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कंगना रानौत के बयान पर तारिक आज़मी की मोरबतियाँ : कही आपका पसंदीदा चैनल थेथ्रोलाजी को ही क्रोनोलाजी न बना दे उसके पहले आप सोचे, किस तरह झूठ को सच बनाया जा रहा है

तारिक़ आज़मी

इस वक्त कंगना रानौत को लेकर हंगामा बरपा है। हर तरफ कंगना के बयान की आलोचना हो रही है। सुबह सुबह ही कंगना का ख्याल आ गया। कहा जा सकता है कि “रात यु दिल में तेरी भूली हुई याद आई, जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए।” जिस पार्टी के लिए कंगना इतनी समर्थक है, उसी पार्टी के ज़रिये उनको खरी खोटी सुनना पड़ रहा है। कही कंगना के पुतले जलाये जा रहे है, तो कही कंगना के फोटो को जूते खाने पड़ रहे है। कई शहरो में तो कंगना के खिलाफ देश द्रोह तक की शिकायत पुलिस से किया गया है। ये कोई नई बात नही है। थेथ्रोलाजी तो आपने सुनी ही होगी। थेथ्रोलाजी, वही जो अपने पूर्वांचल में जिसको थेथरई कहा जाता है उसकी लाजिक अगर बना दिया जाए तो थेथ्रोलाजी बनकर तैयार हो जाती है।

इन सबके साथ कंगना का आज़ादी को लेकर दिया गया बयान भी ध्यान देने लायक है और उस बयान के वक्त कंगना के साथ स्टूडियो में बैठे सूट बूट में खुद को बुद्धिजीवी समझने वालो का रिएक्शन भी ध्यान देने लायक है। जब कगना ने कहा कि “1947 में आज़ादी भीख में मिली थी, असली आज़ादी 2014 से मिली।” ये वर्ष 2014 का मतलब मोदी सरकार के आने से रहा था कंगना का। आप इस एक्ट्रेस के बयान को ध्यान न देकर उस वक्त स्टूडियो के माहोल को देखे। गौर करे कैसे एक एंकर ने कंगना के इस बयान पर खुद के चहरे पर मुस्कराहट इतनी फैलाई कि उनके खुद के होंठ कानो तक पहुचने को बेताब थे। 32 नही दिखे, मगर मुस्कराहट ने बहुत कुछ कह डाला।

सबसे ज्यादा तो सूट बूट पहने लोगो पर नज़र देने की बात थी। उनकी थेथरई में बजती ताली ने आपका ध्यान असल में नही दिलवाया होगा। एक झूठ, एक चाटुकारी पर ऐसे ताली बजी जैसे करोडो की संपत्ति हाथ लग गई होगी। कंगना के बयान विवादित होना कोई नई बात तो है नही। बस आपकी आलोचना सामने न आने से कंगना जैसे लोगो को अपनी थेथ्रोलाजी का बखान करने का मौका मिलता रहता है। जल्द ही आपका पसंदीदा चैनल आपको इस तरीके की थेथ्रोलाजी को ही असली क्रोनोलाजी बना कर आपके सामने पेश कर देगा।

कंगना ने कुछ ऐसा शब्द नही बोला है, ये बस उस कड़ी का एक बड़ा हिस्सा था जिसको आप व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी और अन्य सोशल मीडिया साइट्स पर रोज़ ही पढ़ते है। गांधी की तस्वीर लगा कर गोडसे की जयकारा करने वाली भीड़ को साथ लेकर आपके पसंदीदा चैनल ने आपको भी भीड़ में तब्दील कर दिया है। आपके पसंदीदा अख़बार को ही उठा कर आप देख ले। किसने इस प्रकरण पर अपनी संपादकीय कलम घिसा? किसी ने इसको किसी एक कोने में जगह दिया तो कई ने तो नज़र ही नही डाला। अब अगर आप उनसे इस मामले में बात करेगे तो एक और थेथ्रोलाजी, क्रोनोलाजी बनकर आपके सामने रहेगी। वो कहेगे ऐसे लोगो को जवाब ही नही दिया जाता है। शायद इसी क्रोनोलाजी ने कंगना जैसो को अपनी थेथ्रोलाजी बयान करने का मौका दे दिया है।

पद्म अवार्ड कंगना को देने पर हम कोई सवाल नही उठाते है। हम एकदम नही पूछेगे कि आखिर कंगना ने कौन से क्षेत्र में इतना योगदान दिया था कि उनको पद्म जैसे आभूषण मिले। हम बस कुछ कंगना को ही याद दिलाना चाहते है कि सबसे बड़े देश के पद जो जन्म हमारे संविधान ने ही दिया है। देश का सबसे बड़ा संवैधानिक पद राष्ट्रपति और दूसरा उपराष्ट्रपति का है। कंगना ने दोनों के हाथो से अवार्ड ग्रहण किया है। बेशक मुझको अदाकारी की परख नही है। मैं तो थोड़े पैसे खर्च कर फिल्मो को देख कर खुद का मनोरंजन कर लेता हूँ। मगर कंगना को शायद पता नही हो कि उसी संविधान में “मौलिक कर्तव्यो” में अनुच्छेद 51A में  कहा गया है कि “स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आदर्शो को ह्रदय में संजोये रखे, जिन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन को प्रेरित किया।”

