तारिक़ आज़मी
कुछ लोगो को ब्रांड से बड़ा प्यार रहता है। कुछ तो ऐसे भी है जो टॉयलेट पेपर भी लेना होता है तो ब्रांडेड लेते है। वैसे हमारे गुड्डू भाई भी बड़े शौक़ीन है। अमा गुड्डू मास्टर नही, गुड्डू जलाली। मास्टर तो बिना ब्रांड वाले से भी काम चला लेते है। मगर गुड्डू जलाली का जलवा ही अलग है। पेंट से लेकर शर्ट तक ब्रांडेड ही चलती है। अभी पिछले हफ्ते ही गुड्डू भाई डेंट पेंट करवा कर आये थे। मस्त चौकस रंग रोगन लगा था। पुरे दुबारा जवानी की कबड्डी खेल रहे थे।
बाल तो हमारे भी बड़े हो चुके थे। हम ठहरे ठेठ बनारसी। कहा फुर्सत कि महीने में एक बार बाल बनवाए। यहाँ तो सुबह हुई ब्रश के साथ वाशरूम, सीधे हजामत मैक थ्री टर्बो से खुद के हाथ से बना कर मस्त मलंग के तरीके से ज़िन्दगी कट जाती है। मगर हमारे गुड्डू भाई है कि हजामत को भी पूरा सेलिब्रेशन बना डालते है। बड़े सैलून में हफ्ते में एक दिन हजामत और महीने में एक दिन कटिंग जैसे लफ्जों को इस्तेमाल ही नही करते बल्कि करवाते भी है। गुड्डू भाई के बाल के कलर की तारीफ कर डाला तो गुड्डू भाई ने नेक सलाह दे डाली।
उन्होंने बताया कि जावेद हबीबी के सैलून में चलो बेहतरीन बाल की कटिंग करवा देता हु। महज़ तीन हज़ार ही तो लगते है। बेहतरीन बाल की कटिंग हो जायेगी। भाई सच बता रहा हु कि दाम सुनकर तीनो हार्ट अटैक एक साथ आते आते रह गया। वो तो भला हो आसिफ मियाँ का कि तुरंत उन्होंने सरफ़राज़ की चाय थमा दिया। वरना दाम सुनकर कलेजा मुह को आकर सड़क पर डांस करने को बेताब हो गया था। हमने चाय की चुस्की लेते हुवे कहा कि भाई कोई स्पेशल चीज़ से बाल बनाता है क्या ? बोले यार स्पेशल चीज़ से नही स्पेशल तरीके से बाल बनाता है। चलो मैं बनवा देता हु। एक बार कटवा लोगे तो मस्त हो जाओगे और बार बार वही जाओगे।
शाम ढल रही थी। सर पर बालो का बोझ भी बढ़ रहा था। कदम घर के तरफ बढ़े थे कि रास्ते में सैलून पड़ा। हमारे मोहल्ले में वैसे तो कई सैलून है। मगर इनमे से एक दूकान है हजामत की। लल्लू चा की दूकान। लल्लू च असल में जगत च यानी चाचा हो गए है। मोहल्ले के सभी लोग उनको लल्लू चा ही कहकर पुकारते है। देखा अकेले ही बैठे है तो हम पहुच गए। बचपन में कटोरा कट बाल यही दो थप्पड़ पापा का खाकर बनता था। उस वक्त उसको बंगला कट बाल कहा जाता था। काफी अरसा गुज़र गया लल्लू च से मुलाकात भी नही किया था और वक्त के रफ़्तार में ऐसी तेज़ी थी कि कभी इस सैलून तो कभी उस सैलून में पहुच जाते थे बाल बनवाने।
हमने सोचा आओ आज लल्लू च के यहाँ बाल थोडा साइड से सही करवा लू, और मुछे बड़ी हो गई है उसको भी ठीक करवा ले। हमने लल्लू च के दूकान में कदम रखा। बताता चलू कि लल्लू चा की दूकान है, सैलून नही। वो तो उनके लड़के माशा अल्लाह अब बड़े हो गए है और कारोबार को उन्होंने ने भी सैलून के स्टाइल का कर रखा है। मगर उसी के कोने में लल्लू च आज भी अपनी अलग कुर्सी लगाते है। फर्क सिर्फ इतना पड़ा है कि पहले लकड़ी की कुर्सी की जगह अब गद्दे वाली कुर्सी है। सामने एक शीशे की जगह बड़ा सा दिवार में चारो तरफ शीशा है। हमारे बचपन में लल्लू च चश्मा नही लगाते थे। मगर अब चश्मा लगा कर रहते है। मगर अंदाज़ आज भी ऐसा ही है, मुह में पशुपतिनाथ के पान का बीड़ा ज़रूर रहता है।
