तारिक़ आज़मी
पकिस्तान और न्यूज़ीलैंड के हाथो मिली हार के बाद कल अफगानिस्तान से भारत ने बढ़िया जीत हासिल किया। खेल की जीत हुई और भारत अफगानिस्तान से बढ़िया खेला और जीत गया। मगर को कल बीत चूका है वह वाकई कष्टकारी रहा। पाकिस्तान से मिली हार के बाद जिस तरीके से विराट कोहली को टारगेट किया गया। मुहम्मद शमी को लेकर विराट के नज़रिए को जिस तरीके से परोसा गया, वह वाकई में काफी कष्टकारी था। मुहम्मद शमी और विराट कोहली दोनों ही खिलाडी है। विराट का इस समय तो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में कोई सानी नही है। वही शमी की गेंदबाजी भी शानदार है। मगर कुछ छदम राष्ट्रवाद के नाम पर जिस तरीके की बाते सोशल मीडिया पर हुई, वह क्रिकेट के इतिहास में शायद पहली बार हुई।
मैं ये नहीं कहता कि किसने क्या कहा, मगर सबके तकलीफदेह बात तो ये थी कि इस हार को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास हुआ। कुछ चपडगंजूओ ने पकिस्तान की जीत का जश्न मनाया। पहले उनसे ही पूछता हु कि क्यों बे, पाकिस्तान में क्या तुम्हारे अब्बा खेल रहे थे जो इतना खुश थे ? अबे गधो, मुल्क परस्ती हमारे बचपन से सिखाई जाती है। फिर कैसे तुम किसी दुसरे मुल्क की तारीफ कर सकते हो। वैसे गधा कहना भी तुम जैसे लोगो को गधो की बेइज्ज़ती करना है, क्योकि गधा भी स्वामी भक्त होता है। तुम अक्ल के अन्धो के इतना नही समझ आता है कि ये वही पकिस्तान है जिसमे हमारे मुल्क से गई लोग 1947 से लेकर आज तक “मुहाजिर” कहे जाते है। यानी उनको शरणार्थी कहा जाता है। वो उनको न अपना सके आज तक, तो क्या तुम्हे अपना दामाद बना लेंगे ? और दूसरी सबसे बड़ी बात कि ये कैसे ख़ुशी मना रहे थे ? काहे कि ख़ुशी थी ? दो चार बिगहा खेत मिल गया था क्या ?
बहरहाल, कौन कहता है काबुल में गधे नही होते। इन हरकतों के लिए ऐसे लोगो को भरपूर सजा भी मिली और कई गिरफ्तारियां हुई। मगर इन सबमे सबसे तकलीफदेह रहा कि इस हार पर विराट कोहली को भरपेट लोगो ने अपशब्द कहे। एक ने तो उसकी मासूम बच्ची के साथ रेप तक की धमकी दे डाली। महज़ 10 माह की बच्ची। उसको तो मुस्कुराने और रोने के अलावा कुछ आता नही नही होगा। मगर दिमागी दिवालियापन तो देखे कि उसके लिए भी ऐसे बात बोली जिसको सोचना छोड़े कहने में भी शर्म महसूस हो रही है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने इसका स्वतः संज्ञान लिया और दिल्ली पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दिया है। इस जाँच में कब तक पुलिस को सफलता मिलेगी कहना मुश्किल है। जाँच कितनी तेज़ी से बढ़ेगी ये भी कहना मुश्किल है। मगर हम ऐसे लोगो के लिए हमारे पास लफ्जों की भरमार है। कही मिल जाओ बेटा तो ऐसे ऐसे शब्द कहूँगा कि तुम्हारे कान चिंघाड़ पड़ेगे।
मगर यहाँ ऐसे शब्दों का प्रयोग नही किया जा सकता है। कम से कम उस इंसान से हमारी इन्सानियत थोडा बड़ी है। हम यहाँ उस सोच को देखते है जिस सोच के तहत ऐसे शब्द उस इंसान ने प्रयोग किया था। इसको कुछ लोग राष्ट्रवाद से जोड़ कर देख रहे है। मगर साफ़ साफ़ कहा जाए तो इसको राष्ट्रवाद नही बल्कि छद्म राष्ट्रवाद का नाम देना सही होगा। समझ नही आता कि एक खेल के लिए राष्ट्रवाद की भावना कैसे जुड़ जाती है। देश भक्ति के नाम पर सिर्फ मानसिक दिवालियापन ही अपनी पहचान दे रहा है। आखिर कैसे किसी खेल को एक जंग के तरह देखा जा सकता है। बेशक हम अपनी भावनाओं को इस खेल से जोड़े रहते है। मगर एक बात नही समझ आती कि अगर यही मैच इंडिया बनाम आस्ट्रेलिया होता तो क्या हार को इस नज़रिए से देखा जाता ?
