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बड़ा सवाल : कितना विश्वसनीय है प्री पोल सर्वे ? क्या हर विधानसभा के केवल 27.5 वोटर्स बता सकते है विधानसभा क्षेत्र की जनता का मूड ?

तारिक़ आज़मी

उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव सर पर है। इन चुनावों हेतु कभी भी चुनाव आयोग अचार संहिता लागू कर सकता है। सभी पार्टी चुनाव की तैयारी में लगी हुई है। इस दरमियान सभी अपने अपने बयानों एक तीर छोड़ रही है। तरकश में सभी के एक से एक तीर है। वही जनता ख़ामोशी से दो जून की रोटी कमाने में जुटी हुई है। विधान सभा चुनावों के सर पर आते ही सर्वे का भी बोल बाला हो गया है। कल ही एक सर्वे देखा जिसमे एक दल विशेष को 43-44 फीसद वोट मिलने का अनुमान बताया जा रहा था। वही दुसरे दल को 35 फीसद के आसपास बताया जा रहा था।

सर्वे की कहानी ऐसा नही है कि आज कोई नई है। मगर टीआरपी की जंग के बीच अब कुछ ज्यादा ही होती जा रही है। एक मीडिया हाउस ने हर सप्ताह सर्वे रिपोर्ट जारी करना शुरू कर दिया है। इस रिपोर्ट्स को आधार माने तो सत्ता पक्ष को भारी मुनाफा और वर्त्तमान विपक्ष को भारी नुक्सान दिखाई दे रहा है। सबसे नजदीकी विपक्ष भी सत्ता से 10 फीसद वोट से पीछे दिखाई दे रहा है। सर्वे में दावा है कि उन्होंने एक एक विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओ से बात किया है। उनका मूड जाना है। उनसे सरकार और विपक्ष को लेकर सवाल पूछे है। उनके जवाबो के आधार पर यह रिपोर्ट आ रही है।

मगर अब हम असली मुद्दे पर आते है। क्या लगता है आपको कितना विश्वसनीय होगा आपके पसंदीदा चैनल का ये सर्वे ? क्या प्रदेश में 1 फीसद वोटर्स से भी सवाल पूछे जा रहे होंगे। सर्वे की रिपोर्ट को मैंने पढ़ा और उसके श्रोत को भी पढ़ा। पुरे प्रदेश की 404 विधानसभा सीट के लिए कुल 11 हज़ार 85 लोगो के बयानों को आधार माना गया है। अब अगर आप इसके ऊपर गौर करे तो क्या पुरे प्रदेश के 3 करोड़ 50 लाख के लगभग वोटर्स का रुझान महज़ 11 हज़ार लोग दिखा सकते है। अगर इस आकडे पर बात करे तो सर्वे पुरे प्रदेश के मतदाताओं में महज़ 0.1 फीसद मतदाताओ से भी बात नही किया गया है। कुल आकडे देखे तो बात सिर्फ 0.03 फीसद मतदाताओं से हुई है।

वही विधानसभा वार देखा जाए तो एक सीट पर महज़ 27.47 मतदाताओ से बात किया गया। अगर हम इस संख्या को 28 भी मान लेते है तो क्या एक विधान सभा के 28 मतदाता पुरे विधान सभा क्षेत्र के मूड को बता सकते है। अभी तक किसी दल ने प्रत्याशी घोषित नही किया है। प्रत्याशी की घोषणा के बाद काफी ऐसे क्षेत्र होते है जहा समर्थक विरोधी और विरोधी समर्थक के रूप में सामने आ जाते है। फिर तो शायद आकडे ही पूरी तरह से इस सर्वे रिपोर्टस के उलट पुलट हो जायेगे ?

अगर कुल मिला कर देखा जाए तो ऐसे प्री पोल सर्वे केवल प्रोपगंडा करते दिखाई देते है। इससे ज्यादा कुछ और तो नही हो सकता है। क्योकि एक विधानसभा के एक मोहल्ले में एक इंसान से बात करके पुरे मोहल्ले का मूड भाप लेना शायद “नजुमियत” से कम तो नही है। अक्सर ऐसे प्री पोल सर्वे को बंद कर देने की मांगे उठती रहती है। अगर इन मांगो को हम जायज़ करार नही दे सकते तो एक नज़र में नाजायज़ भी नही लगती है। बहरहाल चुनाव है। यहाँ सब कुछ चलता रहता है। तरकश से शायद ही कोई तीर ऐसा होता होगा जो बचा रहता होगा। मगर खामोश वोटर अपने काम में मशगुल रहता है। वक्त पर जाता है वोट देता है और वापस अपने काम पर लग जाता है। मगर आप सोचे ऐसे सर्वे के आधार पर आँख बंद कर यकीन कर लेना क्या सही है ? कल्लन चाचा तो सर्वे रिपोर्ट देख कर अपने दल को पिछड़ता देख मूड ख़राब किये रहते है, वही कतवारू मामा अपने दल को बढ़ता देख कर कल मिठाई बाट रहे थे, चले इसी बहाने उनकी मिठाई खाया गया। मौज ले साहब, मैंने पहले भी कहा है कि “गरीबो की थाली में पुलाव आ रहा है, गौर से देखे गुरु हमारे यहाँ भी चुनाव आ रहा है।

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