हमको देख लल्लू च खुश हो गए। उनके लड़के घरो को जा चुके थे। दूकान बंद करने का वक्त हो गया था। मगर लल्लू च इशा की नमाज़ पढ़कर ही घर जाते है। अभी इशा में वक्त था तो हमने कहा लल्लू च थोडा साइड से बाल सही कर दे और मुछे कुछ ठीक कर डाले। लल्लू च मुस्कुराए और कहने लगे। क्या बाबु, भरोसा नही है कि बाल बढ़िया काटूँगा ? इसीलिए साइड सही करवाने को कह रहे हो। उनकी बात हमको थोडा शर्मसार कर गई। मन में बड़ी हिम्मत जुटाया कि चलो ठीक है। बालो की बलि ही सही। इनका मन रख लेता हु और बाल ही कटवा लेता हु। बहुत होगा थोडा ऊपर नीचे होगा तो कल इनके लड़के से कटवा लूँगा वो बढ़िया कटिंग करता है।
लल्लू चा से मैंने बाल काटने की रजामंदी दिया और खुद कुर्सी पर अल्लाह पीर करता बैठ गया। लल्लू चा ने चमचमाती हुई कैची निकली और आँखों पर चश्मा साफ़ कर हमारे बालो पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर डाला। हम इस कटिंग के बीच लल्लू च और उनके परिवार का हाल चाल ले रहे थे। उन्होंने बताया किस तरह फैशन के इस दौर में लोग पुराने हज्जामो को भूल चुके है। उन्होंने बताया कि वो तो अल्लाह का शुक्र है कि बेटे लायक है। वरना जैसा दौर आ गया हम जैसे हज्जामो का उसमे हमे दाल रोटी के लाले पड़ जाते। उनकी बातो में उनके हुनर की बेहुरमती का दर्द मैं समझ रहा था। लल्लू च हमारे बालो में कुछ इस तरीके से महू थे जैसे लग रहा था कि कोई नक्काश अपना दस्त-ए-हुनर दिखा रहा हो।
लगभग 25-30 मिनट में मेरे बालो की कटिंग हो चुकी थी। बेशक मैंने लल्लू च को कुछ नही बताया था कि कैसा बाल काटना है। वैसे भी 3-4 महीनों के बाद बाल कट जाता है तो पुरानी हेयर स्टाइल क्या थी नए को नही पता होती है। मगर लल्लू च का शायद से अनुभव था कि उन्होंने एकदम वैसे ही बाल काटे जैसे मैं थोडा बड़े सैलून (अब जावेद हबीबी जैसा नही जहा 3 हज़ार खर्च हो जाए) में कटवाता हु। लल्लू चा ने मेरी मुछे भी सेट किया और कहा कि बाल काफी सफ़ेद हो गया है बाबु, कलर लगा दु। लल्लू चा थोडा हाईटेक आज लग रहे थे। हमने मुस्कुरा कर कहा कि कौन सा कलर है लल्लू च, तो बोले बाबु गार्नियर है। मैंने कहा ठीक है बर्गेंदी लगा दो।
हमारी हजामत हो चुकी थी। सर के बाल भी तरतीब से कट चुके थे। कलर लग चूका था, मुछे सेट हो चुकी थी। बारी थी लल्लू च को पैसे देने की। मैंने 500 की नोट निकाल कर लल्लू च के हाथो में दिया और कहा लीजिये पैसे काट ले। अमूमन इतने काम के मैं सैलूनो में 350-400 खर्च करता हु। लल्लू च ने महज़ 75 रुपया काटा और 425 रुपया वापस कर दिया। मैंने सोचा शायद नज़र की कमजोरी से लल्लू च ने कम पैसे काटे है। मैंने कहा कि लल्लू च कितना हुआ, कही ज्यादा तो वापस नही कर रहे है ? बोले नही बाबु, हजामत का 15 रुपया, बाल काटने का 30 रुपया और 30 रुपया गार्नियर का कुल मिला कर 75 रुपया हुआ। मै काफी अचंभित था।
