तारिक़ आज़मी
सत्ता पक्ष के हमेशा से करीबी रहे दीपक मधोक के सनबीम लहरतारा ब्रांच में एक मासूम बच्ची के साथ बलात्कार जैसी शर्मसार कर देने वाली घटना हुई। घटना के बाद बच्ची स्कूल से घर गई जहाँ उसकी ख़राब हाल देख कर मासूम की माँ ने इस हाल का सबब जाना। जिसके बाद मासूम ने रो-रो कर अपनी माँ को पूरी घटना बताया। घटना जान कर माँ का कलेजा मुंह को आ गया होगा। मासूम की माँ ने तुरन्त उसके पिता यानी अपने पति को फोन किया और घटना के सम्बन्ध में बताया। ये जानकर मासूम के पिता ने तुरंत पुलिस को सुचना दिया। सुचना पाकर मौके पर पुलिस पहुंची और घटना की हर पहलू से जांच किया।
यहाँ तक की जानकारी आपको अपने पसंदीदा अख़बार के माध्यम से हुई होगी। बेशक अखबार ने नाम नही लिखा होगा कि सनबीम में ऐसी घटना हुई है। आप समझिये इस बात को कि बड़े विज्ञापन दाता की चार नहीं चार सौ गलतियां छिपानी भी पड़ती है। वही हो रहा है, जब आज तक आप ऐसी हरकतों पर खामोश रहे और अपने पसंदीदा अख़बार और बड़के-बडके मीडिया हाउस के लिए आपके दिल में ग्लानी नही आई तो अब क्यों आपको इस बात पर आपत्ति है कि उसने ऐसे स्कूल का नाम गायब कर दिया जैसे भूसे में सुई गुम गई हो। शायद हमको और आपको अब ये अधिकार भी नही बचा है कि हम अपने पसंदीदाओ को अपनी आपत्ति दर्ज करवा सके।
खबर में सनबीम का नाम ठास ठास कर हमारे साथ भदैनी मिरर ने लिखा। शायद मधोक साहब ने सोचा होगा कि बड़का लोग तो मैनेज है, छोटकन का काहे चिंता करना है। मगर यही जाकर सत्या पिट गई। बड़कन तो जब तक छापने की सोच रहे थे कि “एक निजी विद्यालय” जैसा शब्द लिखा जाए तब तक हमारी खबरों में सनबीम का नाम चपक के चमक रहा था। वही सत्य को छिपाने का समझौता न करने की कसम खाकर बैठा मेरा मित्र अवनींद्र सिंह अमन ने भी चाप कर लिखा डाला। भदैनी मिरर ने भी जमकर लिखा। अमन ने हमसे ऐसे ही अनौपचारिक बातचीत में कहा कि यहाँ कहाँ हम लोगो को विज्ञापनदाता देखना है। यहाँ कोई गम नही है कि कौन बड़ा विज्ञापनदाता है। खबर में सत्य का समझौता नही करना हमारा आपका मकसद रहता है। अब जिसको बुरा मानना है माना करे। सत्य से समझौता न आप करते है और न हम। बात तो अमन की भी सही रही। मधोक साहब यहाँ कहाँ हमको गम है कि आप बुरा मान जायेंगे। हम सच लिख रहे थे, लिख रहे है और लिखते रहेगे। फिर आप बुरा मानते है तो माने कि आपके विद्यालय में ऐसे कुकर्म होने के बाद हमने क्यों आपके शिक्षण संस्थान का नाम लिखा।
खैर, वापस हम उस मुद्दे पर आते है जिसको अभी तक किसी ने भी नही बताया है। हमारी भी खबरों में अभी तक इसका ज़िक्र नही हुआ है। बात कुछ ऐसी है कि सिगरा इंस्पेक्टर और एसीपी चेतगंज की सूझबुझ थी जो उन्होंने घटना के दिन उत्तेजित जनता को काफी समझाया। मधोक साहब, ये तो आपको अच्छी तरह पता होगा कि घटना के दिन अभिभावक कितने नाराज़ थे। वो ऐसा वक्त था कि जिस-जिस ने इस घटना के बारे में सुना, हर एक इंसान ने इस घटना की आलोचना किया। ज़बरदस्त आलोचना। उसके बाद किसी तरीके से अशांत हुई जनता को पुलिस ने समझा बुझा कर शांत किया। विद्यालय के शिक्षको और अन्य कर्मचारियों को घर भेजा। घटना की जाँच शुरू हुई और महज़ तीन घंटे के अन्दर पुलिस ने सिंकू की शिनाख्त कर सिंकू को गिरफ्तार कर लिया।
