर्मा उर्फ़ देवीनाथ वर्मा तथा सुमन वर्मा के दो पुत्र और दो पुत्रियाँ थी। वैसे पुलिस रिकार्ड के अनुसार दो पुत्र और एक पुत्री का ज़िक्र मिल जायेगा। मगर हमारे विश्वसनीय सूत्रों की माने तो दो बेटियाँ थी। बहरहाल, रमेश वर्मा के दो पुत्रो में दीपक और उसका भाई मुन्ना था। रमेश वर्मा के भाई रविन्द्र वर्मा ने अपने भाई के साथ मिल कर परवरिश में कोई कमी नही छोड़ी मगर मामा लालू वर्मा के नक़्शे कदम पर चलने वाला दीपक शुरू से ही अपराधिक मानसिकता का हो गया था। घर में भी मामा की कमाई अपना रंग दिखाती थी। आखिर संगत ने दीपक को बिगाड़ कर धर दिया। छोटा छोटा अपराध पुलिस के डायरी तक नही पहुच सका और दीपक जवान हो गया। इसके बाद आखिर उसके पाप का परचा पहला पुलिस के सामने फट गया जब वर्ष 2008 में सबसे पहले चोरी के एक मामले में सिगरा पुलिस ने उसको नामज़द किया।

यहाँ से तीन साल तक पुलिस के रिकार्ड में दीपक वर्मा एक अज्ञात के तौर पर था। मगर इस दरमियान दीपक का साथ रईस बनारसी से हो गया। रईस बनारसी अपराध जगत का एक बड़ा ब्रांड के तौर पर उस समय उभर रहा था। सूत्र बताते है कि रईस की उतार ही मार्किट से इतनी थी कि वह जेब में 50-60 हज़ार रख कर चलता था। दीपक को गरज एक पुडिया गांजा की हमेशा रहती थी वही दीपक को रईस का साथ मिलने के कारण ये गरज उसकी पूरी होने लगी थी। अब रईस के साथ रहकर दीपक को अपराध जगत के पैसे का चस्का पड़ गया था। रईस ने दीपक को जमकर ट्रेनिंग भी दिया था। अक्सर दीपक की ही बाइक से रईस कही भी आता जाता था क्योकि रईस दीपक पर पूरा भरोसा करता था।

वर्ष 2011 में दीपक के अपराध जगत में एक बड़े अपराधी के तौर पर एंट्री होती है। इस साल उसके ऊपर चोरी, लूट, हत्या का प्रयास और अवैध असलहे के आधा दर्जन मुक़दमे दर्ज हुवे। इसके बाद दीपक जेल गया था और जेल से आने के बाद से दीपक वाराणसी पुलिस के लिए एक बड़ा सरदर्द बन गया और फिर जिन्दा पुलिस के हत्थे नही पड़ा। इसके बाद से दीपक रईस बनारसी के साथ मिल कर अपराध जगत में बड़ा नाम कमा बैठा था। प्रयागराज के नैनी में हुवे हत्याकांड में भी दीपक का नाम सामने आया। दीपक के ऊपर 22 अपराधिक मामले वाराणसी और 1 मामला प्रयागराज जनपद में दर्ज था।

लूट, चोरी की घटनाओं को अंजाम देने वाला दीपक वर्ष 2015 में अपना नाम कुख्यातो की श्रेणी में जोड़ चूका था। वर्ष 2015 में 2 हत्या के प्रयास और 2 हत्या के मामले दीपक पर दर्ज हुवे। जिसके बाद वर्ष 2016 में भी दीपक का नाम एक हत्याकांड में सामने आया। पुलिस के लिए सरदर्द दीपक अचानक वाराणसी पुलिस के लिए अबूझ पहेली बनकर गायब हो गया था। माना जाता है कि रईस बनारसी के मारे जाने के बाद दीपक वाराणसी में और शरीफ डफाली कानपुर में रईस का सिंडिकेट संभाल रहा था। दीपक ने एक अपना खुद का गैंग भी तैयार कर लिया था। पुलिस सूत्रों की माने तो इसके गैंग में शौकत अली रिंकू, आरा का रिशु सिंह “रिषभ”, गाजीपुर का राजू यादव, संतोष शुक्ला, मनोज शुक्ला, राम बाबु यादव और गुड्डू सोनकर थे।

