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कमाल खान: संघर्ष और सफलता का दूसरा नाम, महज़ 61 साल की उम्र में पाई 610 सालो में हासिल होने वाली कामयाबी

तारिक़ आज़मी

“कमाल” के बिना अब पत्रकारिता कैसे होगी इसके ऊपर भले ही एनडीटीवी मंथन कर रहा हो। कमाल के बिना रूचि का जीवन कैसा होगा इसके दर्द का हम सबको अहसास हो सकता है। मगर कमाल ने अपनी ज़िन्दगी के महज़ 61 सालो में ही 610 सालो की उपलब्धि हासिल किया था। संघर्ष के साथ सफलता की अगर मिसाल जानना हो तो कमाल की ज़िन्दगी को देखे। कमाल एक अच्छे रिपोर्टर का ही नाम नही बल्कि एक फर्माबरदार बेटा, एक अच्छे पति और एक अच्छे अभिभावक का भी नाम था।

कमाल से हमारी पहली मुलाकात लगभग एक दशक पहले हुई थी। कमाल लखनऊ की पत्रकारिता में एक बड़ा नाम उस समय हुआ करता था। बेशक उसके बाद से कमाल उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता में एक बड़ा नाम बने। उम्र भले 61 साल हो गई थी, मगर जोश और जज्बा बेशक 25 साल के नवजवानों जैसा था। होंठो पर मुस्कुराहट हमेशा रखने वाले कमाल एक बेहद संजीदा इंसान थे। उनकी एक मुस्कान पर खुद के सारे दर्द भुला दिए जाते थे। मुझे याद है सलाम का जवाब देने के वक्त उनके होठो पर आने वाली वह मीठी सी मुस्कान दिल में उमंग भर देती थी।

संजीदगी ऐसी कि वह कोई लफ्ज़ अगर कह दे तो कोई उनकी बात काट नही सकता था। बेहद नर्म मुलायम अल्फाजो का इस्तेमाल करके अपना तार्रुफ़ बताने वाले कमाल ने देश के टॉप मोस्ट अवार्ड हासिल किये थे। उनको पत्रकारिता में देश का सबसे बड़ा अवार्ड रामनाथ गोयनका अवार्ड से सम्मनित किया गया था। यही नही राष्ट्रपति के हाथो उनको गणेश शंकर विद्यार्थी अवार्ड भी हासिल था। इतनी बड़ी बड़ी उपलब्धियों के बावजूद भी कमाल के अन्दर तकब्बुर छू कर भी नही था। ज़मीन से जुड़े रहकर पत्रकारिता करना उनका शौक था।

पत्रकारिता से ऐसी मुहब्बत थी कमाल को कि उनके रगों में पत्रकारिता लहू बनकर दौड़ रहा था। कमाल खान ने अपनी ज़िन्दगी का आखरी दिन भी पत्रकारिता के नाम किया था। देर रात तक उत्तर प्रदेश के चुनावी मुद्दों पर वह चर्चा कर रहे थे। रात में एनडीटीवी के प्राइम टाइम पर कमाल की रिपोर्ट चल रही थी। उनके लफ्ज़ इस वक्त कानो में गूंज रहा है जब कल की रिपोर्टिंग में उन्होंने कहा था कि “प्रियंका गांधी का ये फैसला लम्बे समय तक याद रखा जायेगा।” कमाल कांग्रेस द्वारा जारी कैंडिडेटस की लिस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे।

कमाल की शुरुआत पत्रकारिता में लगभग 3 दशक से अधिक समय पूर्व हुई थी। कमाल ने “अमृत प्रभात” से अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत किया था। बाद में अमृत प्रभात बंद होने के बाद वह नवभारत टाइम्स में आए। लेकिन कुछ समय बद नवभारत टाइम्स भी बंद हो गया। जिसके बाद दैनिक जागरण आए। ये वह समय था कि जब उनके पिता काफी गंभीर रूप से बीमार थे। एक फर्माबरदार बेटे के रूप में कमाल दिन रात उनकी सेवा में वक्त गुजारते थे। अपने वालिद को एक लम्हे के लिए भी किसी तकलीफ में नही रहने देते थे। उनकी खिदमत में हर वक्त वह खड़े रहते थे। बाद में उनके वालिद का इन्तेकाल हो गया। वालिद का इन्तेकाल कमाल के लिए सदमे भरा था। बाद में कमाल ने इस सदमे से उबरते हुवे जागरण छोड़ कर एनडीटीवी ज्वाइन कर लिया था और अपनी ज़िन्दगी के आखरी लम्हे तक वह फिर एनडीटीवी के साथ रहे।

हम रब की बारगाह में कमाल की मगफिरत के लिए दुआ करते है। उनके परिवार को सब्र की दुआ करते है। रब हमारे कमाल को जन्नत में आला मकाम अता फरमाए। कमाल के इन्तेकाल पर पुरे पत्रकारिता जगत में शोक की लहर है। बेशक कमाल जैसा कलमकार सदियों में एक दो ही होता है। कमाल की कमी पत्रकारिता जगत में हमेशा खलेगी। उनके खाली किये हुवे जगह को शायद ही अब कोई भर पायेगा।

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