इसके बाद की काफी घटनाएं आपकी जानकारी में है। सिंकू को पुलिस ने जब अदालत में पेश करना चाहा तो कचहरी परिसर में घटना से उबाल खाए अधिवक्ताओं ने जमकर सिंकू की पीठ पूजा कर डाला। सिंकू को मार खाने से बचाने के लिए पुलिस कर्मी भी चोट खा गए थे। सब मिलाकर पुलिस ने अपने कर्तव्यो का पालन पूरी तरीके से किया। मगर उसके बाद जो सनबीम ग्रुप ने किया वो कितना कर्तव्यो का पालन था, ये सोचनीय विषय है। सनबीम ग्रुप के 50 साल पुरे हो गए थे। घटना के दुसरे दिन ही कार्यक्रम आयोजित था। आलिशान कार्यक्रम में बतौर चीफ गेस्ट उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा आने वाले थे। घटना के सम्बन्ध में उनको जानकारी होती है तो उन्होंने अपना कार्यक्रम निरस्त कर दिया।
मधोक साहब को एक झटका तो ये लगा था कि कार्यक्रम में आने वाले चीफ गेस्ट आये ही नही। मगर दूसरा झटका उस दिन लगा जब डॉ दिनेश शर्मा ने बयान देते हुवे कहा कि अगर अभिभावकों की मांग होगी तो विद्यालय प्रशासन के खिलाफ भी कार्यवाही होगी। ये एक बड़ा झटका रहा है दीपक मधोक साहब को। साहब हमेशा सत्ता पक्ष के करीबी रहे है। अब जब सत्ता पक्ष ही उनको ऐसे झटके दे डालेगा तो क्या कहना भी। कार्यक्रम तो आयोजित होता है। बेशर्मी की हद खत्म कहेगे आप कि कार्यक्रम के कुछ फुटेज भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई। इधर दूसरी तरफ उसी दिन काफी अभिभावक और सियासी दलों के प्रतिनिधियों सहित कुछ छात्र नेता भी धरने पर बैठ गए।
सभी नाराज़ थे। विद्यालय प्रशासन के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग कर रहे थे। प्रशासन काफी समझाने का प्रयास करता है। आखिर मांग के आगे प्रशासन झुका और तीन दिन का समय माँगा। वही दुसरे तरफ उसी दिन वाराणसी पुलिस कमिश्नर ए सतीश गणेश ने प्रकरण की जाँच करने के लिए एक एसआईटी का गठन कर दिया। एसआईटी ने कल से जाँच भी शुरू कर दिया है। विद्यालय प्रशासन से जमकर पूछताछ हुई। सूत्र बताते है कि एसआईटी के सवालो का जवाब देते हुवे इस सर्द मौसम में भी विद्यालय प्रशासन का पसीना छूटने लगा था। एसआईटी ने विद्यालय प्रबंधन को नोटिस भी थमा डाला है कि जाँच में सहयोग करे।
इसके बाद आता है सोमवार, विद्यालय खुलता है तो भारी संख्या में अभिभावक अपनी शंकाओं का समाधान पाने के लिए विद्यालय पहुँच जाते है। विद्यालय के गेट पर जमकर अभिभावकों ने नारेबाजी किया। आखिर विद्यालय प्रबंधन प्रतिनिधि के तौर पर मैडम सामने आती है। अभिभावकों के सवाल तीखे थे। मगर मैडम ने जमकर सफाई पेश किया। अभिभावक संतुष्ट नही थे। आखिर विद्यालय प्रबंधन के तरफ से कांफ्रेस हाल में मधोक साहब को खुद आना पड़ता है। जमकर वो अभिभावकों को सफाई दे रहे थे, मगर अभिभावकों के सवालो से उनके भी पसीने छुट रहे थे। एक अभिभावक के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि “वो बच्ची हमारी ही है”। बेशक ऐसे बातो पर आप किसी से उसके जज्बातों में थोडा हिस्सेदारी मांग सकते है मधोक साहब, मगर हकीकत की सरज़मीन से ये जवाब कोसो दूर है।
