फ़िल्म जगत के साथ वास्तविक रिश्तों में आते बदलाव, जाने कहाँ गये वो वो दिन और वो रिश्ते?

अनुराग पाण्डेय (एडिटेड : तारिक़ आज़मी)

ना जाने कहाँ खो गए वो रिश्ते जो दिल की आवाज समझते थे । ना जाने कैसे रिश्ते बन गये जुबां की आवाज भी नहीं समझते हैं। आज यूंही बस मन किया कुछ पुराने गाने सुनने का तो सबसे पहले उदित नारायण का गाना “पापा कहते है” सुन लिया, जो 1988 में फ़िल्म “क़यामत से क़यामत” तक मे फिल्माया गया था। वो वक्त कुछ शायद और ही था जब हमारे पापा कहते थे और हम सब सुनते थे। मगर अब वक्त बदल गया है। पापा कहते रहते है मगर सुनने के लिए पुत्र के पास फुर्सत कहा होती है। ये गाने को सुनकर अभी सोच ही रहा था कि तभी एक समाचार देखने को मिला कि रामपुर में एक पुत्र अपने पिता का कत्ल कर दिया। क़त्ल के बाद वह भाग रहा था और दुर्घटना में उसकी भी मौत हो गई।

मन उदास हो गया कि ना ही तो अब ऐसी फिल्में बनती है जो पिता पुत्र के रिश्ते को दिखा सके। न ही ऐसे माहोल अब रह गए है कि पिता की आज्ञा का पालन करता पुत्र दिखाई दे। इसके लिए ज़िम्मेदार पिता है या पुत्र अथवा हमारा अधिक लाड प्यार। नही मालूम। फिर भी कोई न कोई ज़िम्मेदार तो है। आज भी रक्षाबंधन पर्व पर कोई नया नही बल्कि वही पुराने गीत बजते है। पहले के फिल्मों में माँ और एक बहन का विशेष किरदार होता था। लेकिन वास्तविकता में अब ये भी रिश्ते शर्मशार होने लगे है। कभी कभी तो ऐसा समाचार पढ़ने को मिलता है कि ‘रिश्ते हुये शर्मशार भाई के साथ हुई बहन फरार’।

फ़िल्म जगत हमेशा से हमारे जीवन के रहन सहन, पहनावे पर प्रभाव डालते रहे है। लेकिन अब फ़िल्म जगत से माँ, पिता, बहन ही गायब हो गये है। तो न तो रक्षाबंधन पर गाने बनते है, ना ही रिश्तों पर आधारित कोई चलचित्र प्रदर्शित होती है। आज भी हमको पुराने गाने से रक्षाबंधन पर काम चलाना पड़ता है कि “भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना।” वैसे भाई कुछ ऐसे भी समाज में दिखाई दे जाते है कि एक बहन से राखी बंधवा कर भोजपुरी फिल्म के नायक की तरह चिकना चपोडा होकर निकलते है और फिर बाहर आकर दुसरे की बहन को छेड़ते और बोली आवाजा फेकते है।

रक्षाबंधन का महत्व कहे या राखी का महत्व, जब एक मुगल शासक ने जिसे क्रूर कुछ इतिहासकार कहते है वही उनसे ज्यादा उनको क्रूर सियासत कहती है ने राखी के जरिये ही मेवाड़ को बचाया था। कहानी आप जानते होंगे तो हमको बताने अथवा ज्ञान बघार कर आपके सामने ज्ञानी बनने की चाहत नही है। अगर जानकारी कम है तो हाथ में आपके महंगा मोबाइल है। उसमें गूगल बाबा है। उनसे पूछ ले कर्णावती और हुमांयू की कहानी। सब कुछ दिखाई दे जाएगा। मगर इस रेशम की डोर पर बनने वाली फिल्मो के दौर खत्म हो गये। अब वो दौर कब के हवा हो गए जब दोस्त की पत्नी से राखी बंधवा कर हम उसकी रक्षा की कसम खाते थे। अब तो हालत ऐसी है कि दोस्त से दोस्ती के सहारे घर के अन्दर जाते है। फिर उसकी पत्नी को अपनी चिकनी चुपड़ी बातो में फंसा कर लेकर भाग जाते है।

अब तो विदेशों में मनाया जाने वाला फादर्स डे, मदर्स डे पर सोशल मीडिया पर दिखावे के लिये एक तस्वीर लगा दी जाती है। केक लाकर अपने पिता से अथवा माता से कटवा दिया जाता है। सोशल मीडिया पर जमकर माँ और पिता के सम्मान करने की बाते लिखी जाती है। उनकी सेवा करने को कहा जाता है। भले बूढी हो चुकी माँ के अरमानो पर पानी फेरती उसकी बेटी उसकी मौत का सबब बन जाये। मगर वो बेटी भी “मेरी मम्मी मेरी जान” लिख कर खुद को माँ पिता की दुनिया में सबसे वफादार प्राणी साबित कर देती है। समझ नही आता कि आखिर जब सब माँ बाप से इतनी मुहब्बत करते है तो फिर ये वृद्धाश्रम में किसके माँ-बाप रह रहे है।

अब तो वो वक्त गया जब हम छोटे थे, अपने छोटे से स्कूल से छुट्टी के समय लौटने के बाद अपने भारी बस्ते को एक कोने में फेंक दिया करते थे, और कंधो को आराम मिल जाता था। आज इतने बड़े हो गए हैं, कोई बस्ता भी नहीं है,  तब भी कुछ भारी-भारी सा है कंधों पर है। जिसे उतारने की तरतीब नही पता चल पा रही है। हमारे वक्त में तो मास्टर साहब होते थे। शिक्षा के साथ दीक्षा भी देते थे। कई बार तो अपना घर से ख़राब मूड ठीक करने के लिए ही हमे कूट दिया करते थे और हम इस डर से कुछ नही कहते थे कि घर आकर बतायेगे तो खुद भी जूते एक बार फिर खायेगे। अब तो बच्चे को शिक्षक कान पकड़ ले तो उसकी लंका लग जाती है।

फिल्मो के साथ हमारा सामाजिक जीवन बदल रहा है। या हमारे सामाजिक जीवन के साथ फिल्मे बदल रही है समझ में नहीं आता है। पहले फिल्मो में जिस बात को अश्लील कहा जाता था, आज वह सब कुछ हम पुरे परिवार के साथ बैठ कर देखते है। एक समय था जब घर में एक टीवी हुआ करती थी और परिवार पूरा उसको देखता था एक साथ। “खानदान” से लेकर करमचंद्र जासूस और चित्रहार के लिए आँखे टकटकी बाँध कर देखती रहती थी। फिर सुबह शुरू हुवे चित्रमाला के लिए मुह अँधेरे उठ जाते थे। अब वक्त बदल गया है। हर कमरे में टीवी है और हमारे माता पिता अकेले है। समय बदल गया है, हकीकत में हम अब कुछ ज्यादा ही माँड़ होने का दिखावा कर रहे है।

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