तारिक आज़मी
बेटी अहल-ए-सुबह स्कूल जा चुकी है। सोकर उठने के बाद दिल तेज़ धड़कना शुरू कर चूका है। एक बेटी का बाप हु साहब, जी हाँ मुझको भी डर लगता है। आखिर हमारे शहर को क्या हुआ है? इब्लीस भी शर्मसार हो गया है पिछले चार दिनों से। पहले सनबीम लहरतारा स्कूल कैम्पस के अन्दर 9 साल की मासूम से दुष्कर्म, और अब दावत-ए-वलीमा कार्यक्रम में शामिल होने आई महज़ 6 साल की बच्ची के साथ पड़ोस के रहने वाले 27 साल के बुड्ढे नासिर ने दुष्कर्म किया। इत्तिफाक से इस घटना का भी ताल्लुक लल्लापुरा के प्राईमरी स्कूल से निकला। वही दावत-ए-वलीमा का कार्यक्रम था, जिसमे शामिल होने के लिए मासूम गई थी। आपको सनबीम लहरतारा की घटना तो मालूम है। अब आपको कल रविवार को हुई लल्लापुरा क्षेत्र की घटना भी पहले बता देता हु।
वो इब्लीस ही तो रहा होगा जो नासिर की शक्ल में आया था। उस 6 साल की मासूम बच्ची को चाकलेट दिलवाने के नाम पर लेकर जाता है और उसके साथ कुकर्म करता है। सिगरा थाना क्षेत्र के लल्लापुरा में हुई इस शर्मनाक घटना से लोगो में उबाल पैदा हो गया था। क्षेत्रीय नागरिको ने आरोपी नासिर के घर को घेर लिया था। हडकंप मचा था इलाके में। ऐसे इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना के बारे में जो सुनता, वो चार गालियाँ देता हुआ नासिर के घर के तरफ चल देता।
इस दरमियान इस घटना की जानकारी सिगरा पुलिस को हुई। जानकारी मिलते ही इस्पेक्टर सिगरा बैजनाथ सिंह अपने दल बल के साथ मौके पर पहुँच गए। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र लल्लापुरा में हुई इस शर्मनाक घटना से पुरे इलाके में उबाल था। पूरा इलाका इस शर्मनाक घटना की आलोचना कर रहा था। सभी गुस्से में थे। जानकारी होने पर उच्चाधिकारी भी मौके पर पहुँच गए। भीड़ की उत्तेजना देखते हुवे बड़ी मशक्कत सिगरा इस्पेक्टर और एडीसीपी को करना पड़ा, तब कही जाकर लोग शांत हुवे। नासिर फरार हो चूका था। उसके परिजनों में कुछ लोगो को सिगरा थाने लाकर रात भर पूछताछ चली। लेख लिखे जाने तक नासिर फरार था और पुलिस की कई टीम उसके गिरफ़्तारी के लिए हर सम्भावित ठिकाने पर छापेमारी कर रही है।
हमारे शहर को आखिर हुआ क्या है ?
इसी सप्ताह सिगरा के लहरतारा सनबीम में एक 9 साल की मासूम के साथ दुष्कर्म की घटना अंजाम दिया जाता है। पुरे शहर में इस शर्मनाक घटना के लिए उबाल है। वही अब कल शाम हुई इस घटना से ये उबाल और बढ़ गया है। हमारे शहर में छोटी बड़ी घटनाएँ होती रहती है। मगर ऐसी घटना जिससे इब्लीस भी तौबा करने लगे, कम से कम अर्बन इलाके में नही हुई थी। पहले 9 साल की मासूम और फिर अब महज़ 6 साल की मासूम के साथ दरिंदगी की इस घटना ने पुरे शहर को हिला कर रख दिया है। बेटी के हर एक बाप को डर सता रहा है। खौफज़दा है इंसान और सहमी हुई है इंसानियत।
शर्मसार है शहर बनारस कि उसके अन्दर ऐसे राक्षस और इब्लीस रहते है। नासिर जैसा इब्लीस और सिंकू जैसा राक्षस हमारे शहर का एक हिस्सा है, इसको जानकर हम सभी शर्मसार है। महज़ 6 साल और 9 साल की मासूम बच्चियों के साथ ऐसी घिनौनी घटना के बाद शहर में उबाल है। हर एक शख्स इस करतूत को लेकर शर्मिंदा है। आखिर किस तरफ जा रहा है हमारा समाज? हम कहाँ आ गये है? बेशक आज तारिक आज़मी की मोरबतियाँ निःशब्द है। हमारे पास अलफ़ाज़ नही है, जो अपने गम और गुस्से को ज़ाहिर कर सके। हम अपने दिलो की हालात को बयाँ करने के लिए आज लफ्जों की मोहताजी महसूस कर रहे है। निःशब्द……..! सिर्फ एक लफ्ज़ है हमारे पास।