इन सब कामो के के मैं काफी पैसे खर्च करता था। गुड्डू भाई तो काफी रुपया खर्च करते थे। मगर यहाँ सिर्फ इतना ही। लल्लू भाई हमारे मन की दशा समझ रहे थे। बोले बाबु जब आप छोटे थे तो मैं ही आपके बाल काटता था। आज भी हमारे हुनर वैसे ही है। बस लोग शान-ओ-शौकत में भरोसा नही करते है। उनको लगता है कि बड़े से सैलून में रंग बिरंगे बाल रखे वाला ही बढ़िया कारीगर है। कभी हमारे जैसो पर भरोसा करके देखे। बेशक हम उस तरीके के रंगों रोगन नही रखते है। मगर हमारी कलाकारी कम नही है। हमारे चहरे पर मुस्कराहट थी। मगर लफ्ज़ हमारे पास नही थे। सामने से सरफ़राज़ का भाई आबिद चाय देकर वापस केतली लेकर जा रहा था। उसको इशारे से बुला कर मैंने लल्लू भाई के लिए चाय निकलवाई और खुद भी चाय पिया तथा घर वापस आ गया।
रोज़ मामूर के हिसाब से आसिफ मिया के कान्फेशनारी शाप पर हम सब आज शाम भी इकठ्ठा थे। तभी गुड्डू भाई आये और उन्होंने बालो को देख कर कहा कि “देखा, मजा आया न जावेद हबीबी के यहाँ कटवा कर। मस्त बाल काटता है न।” हम मुस्कुरा दिए और कहा नही लल्लू हबीबी के यहाँ कटवा लिया था। गुड्डू भाई ने हमारे लफ्ज़ पर पूरा ध्यान नही दिया और कहा “हाँ जावेद हबीबी का चेला होगा।” हमने कहा नही जावेद हबीबी उसका चेला हो सकता है। फिर पूरी बात बताया। गुड्डू भाई बड़े सजीदगी से सुन रहे थे हमारी बातो को और आखिर में उन्होंने अपनी रजामंदी हमारी सोच के साथ ज़ाहिर किया।
हमारा इस पोस्ट को लिखने का सबब कोई ऐसा नही कि किसी की बड़ी आन बाण शान को कमतर दिखाऊ। दरअसल, इस पोस्ट में गुड्डू जलाली हमारे दोस्त है और वह भी नार्मल ज़िन्दगी जीते है। सभी नाम हमारे जान पहचान वालो के ही है। सिर्फ बाल की कटिंग वगैरह और रेट ही असली है बकिया आपके मनोरंजन के लिए बाते लिखी है। हमारा मकसद है कि आप अपने आसपास के छोटे दुकानदारों से खरीदारी करेगे तो बेशक आपको दाम भी वाजिब मिलेगा और चीज़ भी अच्छी मिलेगी। आपकी आवश्यकता तो पूर्ण होगी ही साथ ही उस छोटे दुकानदार के परिवार की ज़रूरते भी पूरी हो जाएगी। बेशक आपकी खरीदारी उसके घर का चूल्हा जलवा सकती है। ध्यान रहे, छोटे और पटरी दुकानदारों का ख्याल रखे। बकिया हमारी पोस्ट को ऐसे ही मनोरंजन के लिए पढ़े। थोडा मुस्कुराये। हमारे गुड्डू भाई से हसी मज़ाक चलते रहते है। अब इसी को पढ़ कर गुड्डू भाई थोडा चिढेगे, फिर सब लोग आपस में हसी मज़ाक किया जायेगा और फिर नए दिन की नई शुरुआत।
देखिये, आप बड़े पांच सितारा होटल में जाकर 500 की चाय पिए। उसके बाद वापस आकर आप अपने अगले नुक्कड़ की चाय की दूकान से चाय पिए। सच बताता हु नुक्कड़ के कुल्हड़ वाली चाय आपको पांच सितारा होटल की चाय से ज्यादा ख़ुशी देगी। वो जो नुक्कड़ के आखरी कोने पर एक दादी थोड़ी सी सब्जी बेचती है। वहा से सब्जी ख़रीदे, देखिये ताज़ी भी होगी और वह बड़ी दूकान से सस्ती भी होगी। आपको सब्जी बेच कर दादी खुद के लिए रोटी मोल लेंगी। अगली बार जब आप पूरवा में लस्सी अथवा चाय पीकर फेके तो सोचियेगा कि आपके इस चाय या लस्सी खरीदने से दो लोगो का परिवार चल गया। एक चाय वाले का और दूसरा पुरवा बेचने वाले का। बेशक आप एक कप चाय के लिए 1 हज़ार भी खर्च कर सकते है। थोड़ी खरीदारी पटरी कारोबारियों से भी कर डाले।
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