भले पुलिस इस गैंग को इतना ही मान रही हो, मगर इसका गैंग कानपुर में भी था। सूत्रों की माने तो कानपुर में शरीफ डफाली और सीतापुरिया जैसे अपराधियों के साथ मिलकर ये रईस के गैंग को आगे बढ़ा रहा था। सूत्र बताते है कि रईस बनारसी के मारे जाते समय ये भी मौके पर मौजूद था और घटना के बाद सड़क मार्ग से बाइक द्वारा शरीफ डफाली के साथ कानपुर भाग गया था। कानपुर के हीरामनपुरवा स्थित एक भवन में ये कई दिनों तक रहा। सूत्रों की माने तो कानपुर के अनवरगंज थाना प्रभारी इस्पेक्टर शरीफ खान को इसकी भनक पड़ जाने के बाद से उन्होंने उस इलाके में तफ्तीश और सख्ती बढा दिया था जिसके बाद ये वहा से सीतापुर चला गया था और इसके बाद ये वाराणसी आता जाता रहता था।

मामा की राह पर चला था दीपक वर्मा

अपने समय का कुख्यात अपराधी लालू वर्मा दीपक का सगा मामा था। लालू वर्मा का असर दीपक पर साफ़ दिखाई देता था। लालू वर्मा ने बहुत सारी घटनाओ को अंजाम देता रहता था। 2008 में लालू वर्मा ने लक्सा थाना क्षेत्र में क्षेत्रीय सभासद विजय वर्मा की अपने साथी संतोष गुप्ता किट्टू और अमित जाट के साथ मिलकर दिन दहाड़े हत्या कर दी थी। उसके बाद से ही तत्कालीन एसओजी प्रभारी गिरजाशंकर त्रिपाठी के राडार पर लालू और किट्टू चढ़ गए थे। गिरजा शकर त्रिपाठी ने इस आतंक के खेल को खत्म करने का बीड़ा उठाया और वांछित चल रहे लालू वर्मा गिरफ्तार करने का पूरा प्रयास किया। सफलता तब हाथ लगी जब गिरजाशंकर त्रिपाठी और उनकी टीम ने 2008 में यूपी के नोयडा में मुठभेड़ में मार गिराया। उस समय भी लालू वर्मा को गिरजाशंकर त्रिपाठी ने सरेंडर करने को कहा था, मगर उसने भी पुलिस टीम पर गोली चलाने की हिमाकत कर दिया था और मारा गया। उसके बाद 4-5 जून 2010 की रात चौकाघाट क्षेत्र में गिरजाशंकर त्रिपाठी की ही टीम ने उस समय के डेढ़ लाख के इनामी सन्तोष गुप्ता किट्टू और उसके साथी सन्तोष सिंह को मुठभेड़ में मार गिराया था।

रईस के तरह हुलिया बदलने में माहिर दीपक वर्मा को पुलिस पहचान नही पा रही थी जिसका फायदा दीपक उठाया करता था। इसी फायदे के वजह से दीपक आज तक बचता चला आया था। मगर आज काल ने आकर उसको आखिर घेर ही डाला। एक शिकारी के तरह आम जनता को खुद का शिकार बनाने वाला दीपक आखिर जब पुलिस के सामने पड़ा तो वह खुद धराशाही हो गया। आम नागरिको पर गोली चलाने में खुद मौज लेने वाला दीपक, आज पुलिस पर गोली चलाने की हिमाकत कर बैठा, तो मौत का खेल खेलने वाला खुद मौत की नींद सो गया।

क्या हुआ एसटीऍफ़ को दीपक के पास से बरामद

मुठभेड़ में एसटीऍफ़ को दीपक वर्मा के पास से फैक्ट्रीमेड 09 एमएम की एक अदद पिस्टल, कन्ट्रीमेड 0.38 बोर की एक अदद रिवाल्वर सहित भारी मात्रा में जिन्दा कारतूस और खोखा सहित एक बिना नंबर की अपाचे मोटरसाइकिल

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