देश की बेटी निर्भया को मिला था 7 साल बाद इन्साफ
बेशक हम यहाँ सुरक्षा व्यवस्था पर कोई सवाल नही उठा रहे है। हम समाज के अन्दर बैठे इन दरिंदो को ऊपर सवाल तो उठा सकते है। ये दरिंदगी की इन्तेहा जो खत्म हो रही है वह हमारे सोच की गलती है। बेटियों को तम्बी में रखने वाला हमारा समाज बेटो को खुली आज़ादी देता है। बेटो को हम ये नही सिखाते है कि संयमी रहे। हर एक बेटी तुम्हारी बहन-बेटी जैसी है। हम तो बेटो की गलती को नज़रअंदाज़ करने के लिए बैठे है। अब इस नासिर और सिंकू को ही देख ले। कुछ ही वक्त के बाद इन दो जालिमो के परिजन उनकी जमानत के लिए कोर्ट कचहरी दौड़ते हुवे दिखाई देंगे। वह एक-एक दाव चलेगे कि उनका बेटा रिहा हो जाये। आखिर ऐसा क्यों? पीड़िता को हम अपनी बेटी मान कर देखे और सोचे ऐसे समाज की गन्दगी को तो समाज में रहने का ही हक़ नही है।
दुसरे हमारी कानून व्यवस्था का लोचदार होना भी ऐसे कु-कर्मियो के लिए अमृत का काम कर जाता है। बेशक इसी देश की कुछ अदालतों ने नजीर कायम किया है। चंद हफ्तों में ही ऐसे कुकर्मो की सजा मुक़र्रर कर दिया। मगर जरा गौर करके देखे ऐसे कितने केस है। सिर्फ उंगली पर गिने चुने केस ही दिखाई देंगे। देखिये खुद गौर करके कि इन्साफ की जंग कितनी लम्बी खींची जाती है। अदालत से मिलती तारीख पर तारीख ने ऐसे केसेस को कितना लम्बा खीचा।
वर्ष 2012 का दिसंबर निर्भय केस के लिए कडवी यादे लेकर आया था। पुरे देश में इस घटना को लेकर उबाल था। पुरे देश में ही इसका विरोध प्रदर्शन हुआ। पूरा देश शर्मसार था ऐसी घटना से। गिरफ्तारियां होती है। वर्ष पर वर्ष बीतते जाते है। तारीख पर तारीख मुक़र्रर होती रहती है। दिन, महीने और साल बीतते रहते है। जालिमो के वही परिजन जो घटना के लिए कोस रहे थे, वही उनकी रिहाई और माफ़ी की गुहार भी लगा रहे थे। ज़ुल्म के 7 साल गुज़र जाने के बाद आखिर इन्साफ मिला। सोचे 7 साल ज़िन्दगी का इस संघर्ष में बिताने वाले पीड़िता के परिजनों का क्या हाल हुआ होगा। इन्साफ की जंग काफी लम्बी चली और 7 साल बाद इन्साफ मिलता है। ये उस केस का हाल है, जिस निर्भया को देश की बेटी कहा गया था।
बनारस की दोनों बेटियों के लिए मिले जल्द से जल्द इन्साफ
आज बनारस की दो मासूम गुडिया है। उनको कब इन्साफ मिलेगा? कब आखिर इन पापियों को जहन्नम रसीद किया जायेगा? एक मुहीम होनी चाहिए। इन दोनों मासूम बच्चियों को बनारस की बेटी का नाम दिया जाना बेहतर होगा। हम न विरोध प्रदर्शन की बात करते है और न ही किसी गुस्से को सामाजिक रूप से ज़ाहिर करने की बात करते है। हम सिर्फ अदालत से इस बात की इल्तेजा करने की बात कहते है कि दोनों मामलो को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाया जाए और दोनों मामलो में इतनी जल्दी फैसला आये कि इन्साफ की किताबो में एक नजीर सुनहरे अक्षरों में लिखी जाए। ऐसा कुछ हो कि दुबारा राक्षस सिंकू और इब्लीस नासिर इस शहर में आने से पहले सोचे।
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