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काका बोले अब कहो गुरु तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ: लडकियों के शादी की वैध उम्र 18 से बढ़कर 21 करने के प्रावधान पर बनी 31 सांसदों की समिति में सिर्फ एक महिला

तारिक़ आज़मी

महिलाओं के अधिकार के लिए मंचो से खड़े होकर बाते भले जितनी लम्बी चौड़ी होती रहे। चाय पान के नुक्कड़ पर जितने चाहे ज्ञान बाचे जाए। मगर हकीकत ये है कि पुरुष प्रधान समाज में पुरुषो को अहमियत देकर महिलाओं से सम्बन्धित बड़े फैसले भी पुरुष अपने बहुमत से कर सकते है। हकीकत बताता हुआ साहब कि महिलाओं से सम्बन्धित मसायल पर भी पुरुष ही फैसला कर देते है। अक्सर मैं कहता था कि बिसलेरी का पानी पीते हुवे सूखे से निपटने के लिए कार्यक्रम बन रहे है। बस फर्क इतना है कि 2014 के बाद से कहना बंद कर दिया। मगर आप समझ सकते है। देखिये भावनाओं को समझे, शब्द भले कुछ और हो।

अब हमारे काका को ही ले ले। उनका कहना ही है कि बबुआ भावनाओं को समझो। अगर गलती से मिस्टेक कोई कहे तो उसकी भी भावनाओं को समझ जाओ। समझोगे कैसे नही। समझना पड़ेगा तभी तो अच्छा की इतनी वेराइटी हो जाती है। अब काका की भावनाओं को आप समझे। सुबहिये से काका हमारे मस्त होकर काकी को जमकर ताना मारे पड़े है। हम ही कह दिया काका महिला सशक्तिकरण का दौर है। तनिक समझ जाओ काका। मगर काका और जोर से हसने लगे और बताये कि पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के अधिकारों पर फैसले पुरुषो के बहुमत से लिया जाता है।

दरअसल लड़कियों की शादी की वैध उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने के प्रावधान वाले ऐतिहासिक विधेयक के परीक्षण के लिए बनी संसद की समिति में भी पुरुष सांसदों का ही वर्चस्व है। 31 सदस्यीय समिति में मात्र एक महिला सांसद को लिया गया है। अब आप समझ सकते है कि लैंगिक समानता व महिला अधिकारों की लंबी चौड़ी बातों में सचाई यह है कि पुरुषों को प्रधानता की सोच बदल नहीं पा रही है। बाल विवाह निषेष (संशोधन) विधेयक, जिसका समाज विशेषकर महिलाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, संसद के शीतकालीन सत्र में लोकसभा में पेश कर दिया गया है। इसके बाद इसे विचार के लिए शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल मामलों की संसदीय स्थायी समिति को भेजा गया है। इस विधेयक को महिला व बाल विकास मंत्रालय ने तैयार किया है। इसमें लड़कियों की शादी की वैधानिक उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव है।

विधेयक को विचार के लिए वरिष्ठ भाजपा नेता विनय सहस्रबुद्धे की अध्यक्षता वाली संसदीय स्थाई समिति को भेजा गया है। राज्यसभा की वेबसाइट पर उपलब्ध इस समिति के सदस्यों की सूची के अनुसार 31 सदस्यीय समिति में एकमात्र महिला सांसद तृणमूल कांग्रेस की सुष्मिता देव हैं। बताते चले कि विभागों से संबंधित स्थायी समितियां स्थाई होती हैं, जबकि संयुक्त व प्रवर समितियां विधेयकों व प्रासंगिक मुद्दों पर विचार के लिए समय समय पर गठित की जाती हैं। इन समितियों का गठन लोकसभा व राज्यसभा द्वारा किया जाता है। शिक्षा, महिला, बच्चों, युवा व खेल मामलों की स्थायी समिति का संचालन राज्यसभा द्वारा किया जाता है। लोकसभा द्वारा गठित समितियों में उसी सदन के ज्यादा सदस्य होते हैं, जबकि राज्यसभा द्वारा गठित समितियों में उसके सदस्य ज्यादा होते हैं।

Tariq Azmi
Chief Editor
PNN24 News
लेख में लिखे गए समस्त शब्द लेखक के अपने विचार है. PNN24 न्यूज़ इन शब्दों से सहमत हो ये ज़रूरी नही है.

अब बात ये है कि 31 लोगो की ये समिति अपने विचार देगी महिलाओं से संबधित, जबकि इस समिति में मात्र एक महिला है। इसी खबर को पढ़कर सुबह से काका ने तीन कप चाय और अधिक पी लिया है। असल में काका चाय कम पी रहे है और अपने ज्ञान इस मुद्दे पर अधिक बाट रहे है। अब आप सोचे क्या इंसान बोल सकता है ? महिलाओं के अधिकारों की बात यहाँ हो रही है। महिला सदस्य के तौर पर सिर्फ एक सदस्य है। जबकि अन्य 30 सदस्य पुरुष है। इससे तो ये कम से कम साबित होता है कि पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के हितो की रक्षा का बिल भी पुरुष तैयार कर डालेंगे। बकिया सब ठीक है। काका ने तो साफ़ कह दिया है कि जाओ बबुआ अब लिखो “तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ,” अब दिक्कत ये है कि लिखे तो क्या लिखे। समझ तो सब सकते है। भावनाओं को समझे और बस भावनाओं को ही शब्द समझ ले।

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