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बनारस में ज़ायके का सफ़र शाहीन बनारसी और ए0 जावेद के संग : त्योहारो के सीजन में हलवे का स्वाद चाहिए तो दालमंडी के असगर मिठाई वाले के यहां आइये

शाहीन बनारसी संग ए0 जावेद

वाराणसी। जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके है कि हम अपने सीरीज के तहत बनारस के मशहुर दुकानों से सम्बंधित मशहुर खान-पान की आपको जानकारी देंगे। आज हम अपने ज़ायके के सफ़र में त्योहारों को देखते हुए पूर्वांचल के सबसे बड़ी मार्किट “दालमंडी” का रुख कर बैठे है। पूर्वांचल की सबसे बड़ी मार्किट जहाँ एक छोटी सुई से लेकर पूरी शादी के सामान तक मुहैया हो जाते है। इन त्योहारों के सीजन में खरीदारों की भीड़ से गुलरेज़ है। बात अगर दीपावली की हो तो जुबां पर मिठाई के ज़ायके खुद-ब-खुद आने लगते है। हम इसी मिठाई के ज़ायके के तलाश में आज दालमंडी का रुख कर बैठे है।

मेरे साथ मेरे सहयोगी, मेरे बड़े भाई ए0 जावेद और उनकी मैस्ट्रो थी। मार्किट में ज़रूरत से ज्यादा भीड़ होने की वजह से हमारे जावेद भाई ने अपनी गाडी चौक पर ही एक पार्किंग में लगा दिया और हम पैदल ही दालमंडी की पेचीदा दलीलों जैसी गलियों से होते हुए चल पड़े। हमारी तलाश मिठाई के स्वाद की थी। हमने असगर मिठाई वाले की काफी तारीफें अपने बचपन से सुनी है। पिछले लगभग 5 दशको से मिठाई के स्वाद के लिए असगर मिठाई वाले का नाम ही काफी है।

वैसे तो असगर मियां ने अपनी ज़ईफ़ी के मद्देनज़र अब घर पर ही रहना शुरू कर दिया है और अपनी मिठाई की दूकान सबसे लायक साहबजादे शानू के हवाले कर दिया है। मगर नाम आज भी उन्ही का चलता है। गरी का हलवा, गोंद का हलवा, अंडे का हलवा, गाजर का हलवा और सोहन हलवा के स्वाद का ज़िक्र कही भी होता है तो असगर मिठाई वाले का नाम ज़रूर सामने आता है। भारी भीड़ से गुजरते हुए हम असगर मिठाई वाले की दूकान पर पहुँच चुके थे। हमको ज़ायके का ये सफर आज यहां मुकम्मल करना था। अँधेरा हो चूका था और पेट में चूहे छोटी वाली कबड्डी खेल रहे थे।

शानू मियां को हमने दो जगह 50-50 ग्राम गरी का हलवा देने का आर्डर दिया। गरी का हलवा हमारे हाथो में था और जुबां पर ज़ायको की लहर दौड़ रही थी। बेशक ये ज़ायके लाजवाब थे। हमारे चेहरे पर मास्क था। हलवा खाने के लिए जब हमने मास्क हटाया तो शानू मियां ने हमे पहचानते हुए कहा कि आप तो शाहीन बनारसी है। बेहतर महसूस होता है जब आपके काम से अजनबी भी बिना खुद का तार्रुफ़ करवाए आपको पहचान ले। हमने जी कहते हुए हाँ में सर हिलाकर, हलवे का लुत्फ़ लेना जारी रखा। गरी का हलवा ख़त्म हो चूका था और हमारे हाथो में 50 ग्राम के वजन का गोंद का हलवा था। बेशक लाजवाब हलवा हमारी जुबां पर था। हमने सोहन हलवा भी टेस्ट किया। सोहन हलवा ने हमे जयपुर की याद ताज़ा करवा दी।

सच बताऊ तो हलवे से हमारा पेट भर चूका था मगर ज़ायके से नीयत नहीं भरी थी। ज़ायके के इस सफ़र को मुकम्मल कर मेरे जावेद भाई ने शानू मियां को हलवे का पैसा दिया तो शानू मियां ने लेने से मना किया, मगर मेरे जावेद भाई ने उनके हाथो में पैसा थमाते हुए कहा कि हम वो नहीं है जो मुफ्त में खाकर तारीफें लिखे। हम पैसा देकर खाते है और ज़ायके की सही तारीफ़ लिखते है। शानू मियां को पैसा देकर हम आगे बढ़ चुके थे। रात तक हमारी जुबां पर हलवे का ज़ायका उतरने का नाम नहीं ले रहा था। बेशक 5 दशक से हलवे के ज़ायके का दूसरा नाम असगर मिठाई वाले क्यों है, आज हमको पता चल चूका था।

ज़ायके के अगले सफ़र में हम आपको एक और मिठाई के दूकान पर लेकर चलेंगे। जुड़े रहे हमारे साथ।   

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