कंगना ने न सिर्फ 1857 से लेकर 1947 तक स्वतंत्रता के लिए असंख्य बलिदानों का अपमान किया बल्कि संविधान में उल्लेखित मौलिक कर्तव्यों में अनुच्छेद 51A का भी अपमान कर दिया। इसको बडबोलापन ही तो कहेगे कि जिसको स्वतंत्रता आन्दोलन की शायद कोई जानकारी नही वह स्वतंत्रता पर बात कर रही है। मगर आप हकीकत देखे। उस कार्यक्रम में जो थेथ्रोलाजी कंगना ने पेश किया उसके मुखालिफ चैनल के एंकर और सम्पादिका ने एक शब्द नही कहा। जबकि उनकी जगह कोई समझदार एंकर होता तो तुरंत कंगना को टोकता और उनसे उसी समय माफ़ी मंगवाता। मगर एंकर साहिबा को तो टीआरपी की हड़बड़ी थी। इसके लिए संविधान का मज़ाक बनाया जाए, सविधान का सम्मान न हो। उनको इसका फर्क नही पड़ता है।

पुरे साल जिस पार्टी के द्वारा जिन जवाहर लाल नेहरू को खरी खोटी सुनाया जाता है आज उन्ही का जन्मदिन है। “बाल दिवस” दिवस के रूप में मनाया जाने वाले इस दिन पर नेहरू को याद खुद प्रधानमन्त्री ने अपने ट्वीट के माध्यम से किया है। मगर नेहरू के स्वतंत्रता आन्दोलन में भूमिका पर आपके किस पसंदीदा चैनल ने प्रोग्राम रखा है। किस पसंदीदा अख़बार ने उनके लिए सम्पादकिय के कलम घिसी है। आप अब खुद सोच सकते है कैसे आपके सामने थेथ्रोलाजी को क्रोनोलाजी बना कर परोसा जा रहा है। आज़ादी महज़ तीन रंगों का नाम नही है। जिस संविधान का मखौल आपके उस पसंदीदा चैनल ने बनाया। जिस आपके पसंदीदा अख़बार ने इस पर खामोश रहकर उसको एक प्रकार का मौन समर्थन दिया है। उसी संविधान में मौलिक अधिकार का उपयोग तो कंगना कर रही है।

एंकर का कहना कि “दिल्ली में कुछ नही होगा” शायद भूल गई है कि इसी दिल्ली की सडके स्वतंत्रता आन्दोलन 1857 से लेकर 1947 तक आज़ादी के परवानो के खुनो से लाल हुई है। कार्यक्रम में रानी लक्ष्मीबाई की तारीफ कंगना के द्वारा किया जाना, काफी नही था। आज़ादी के लिए खुद की जान ही नही बल्कि पुरे के पुरे कुनबो को कुर्बान कर देने वालो की कुर्बानी को कैसे सिर्फ एक आज़ादी के परवाने की तारीफ से ढका जा सकता है। क्या जालियावाला बाग़ कांड एंकर को याद नही या फिर उन्होंने पढ़ा नही था। असल में ये सब काफी पहले से चल रहा है। आपको भीड़ में तब्दील किया जा रहा है। चैनल को 2 दिनों तक होश नही था कि वह संविधान के अपमान का जरिया बन गए है। दो दिनों बाद चैनल ने अपनी सफाई में ट्वीट किया। क्या जितने लोगो ने कार्यक्रम देखा था उन सबने चैनल का ट्वीट पढ़ा होगा। ये बात मै पुरे दावे के साथ कह सकता हु कि नही पढ़ा होगा। क्या चैनल को माफ़ी मांगने के लिए दो दिन इंतज़ार करना पड़ा ? क्या चैनल ने अपने एक विशेष कार्यक्रम के तहत इस बात का खंडन किया और अपनी गलती पर माफ़ी मांगी ? नही न, तो माफ़ी मांगने का अधिकार ही चैनल और उसकी एंकर खो चुकी है,

Tariq Azmi
Chief Editor
PNN24 News

एक बार फिर आपको कह रहा हु। अपनी नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी की सोचे। अपने बच्चो की सोचे। आपको आपका पसंदीदा चैनल भीड़ में लगभग तब्दील कर ही चूका है। जो लोग अभी भी उस भीड़ का हिस्सा नही है उनकी ख़ामोशी उनको इसका हिस्सा बना रही है। हमारा ये नही कहना है कि आप सडको पर आये। बल्कि कम से कम ऐसे लोगो का बायकाट तो आप कर ही सकते है। कब तक आपका पसंदीदा चैनल और अख़बार आपको थेथ्रोलाजी को ही क्रोनोलाजी बना कर पेश करता रहेगा। ठीक है, आप जानकार है। मगर आने वाली हमारी नस्ल तो इतनी जानकार नही होगी कि वह इस थेथ्रोलाजी और क्रोनोलाजी में फर्क कर सके।

मशहूर शायर जान एलिया ने कहा था कि “उनके विसाल के लिए, अपने कमाल के लिए, हालत-ए-दिल थी ख़राब, और ख़राब की गई।” हम उसी स्थिति में पहुच चुके है। इसी ग़ज़ल का एक और शेर मौजूदा हालात पर ही सेट होता है कि “उसकी गली से उठ के मैं आन पड़ा था अपने घर, एक गली की बात थी और गली गली गई। तेरा फिराक जान-ए-जाँ, रिश्ता क्या मेरे लिए, यानी तेरे फिराक में खूब शराब पी गई।” फिर एक बार कहता हु कि थेथ्रोलाजी और क्रोनोलाजी में फर्क समझे आप। आपको ऐसी थेथ्रोलाजी हर चाय पान की दूकान पर भी मिल जाएगी। अब वक्त है इस व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के ज्ञान को रोकने के लिए हमको माकूल लफ्जों से उनके अल्फाजो का जवाब देना होगा। अपने पसंदीदा चैनलों और अखबारों को भी अब इसके लिए सोचना होगा।

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