अगर हकीकत होती तो मधोक साहब आज ऐसी स्थिति नही होती। हम भारत के लोग तालीम और शिक्षा दीक्षा वाले है। तालीम बेशक अपने साथ तहजीब को समाये रखती है। शिक्षा का मतलब तो सभी जानते है। दीक्षा का मतलब मधोक साहब हम आपको थोडा बताते चलते है। दीक्षा संस्कृति को कहते है। शिक्षा और संस्कृति के मिश्रण को हमारे देश की शिक्षा कहा जाता है। पढ़ाई के साथ तहजीब की बात करना होता है। थोडा आप कभी आपके विद्यालय की छुट्टी हो तो अपने विद्यालय की किसी शाखा के बाहर खड़े हो जाए। शिक्षा के साथ दीक्षा दूर तक दिखाई नही देती है। खुद आप सोचे आपके विद्यालय में देखे। इंटर के छात्र की आयु अधिकतम 16-17 साल होती है। रेसिंग बाइक आपके यहाँ स्टैंड में कितनी होती है इसको भी देख ले।
मधोक साहब, चलिए आपकी भी मान लेते है कि आप उस पीड़ित मासूम को अपनी ही बच्ची समझ रहे है। चलिए आप ही बता दे कि आपने आखिर क्या किया उस मासूम के लिए? आपने एक भी बयान कल अभिभावकों के सामने आने से पहले नही दिया। आपका अभी तक घटना में अपने लहरतारा ब्रांच के कर्मचारियों की भूमिका पर कोई जवाब नही दिया। आखिर ऐसा कैसे संभव है कि इस तरीके से ये घटना हो जाती है और आपके उस ब्रांच के किसी कर्मचारियों अथवा शिक्षक-शिक्षिकाओं को विद्यालय में हुई इस घटना की जानकारी न हुई हो। ऐसा कम से कम इस धरती के सत्यो में से तो सत्य नही हो सकता है। हाँ कोई मंगल ग्रह से सत्य अवतरित हुआ हो तो अलग बात है।
मधोक साहब, बेटी सबकी होती है। वो मासूम इस शहर बनारस की बेटी है। उस बहादुर मासूम बेटी को अगर बनारस की निर्भया नाम दिया जाए तो कोई गलत नही होगा। ये नाम मैं दे रहा हु मधोक साहब, बनारस की निर्भया की आँखों में आँख डाल कर आप क्या कह सकते है कि आप उसको अपनी बेटी मान कर अपने विद्यालय के कर्मचारियों को नही बचा रहे है। नही मधोक साहब, लफ्जों से कहना और दिल से मानना दो अलग अलग सी बात है। बनारस की बेटी निर्भया के साथ पूरा बनारस है। पुरे बनारस का हर एक पिता उसमे अपनी बेटी देख रहा है। आप देखे न देखे मगर गौर करे आपकी इसी ब्रांच के ऊपर इसके पहले भी बड़े बड़े कई आरोप लग चुके है। मगर बनारस की आवाम ने कभी एक लफ्ज़ नही कहा। आज बनारस की आवाम अपने बेटी के साथ है।
बाल संरक्षण आयोग की टीम को नही मिला जांच में सहयोग
सनबीम लहरतारा ब्रांच में बच्ची के साथ हुए अमानवीय कृत्य के मामले की जांच के लिए आई यूपी बाल संरक्षण आयोग की टीम आपके विद्यालय परिसर में आज जाती है मधोक साहब, अगर आप जाँच में सहयोग की बात कह रहे है तो फिर आखिर इस टीम को सहयोग क्यों नही दिया गया। कही न कही से “कर का डर” सता रहा है क्या ? वैसे टीम ने साब साफ़ कहा कि विद्यालय प्रशासन ने जांच में सहयोग नही दिया है। आयोग को विद्यालय प्रशासन प्रथम दृष्टया दोषी आ रहा है नजर। जब आप कह रहे है कि वो बच्ची हमारी है तो आपको और आपके विद्यालय के प्रबंध तंत्र को पूरा सहयोग हर एक जाँच में करना चाहिए। ताकि सच उजागर हो सके। या फिर आप अपनी साख बचाने के लिए ही इस मामले को दबाना चाहते है। मधोक साहब आपने ही कहा वो बच्ची हमारी है। सहयोग करे सर, सच को सामने आने दे। समाज को पता चले कि आखिर बनारस की उस बेटी का गुनाहगार कौन कौन है। हकीकत शायर ने बयान किया है कि “सच बात मान लीजिये, चेहरे पर धुल है, इलज़ाम आईनों को लगाना फ़िज़ूल है”
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