तारिक़ आज़मी
मनीष गुप्ता की हत्यारोपी दो पुलिस वालो की गिरफ्तारी का समाचार जब कानपूर पहुंचा तो मनीष गुप्ता की मृत्यु के बाद से लगातार रोने वाली उसकी पत्नी मिनाक्षी के चेहरे पर कुछ बहालियत दिखाई दी। मीडिया से बात करते हुए मिनाक्षी ने कहा कि अभी ये इन्साफ की जंग की महज़ एक शुरुआत है, जब तक दोषियों को सजा-ए-मौत मुक़र्रर नहीं होगी तब तक ये इन्साफ की जंग जारी रहेगी। केडीए में बतौर ओएसडी नियुक्त हुई मिनाक्षी अपने पति के मौत पर इन्साफ की जंग लड़ रही है।
मुसाफिर हम भी है, मुसाफिर तुम भी हो, किसी न किसी मोड़ पर मुलाकात तो होगी ही। वर्दी को वर्दी तलाशे यह इस कलयुग में देखा जा रहा है। धन की भूख तबाही के मुकाम पर लाकर खड़ा कर चूका है। कानून से बचना मुश्किल है, और अगर बच भी गये तो रब के इन्साफ से बच पाना नमुमकिन है। आप खुद नज़रे उठाकर देख ले, जिस वर्दी का रोआब था वह सब ख़त्म हो चूका है। वही मुआशरा जो जेएन सिंह के वर्दी का अदब करता था आज हिकारत की नज़र से देख रहा है। किसके लिए थी, आखिर ये कमाई? यह दाग आजीवन आह और सिसकियाँ लेने को सिर्फ जेएन सिंह को ही नहीं बल्कि पुरे कुंबे को मजबूर करता रहेगा।
कल तक जिन इनामिया अपराधियों में जेएन सिंह के नाम का खौफ था, आज उसी लिस्ट में उनका खुद का नाम शामिल है। तसव्वुर कीजिये कि कल तक अपने नाम से दुसरो को भी पहचान दिलाने वाला जेएन सिंह आज कितना बेआबरू है। ये वक्त का खेला ही है कि वह बेचारा बनकर दर-दर की ठोकरे खाया होगा। तसव्वुर को थोडा और मकाम दीजिये और गौर करिए। फरारी के दरमियान खुद अपने ही साथी पुलिसकर्मियों से बचने के लिए पैदल भी रास्ता नापा होगा। उस खौफ का भी तसव्वुर कर लीजिये जो केवल कानून के गिरफ्त में आने के ही नहीं बल्कि उन अपराधियों से भी खौफ था, जिनके ऊपर पाँव रखकर कोतवाल साहब तरक्की की सीढियाँ चढ़ रहे थे। शायद ऐसे ही हालात को कहा जाता है कि “न कोई साथी, न कोई संघाती, पुलिस की नौकरी में ऐसी चुक कहलाती है आत्मघाती।”
किसी ने सही कहा है कि वक्त बड़ा बलवान है, वक्त की हर शय गुलाम है। वक्त हर फूलो की सेज, वक्त है कांटो का ताज, न जाने किस मोड़ पर वक्त का बदले मिजाज़। कल तक दुसरो को जेल भेजने वाले आज खुद उस चारदीवारी में है। पुलिस की वर्दी में हैवानियत का खेल, आज इतना भारी पड़ा कि ता-उम्र कमाई हुई हसरत, शोहरत, इज्ज़त, दौलत सब कुछ एक ही झटके में चला गया। न जायज़ रास्ते पर चलने का अंजाम इसको कहेंगे या फिर इंसानीयत की बद दुआ। दोनों में जो भी हो इसको इबरत हासिल करने का ही एक तरीका बनाया जा सकता है। मनीष गुप्ता बेकसूर था, कच्ची गृहस्थी थी, उसकी मौत ने पुरे कुंबे को उजाड़ दिया। शायद उसके रूह से निकली या फिर उसके अल-औलाद की ये बद दुआ ही होगी, जो आज जेएन सिंह अपना सब कुछ गवा बैठा।
मोहतरम शायर साहिर लुध्यान्वी सिर्फ लुधियाना की ही शान नही बल्कि उर्दू अदब में एक आला मुकाम रखते थे। उन्होंने ऐसे हालातो पर 56 सालो पहले यानी की आधी सदी पहले ही कलाम अर्ज़ किया था। इसको भी ख्याल से पढ़ ले।
कल जहा बसी थी खुशियाँ, आज है मातम वहा,
वक्त लाया था बहारे, वक्त लाया है खिज़ा।
वक्त से दिन और रात, वक्त से कल और आज,
वक्त की हर शय गुलाम, वक्त का हर शय पर राज।
वक्त की गर्दिश से है चाँद तारो का निजाम,
वक्त की ठोकर में है, क्या हुकूमत क्या समाज।
वक्त की पाबाद है आती जाती रौनके,
वक्त है फूलो की सेज, वक्त है कांटो का ताज।
आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे,
कौन जाने किस घडी वक्त का बदले मिजाज़।
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