समझे इस बात को ये खेल है। सरहदे मौसिकी, संस्कृति और खेल और प्रतिभा पर बंदिश नही लगा पाती है। आप आज मेरे रश्के कमर, या फिर आँख उठी मुहब्बत में पर जमकर झूमते है। आप जमकर नाचते है, मस्ती करते है, आप ये तो नही देखते कि इन गजलो को लिखने वाले पाकिस्तानी नागरिक है या फिर अफगानिस्तानी नागरिक। आप टॉप टेन भजन को उठा कर देखा ले, सभी दस के दस भजन लिखने वाले के नाम और मज़हब पता कर ले। आखिर हम लफ्जों को किसी मज़हब की दिवार में नही बाधते है। तो फिर खेल को कैसे ऐसे जंग में तब्दील कर सकते है। भारत न्यूज़ीलैंड से भी हारा, बुरी तरीके से बल्लेबाजी फेल रही। ये भले ही पहले बल्लेबाजी का नतीजा हो, मगर टीम तो हारी न। फिर ऐसे ही आलोचना जैसी पकिस्तान से हार पर टीम की हुई तब क्यों नही हुई जब टीम न्यूज़ीलैंड से हारी।
ये महज़ हमारा दिमागी दिवालियापन ही है कि हम खेल को जंग की तरह देखते है। जबकि खेल को खेल के नज़रिए से ही देखना चाहिए। इसमें खेल की पत्रकारिता करने वालो की भी कमी सामने आई। एक रिपोर्टर को देखा मैंने, वो एक दर्शक से सवाल कर रहे थे। उनके सवाल विराट और बाबर के बीच कम्पेयर कर रहे थे। मगर दर्शक का जवाब वाकई बहुत ही शानदार था। उसने कहा कि खेल की जीत हुई। विराट और बाबर के बीच कोई कम्पेयर ही नही है। बेशक काफी शानदार जवाब था। इस जवाब से पत्रकार साहब खुद भी लाजवाब हो गए थे। बेशक विराट का कम्पेयर इस समय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में कोई नही है। उसके जैसा खिलाड़ी इस समय तो कोई नही है। फिर एक नए नए अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में आये खिलाड़ी का इतने अनुभवी से कम्पेयर करना ही बेवकूफाना हरकत है।
आप समझे, खेल को खेल ही रहने दे। खेल को जंग न बनाये। मौसिकी, प्रतिभा, खेल, संस्कृति किसी सरहद की मोहताज नही है। आप समझे, आज भी हमारे आपके घर की महिलाए करांची संस्कृति के सूट पहनती है। हम पाकिस्तानी लेखको के लिखे ग़ज़ल और गानों को बड़े चाव से सुनते है। लफ्ज़ कैसे सरहदों की बंदिशों में रह सकते है। खेल था, जो बढ़िया खेला वह जीता। कम से कम उसको इसी भावना से देखे। क्या मतलब बनता है कि खेल को जंग बना बैठते है हम। आप खुद सोचे, हम अंतर्राष्ट्रीय फ़ुटबाल टूर्नामेंट देखते है, इत्तिफाक से किसी भी टीम में कोई भारतीय या पाकिस्तानी खिलाड़ी नहीं है। मगर हम चाव से इस खेल को देखते है। भले ही हम किसी टीम विशेष के प्रशंसक हो। मगर खेल की तारीफ करते है। जिस टीम के हम प्रशंसक होते है उसके देश को हम जल्दी दुनिया के नक़्शे पर देखे भी नही होते है। कहा का खिलाड़ी है, ये जानते भी नही। हम केवल और केवल खेल देखते है। मनोरंजन करते है। इसी तरीके से क्रिकेट को भी देखना चाहिए। खेल की तारीफ होनी चाहिए।
आज विराट और शामी को गालियाँ देने वाले तब कहा थे जब इस दोनों खिलाडियों ने टीम की जीत में बड़ी भूमिकाये निभाई थी। कई मैच मैंने देखा है कि अकेले विराट के खेल से ही टीम जीत गई थी। कई ऐसे भी मैच थे कि महत्वपूर्ण विकेट शमी के खाते में आये और टीम जीती। तो फिर उस समय तारीफ क्या हमारी मक्कारी थी। तब हमने इसको सम्प्यादायिक सोच से तो नही देखा था। 29 साल हमारी टीम इसी पाकिस्तानी टीम को वर्ल्ड कप में चहेट देती थी। बेशक पाकिस्तानी कुछ खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करते रहे इस दरमियान। तब हम खेल भावना के साथ उसकी तारीफ भी करते थे। आज एक मैच 29 साल यानी लगभग तीन दशक बाद हार क्या गए हम लठ लेकर खड़े हो गए। हमको हमारे उन होनहार खिलाडियों पर ही भरोसा नही रहा जिन्होंने हमको कई दर्जन जीत का जश्न मनाने का मौका दिया था। कमाल करते है न हम भी राजा बाबू।
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