तारिक आज़मी संग शाहीन बनारसी और तारिक खान
प्रयागराज ही नहीं बल्कि पुरे देश को चौकाने वाली घटना थी, महंत नरेंद्र गिरी की मौत। अपने शिष्यों से लेकर अपने समर्थको एवं समाज को मार्गदर्शन देने वाला, जीवन जीने के लिए लोगो को प्रोत्साहित करने वाला, समस्याओं से जूझना सिखाने वाला आखिर अपने ज़िन्दगी में इतना कैसे हतोत्साहित हो सकता है कि खुद का ही जीवन समाप्त कर ले। सिर्फ हम ही नहीं बल्कि पूरा देश अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष की मौत को संदिग्ध मान रहा है। सरकार ने भी इस मौत के कारणों की जांच के लिए सीबीआई जांच का आदेश दिया और सीबीआई ने अपनी जांच शुरू कर दी। इस दरमियान कई अनसुलझे सवाल सीबीआई को भी परेशान कर रहे है। सीबीआई इन सवालों का जवाब जहाँ तलाशने की कोशिश कर रही है।
दरअसल महंत नरेंद्र गिरि को वाई श्रेणी की विशेष सुरक्षा मिली हुई थी। पुलिस अफसरों के मुताबिक महंत नरेंद्र गिरि को मिली वाई श्रेणी की सुरक्षा में पीएसओ, हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल समेत कुल 11 जवानों की तैनाती थी। महंत की सुरक्षा के लिए जवानों की आठ-आठ घंटे की तीन शिफ्ट में ड्यूटी लगाई गई थी। साथ में पुलिस स्कॉर्ट भी उनके साथ चलती थी। कहा जा रहा है कि नियमानुसार ऐसी शख्सियत के आराम करने अथवा सोने दौरान भी उनके कमरे के बाहर एक सुरक्षा गार्ड की तैनाती रहनी चाहिए। लेकिन, जिस समय महंत की मौत की बात कही जा रही है, तब वहां कोई गार्ड तैनात नहीं था। अलबत्ता किसी सेवादार ने जब चाय देने के लिए कई बार दरवाजा खोलवाने की कोशिश की और फोन करने पर उनका मोबाइल नहीं उठा, तब दरवाजा तोड़कर मठ के शिष्य भीतर घुसे। यहां भूतल पर बने उस कक्ष का दरवाजा तोड़कर भीतर घुसने वाले शिष्यों की बात कितनी सच है, यह भी गहरी जांच का हिस्सा हो सकता है।
दूसरा एक बड़ा राज़ निकल कर ये आ रहा है कि जिस कमरे में फांसी लगाए जाने की बात कही जा रही है, वहां की परिस्थितियां भी घटना को लेकर गहरे संदेह पैदा करती हैं। वायरल हुए वीडियो में दुनिया ने देखा कि जब पुलिस वहां मौके पर पहुंची तो महंत का शव ज़मीन पर लेटी हुई अवस्था में था, और जिस पंखे की खूंटी से महंत के लटक कर आत्महत्या करने की बात कही जा रही थी, वह पंखा फुल स्पीड में चल रह था। पंखे का कोई भी पंख टेढ़ा नहीं हुआ था। जबकि अमूमन पंखो के पंख इस स्थिति में टेढ़े हो जाते है। रस्सी जिससे आत्महत्या करने की बात सामने आई है, वह रस्सी 3 हिस्सों में तकसीम थी। जिसका एक हिस्सा महंत के गर्दन पर दूसरा टेबल पर और तीसरा हिस्सा पंखे पर लटक रहा था। ये परिस्थितिया पूरी घटना पर शक पैदा करती है।
समाधि भी जिस गड्ढे में दी गई, उसमें शव के साथ दो दर्जन से अधिक नमक की बोरियां पाटी गई हैं। इसके पीछे कुछ संतों ने शास्त्रोक्त पद्धति का हवाला दिया था, ताकि हड्डियां भी गल जाएं और सबकुछ परमात्मा में विलीन हो जाए। अब, कहा जा रहा है कि नमक की बोरियां डाले जाने से शव जल्द ही गलकर नष्ट हो सकता है। ऐसे में सीबीआई अगर साक्ष्य के तौर पर चोट के निशान या अन्य जख्मों, फंदे के चिह्नों को देखने के लिए समाधि से शव बाहर निकलवाना भी चाहेगी तो क्या और कितना हासिल हो सकेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में महंत की मौत से जुड़े ऐसे कई अनसुलझे सवालों को सीबीआई समय रहते खोल पाती है या नहीं, यह भविष्य पर निर्भर करेगा।
इसके अलावा एक और सच निकल कर सामने आ रहा है कि जिस कक्ष में महंत का शव मिला है, उससे संबद्ध बाथरूम का दरवाजा भीतर से लिंक होने के साथ ही बाहर भी खुलता है। खुफिया विभाग ने घटना के बाद उस कक्ष के चोर दरवाजे की जानकारी उच्चाधिकारियों को दी थी। अब सवाल ये है कि अभी तक ये बात खुल कर सामने नही आई है कि उस बाथरूम का दरवाज़ा बाहर से अथवा भीतर से किधर से बंद था। इसका सच अगर सामने आया तो ये निश्चित है कि महंत की मौत में संदेह है कि नही है ये स्पष्ट हो जायेगा। वैसे आपको ध्यान दिलाने की बात ये भी है कि सुशांत सिंह राजपूत और आरुषी हत्याकांड के तथ्य अभी भी कही अँधेरे में है।
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