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तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ : ये कडवी हकीकत है हुजुर, रिश्तो की अहमियत माली हैसियत की मोहताज होती है, पत्रकार का प्रयास और मिला बेसहारा बुज़ुर्ग को सहारा

तारिक़ आज़मी

अगर आपकी माली हैसियत थोड़ी कमज़ोर हो तो रिश्तो की अहमियत भी थोड़ी कमज़ोर होती है। बेशक आप इसके ऊपर जितने भी तर्क दे, मगर ज़िन्दगी की एक कडवी सच्चाई है कि आपके रिश्तो की अहमियत आपके माली हालात की मोहताज होती है। बेशक मै सभी की बात तो नहीं करता हु। मगर आपको अगर आपकी माली हैसियत कमज़ोर होने के बावजूद आपके रिश्ते अहमियत देते है तो आप वाकई खुशकिस्मत है। मगर आज इस कलयुग में ये एक कडवी सच्चाई है कि आपकी अहमियत आपके माली हैसियत पर निर्भर होती है।

आप किसी परेशानी में मुब्तेला हो, आपके साथ बिमारी कोई हो और आप माली हैसियत से थोडा कमज़ोर हो तो रिश्ते आपसे कन्नी काटने लगते है। शायद ये खौफ कही न कही घर किये हो सकता है कि कही माली मदद न करना पड़े। कलयुग की इस सच्चाई को आप भले झुठलाये मगर हकीकी ज़िन्दगी में तो यही आपसे दो चार होते रहते है। एक हमारे बड़े करीबी और चाय पान की दूकान के फिलाफ्सर ने मुझसे कभी कहा था कि “भरे पेट सभी खाने को पूछते है मिया, भूखे पेट कोई नही।” उस वक्त तो हमारे समझ में उनकी बाते केवल चाय पान के दूकान की फिलासफी लगी थी। मगर वक्त और हालातो की दुनिया देखी तो वो हकीकत समझ में आती है।

अब आप शम्भू यादव को ही देख ले। इस आज के इस आर्टिकल में वही केंद्र बिंदु है। शम्भू यादव बीएसएनएल में कर्मचारी थी। जब नौकरी रही होगी तो जलवे भी रहे होंगे क्योकि उस वक्त बीएसएनएल के कर्मचारियों के रुतबे हुआ करते थे। सारे रिश्ते उनके पास रहे होंगे। हर एक रिश्ता उनको अपना रिश्तेदार बड़े फक्र से बताता होगा। वक्त ने करवट लिया होगा और फिर शम्भू रिटायर्ड हुवे। माली हालात कमज़ोर हुवे तो रिश्ते भी कमज़ोर होने लगे। रिश्ते इतने ही कमज़ोर हो गए कि 9 माह से पैरालेसिस के शिकार शम्भू यादव की पत्नी उनको एक महीने पहले उनके घर के अन्दर बंद करके अपने बच्चो को लेकर अपने मायके चली गई।

67 साल के शम्भू ने शायद तिनका तिनका जोड़ कर हुकुलगंज के बाघानाले के पास अपना आशियाना बनाया होगा। अब उसी आशियाने में एक महीने से वो मजूर होकर कैद हो गए। कल तक शायद दुसरे की मदद कर देने वाले शम्भू अब पड़ोसियों के रहमो करम पर हो गए। पडोसी उन्हें सुबह शाम खाना दे देते तो उनकी ज़िन्दगी चल रही थी। सांसे भी ऐसे हालात में बड़ी सख्त हो जाती है और साथ नही छोडती है। पड़ोसियों के दया पर शम्भू यादव की ज़िन्दगी कट रही थी। आखिर मोहल्ले के निवासी एक पत्रकार को उनकी इस दींन स्थिति पर तरस आया और सोशल मीडिया पर उसने शम्भू का मामला उठाया। सोशल मीडिया पर मामला आने के बाद प्रशासन की जानकारी में प्रकरण आया।

फौरन ही प्रशासन के आला अधिकारी के साथ क्षेत्रीय चौकी इंचार्ज भी सक्रिय हो गए और मौके पर पहुच गये। चौकी इंचार्ज ने तुरंत पत्नी के रिश्तेदार के साथ साथ उसकी पत्नी से भी बात करते हुए आड़े हाथों लिया, और जमकर सुनाया। आखिर आज उस बुज़ुर्ग को देखने में तो इन्साफ मिल गया है। आज सुबह ही शंभू यादव का साला दीपक कुमार जो बनारस के शिवपुर स्थित काशीराम आवास में रहता है और राजगीर का काम करता है आया और अपने बहनोई को अपने साथ अपने घर ले गया। साले से बात करने के बाद साले ने बताया कि कई बार जीजाजी हमारे यहां रह चुके हैं। इससे पहले भी वह हमारे यहां ही थे। लेकिन बहन द्वारा उनको लेकर यहां पर आ जाया गया। अब मैं इन्हें ले जा रहा हूं और मेरे यहां ही रहेंगे। जाते-जाते बुजुर्ग शंभू यादव ने आस पड़ोस वालों को हाथ जोड़कर धन्यवाद दिया कि इतने दिनों से उन्होंने उनका देखभाल करते हुए खाना खिलाया।

अब आप समझ सकते है कि रिश्तो की अहमियत पैसो की कितनी मोहताज होती है। शम्भू के पास आज माली हैसियत बढ़िया रहती तो दो चार दूर के रिश्तेदार भी उसके काफी करीबी हो जाते। फिर न शम्भू को किसी बात की दिक्कत होती और न ही उस बुज़ुर्ग को सहारे की कमी होती। मगर इंसानियत तो माली हैसियत देखने लगती है। भला हो मोहल्ले वालो का जो उनको लगभग एक महीने से सुबह शाम खाना दे दे रहे थे। भला हो उस पत्रकार का जिसने इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर उठाया। बस हमको सोचना ये चाहिए कि हमारे आसपास ऐसे कोई शम्भू तो नही है। जिन्हें हमारी ज़रूरत है। जिनको हमारी बात पर एतबार नही कि रिश्तो की अहमियत माली हैसियत की मोहताज है, उनके लिए एक खुबसूरत सा शेर अर्ज़ है कि “सच बात मान लीजिये चेहरे पर धुल है, इलज़ाम आईनों पर लगाना फ़िज़ूल है।”

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